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एस-400 खरीदने के लिए रूस से करार, मोदी व पुतिन की अगुवाई में हुई बैठक में लगी मुहर

अमेरिका की नाराजगी के बावजूद भारत ने रूस से पांच एस-400 मिसाइल समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। आंतकवाद पर रूस और भारत मिलकर अब दोहरा वार करेंगे।

By Manish NegiEdited By: Published: Fri, 05 Oct 2018 09:33 AM (IST)Updated: Fri, 05 Oct 2018 09:02 PM (IST)
एस-400 खरीदने के लिए रूस से करार, मोदी व पुतिन की अगुवाई में हुई बैठक में लगी मुहर
एस-400 खरीदने के लिए रूस से करार, मोदी व पुतिन की अगुवाई में हुई बैठक में लगी मुहर

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। दुश्मन देशों के खतरनाक मिसाइलों को हवा में ही नष्ट करने वाली रूस की वायु रक्षा प्रणाली एस-400 अब भारत की रक्षा करेगी।

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पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के बीच नई दिल्ली में शुक्रवार को हुई सालाना बैठक में एस-400 ट्रायंफ सिस्टम को खरीदने पर अंतिम मुहर लग गई। रूस पर प्रतिबंध लगाने संबंधी अमेरिकी काटसा कानून की संवेदनाओं को देखते हुए दोनो पक्षों ने इस बारे में हुए करार को मीडिया के सामने लाने से परहेज किया है। अमेरिका ने भी इस बात के संकेत दिए है कि वह इस करार को अ‍ड़यिल रवैया नहीं अपनाएगा।

4.30 घंटे लंबी बातचीत में अहम मुद्दे पर समझौते
भारत और रूस के बीच शुक्रवार को 19वीं सालाना बैठक थी, जिसमें अगुवाई करने के लिए राष्ट्रपति पुतिन गुरुवार को नई दिल्ली पधारे थे। शुक्रवार को उनकी पीएम नरेंद्र मोदी के साथ कुल मिला कर 4.30 घंटे लंबी बातचीत हुई। इसमें डेढ़ घंटे दोनों नेताओं की एकांत में वार्ता हुई।

दोनों नेताओं के बीच रूस में भारत की तरफ से नई तेल ब्‍लॉक खरीदने, साथ मिलकर नागरिक विमान बनाने, मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर शीघ्रता से सहमति बनाने, साथ मिल कर दूसरे देशों में कनेक्टिविटी परियोजनाओं को लागू करने जैसे अहम मुद्दों पर ठोस बात हुई। अगले पांच वर्षों का द्विपक्षीय सहयोग का एजेंडा बनाने की जिम्मेदारी दोनो देशों के विदेश मंत्रियों को सौंपा गया। साथ ही आठ समझौतों पर हस्ताक्षर भी हुए, जिसे सार्वजनिक किया गया। लेकिन दुनिया की सबसे आधुनिक वायु रक्षा प्रणाली एस-400 को लेकर हुए समझौते को सार्वजनिक नहीं किया गया है।

एक साथ 36 निशानें लगा सकता है एस-400
सूत्रों के मुताबिक भारत को एस-400 ट्रायंफ सिस्टम की आपूर्ति दो वर्षो बाद शुरू हो जाएगी। भारत फिलहाल इसके पांच स्क्वाड्रन खरीदेगा। हर स्क्वाड्रन में दो मिसाइल सिस्टम होते हैं। इसकी लागत तकरीबन 39 हजार करोड़ रुपये आएगी। इसे देश के पांच अहम शहरों या रणनीतिक दृष्टिकोण से अहम माने जाने वाले इलाकों में तैनात किया जा सकता है।

यह पाकिस्तान और चीन की तमाम आधुनिक मिसाइलों को नष्ट कर सकता है। यह मिसाइलों को 600 किलोमीटर दूर ही पहचान लेता है और उन्हें लक्ष्य से पहुंचने से 60 किलोमीटर पहले नष्ट कर सकता है। यही नहीं, यह एक साथ 36 निशानें लगा सकता है। इस तरह से यह पूरे मिसाइल अटैक को निष्फल बनाने की क्षमता रखता है।

रूस ने कहा, नये युग का आरंभ
सनद रहे कि भारत से पहले चीन रूस से इस प्रणाली को खरीद चुका है। दोनों देशों के बीच इसकी और खरीद को लेकर बातचीत जारी है। सूत्रों ने साफ तौर पर बताया कि भारत को यह सिस्टम बेचा जा रहा है यानी इसके निर्माण या तकनीकी हस्तांतरण आदि पर बात नहीं हुई है। भारत के साथ एक बड़ा सौदा करके निश्चित तौर पर रूस बेहद खुश है।

रूस ने कहा है कि भारत व रूस के पारंपरिक रक्षा सहयोग के क्षेत्र में एक नये युग का आरंभ हो रहा है। मोदी व पुतिन के बीच रक्षा सहयोग को लेकर दूसरे कई मुद्दों पर बात हुई है। जिसमें मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत भारत में हथियारों का निर्माण शामिल है। लेकिन इसके बारे में अभी खुलासा नहीं किया गया है।


अमेरिका ने भी दिये नरमी के संकेत
सनद रहे कि भारत व रूस के बीच एस-400 खरीद पर अमेरिका की भृकुटियां तनी हुई थी क्योंकि उसने रूस पर काउंटरिंग अमेरिका एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शन एक्ट (काटसा) लगा रखा है। शुक्रवार को नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास ने एस-400 पर एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर यह संकेत देने की कोशिश की है कि वह इस सौदे को लेकर फिलहाल विचार कर रहा है।

इसके मुताबिक, ''काटसा प्रतिबंध का मकसद रूस के रक्षा क्षेत्र में बाहरी मुद्रा को आने से रोकना है। लेकिन यह हमारे रणनीतिक साझेदारों की सैन्य क्षमताओं को नुकसान के लिए नहीं है। साथ ही यह हर सौदे पर प्रतिबंध लगाने का तरीका नहीं है बल्कि यह हर सौदों के मुताबिक फैसला करता है। इसके तहत छूट देने की भी व्यवस्था है लेकिन वह काफी कठिन है। काटसा के तहत सौदों को छूट देने पर विचार किया जाएगा।''

क्या है काटसा कानून
बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अगस्त 2017 में 'काटसा' पर हस्ताक्षर किए थे। ट्रंप ने अगस्त 2017 में रूस पर प्रतिबंध लगाने के मकसद से इस कानून पर हस्ताक्षर किए थे। इसे ‘काटसा’ नाम दिया गया। इसके तहत अमेरिका रूस से बड़ा रक्षा समझौता करने वाले देशों पर प्रतिबंध लगा सकता है।


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