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लोकसभा से सरकार वापस लेने जा रही है ये बिल, जानिए- क्या है मजबूरी

एफआरडीआइ बिल को लेकर यह आशंका जताई जा रही है कि इससे बैंकों में आपकी जमा रकम असुरक्षित हो जाएगी।

By Brij Bihari ChoubeyEdited By: Published: Wed, 18 Jul 2018 07:33 PM (IST)Updated: Wed, 18 Jul 2018 07:45 PM (IST)
लोकसभा से सरकार वापस लेने जा रही है ये बिल, जानिए- क्या है मजबूरी
लोकसभा से सरकार वापस लेने जा रही है ये बिल, जानिए- क्या है मजबूरी

नई दिल्ली, प्रेट्र। इस बात की पूरी संभावना है कि केंद्र सरकार संसद के मौजूदा सत्र के दौरान विवादास्पद फाइनेंशियल रिजॉल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस (एफआरडीआइ) बिल को वापस लेने जा रही है। दरअसल, इस बिल को लेकर न सिर्फ विशेषज्ञ बल्कि राजनीतिक नेता भी कई आशंका जता चुके हैं। 

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ये है विरोध की वजह
दरअसल, इस बिल में एक बेल इन क्लॉज है, जो कहता है कि अगर कोई बैंक दिवालिया हो जाता है तो उसे उबारने के लिए जमाकर्ताओं की रकम का इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि इस बिल में कई खूबियां भी हैं लेकिन इसके विरोधी इस एक प्रावधान को लेकर प्रचार कर रहे हैं कि मोदी सरकार जनता के पैसे से बैंकों को उबारने जा रही है।

कैबिनेट में पास हुआ प्रस्ताव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में एफआरडीआइ बिल, 2017 को वापस लेने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई। अब संभावना है कि सरकार 10 अगस्त को खत्म हो रहे संसद के मौजूदा मानसून सत्र में ही इसे वापस ले लेगी।

पिछले साल पेश किया गया था बिल
केंद्र सरकार ने 11 अगस्त, 2017 को इस बिल को लोकसभा में पेश किया था। इसमें शामिल बेल इन क्लॉज की वजह से इसका विरोध हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रावधान की वजह से जमाकर्ताओं की जमाराशि खतरे में पड़ सकती है। इस विरोध के मद्देनजर सरकार ने बिल को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया है। समिति 10 अगस्त तक अपनी रिपोर्ट देने वाली है।

सरकार की दलील, बेवजह है आशंका
सरकार का कहना है कि एफआरडीआइ बिल के बेल इन क्लॉज का बेवजह विरोध किया जा रहा है। बैंकों में जमाकर्ताओं के डिपॉजिट पूरी तरह सुरक्षित हैं। पिछले साल दिसंबर में यह मामला उठने पर तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी जमाकर्ताओं को आश्वस्त किया था कि किसी भी कीमत पर उनके हितों की रक्षा की जाएगी। इस साल जनवरी में आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा था कि 70 फीसदी जमा धन सरकारी बैंकों में हैं। बाकी रकम भी मजबूत प्राइवेट बैंकों में हैं, जिनके लिए पूंजी का पर्याप्त प्रावधान किया गया है। इसलिए ज्यादातर बैंकों को बेल इन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।


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