कांग्रेस-JDS को 'सुप्रीम' झटका, बोपैया बने रहेंगे प्रोटम स्पीकर; बहुमत परीक्षण का होगा लाइव प्रसारण
कर्नाटक में प्रोटेम स्पीकर केजी बोपैया ही कराएंगे बहुमत परीक्षण। सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस और जेडीएस की याचिका को खारिज किया।
नई दिल्ली (माला दीक्षित)। कर्नाटक में बहुमत परीक्षण से पहले कांग्रेस और जेडीएस को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति पर बड़ा फैसला लेते हुए दोनों दलों की याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट के फैसले के बाद अब केजी बोपैया ही प्रोटेम स्पीकर रहेंगे और वो ही आज शाम 4 बजे बहुमत परीक्षण कराएंगे। हालांकि शक्ति परीक्षण की पारदर्शिता को बनाने रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पूरी प्रक्रिया का लाइव प्रसारण करने का भी आदेश दिया है। बता दें कि कोर्ट में कांग्रेस के वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया है कि बोपैया का इतिहास दागदार रहा है। उन्होंने कहा कि सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करना चाहिए।
कांग्रेस डरी हुई है : रोहतगी
भाजपा के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की सभी याचिका सुनी और खारिज कर दी। उन्हें (केजी बोपैया) पद से हटाने का कांग्रेस का प्रयास विफल रहा। मुझे लगता है कि वे डरे हुए हैं और फ्लोर टेस्ट भी नहीं चाहते थे।'
हमें जीत का भरोसा है : कांग्रेस
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, 'पारदर्शिता स्थापित करना हमारा सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य था। चूंकि यह बयान एएसजी की ओर से आया है कि बहुमत परीक्षण का लाइव प्रसारण होगा। हम आशा करते हैं कि पारदर्शिता से बहुमत परीक्षण होगा । कांग्रेस और जेडीएस की जीत का पूरा भरोसा है।'
SC में सुनवाई के दौरान दलीलें
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बोपैया ही प्रोटेम स्पीकर बने रहेंगे, बोपैया ही बहुमत परीक्षण कराएंगे।
- कोर्ट ने कहा कि पारदर्शिता बनाए रखने के लिए बहुमत परीक्षण का लाइव टेलीकास्ट होगा
- जस्टिस बोबडे: अगर आप (सिब्बल) स्पीकर के निर्णय पर सवाल उठाएंगे तो हमे प्रोटेम को नोटिस जारी करना होगा, ऐसे में बहुमत परीक्षण को भी टालना पड़ सकता है, क्योंकि पहले बोपैया की नियुक्ति की जांच करनी होगी।
- इस पर जस्टिस बोबडे ने टिप्पणी की और कहा कि 'ऐसे भी कई उदाहरण हैं जहां वरिष्ठ सदस्य को प्रोटेम स्पीकर नहीं बनाया गया.' कपिल सिब्बल ने ये भी कहा कि बात सिर्फ वरिष्ठतम की नहीं है, बल्कि पुराने इतिहास की भी है, ऑपरेशन लोटस की बात है।
- कपिल सिब्बल ने कहा कि पुरानी परंपरा कर्नाटक में तोड़ी गई और सुप्रीम कोर्ट पहले भी दो फैसलों को ठीक कर चुका है।
- कपिल सिब्बल ने कोर्ट में ये भी दलील दी है कि प्रोटेम स्पीकर बोपैया का इतिहास दागदार रहा है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट को भी उनके कामकाज की आलोचना करनी पड़ी।
- सिब्बल ने कोर्ट में कहा कि कर्नाटक के राज्यपाल ने गलत परंपरा शुरू की है, जबकि सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है।
- सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस की दलील है कि सबसे वरिष्ठतम विधायक ही बनता है प्रोटेम स्पीकर।
- सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। कपिल सिब्बल कर रहे हैं कांग्रेस की दलीलों का बचाव।
वैसे तो सुप्रीम कोर्ट में शनिवार और रविवार को छुट्टी होती है, लेकिन प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति को लेकर छुट्टी वाले दिन भी सुप्रीम कोर्ट खुला है। इससे पहले बुधवार को भी कर्नाटक की सियासी जंग ने आधी रात को सुप्रीम कोर्ट के ताले खुलवा दिए थे। बता दें कि कांग्रेस और जेडीएस ने राज्यपाल के प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिका में प्रोटेम स्पीकर के अधिकार सीमित करने की मांग भी की गई है। साथ ही अर्जी मे सुप्रीम कोर्ट के शुक्रवार के आदेश में संशोधन की मांग करते हुए संसदीय परंपरा के अनुसार सबसे वरिष्ठ विधायक को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किये जाने और सदन की कार्यवाही की वीडियोग्राफी कराये जाने की मांग की गई है।
प्रोटेम स्पीकर के अधिकार सीमित हो : कांग्रेस
कांग्रेस और जेडीएस ने अपनी याचिका में कहा है कि दूसरे पक्ष ने एक जूनियर विधायक को प्रोटेम स्पीकर बना दिया है। साथ ही मांग की गई है कि प्रोटेम स्पीकर विधायकों को शपथ दिलाने और फ्लोर टेस्ट कराने के अलावा किसी दूसरे अधिकार का इस्तेमाल न करें। दोनों ही दलों ने इस दौरान प्रोटेम स्पीकर के पद पर केजी बोपैया की नियुक्ति को जिस आधार पर चुनौती दी है, उनमें पहला यह है कि वह सदन में जूनियर हैं। सदन में उनसे ज्यादा वरिष्ठ सदस्य मौजूद है। ऐसे में जूनियर को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाना गलत है। याचिका में केजी बोपैया के पूर्व में स्पीकर रहते हुए सदस्यों को अयोग्य ठहराने में पक्षपात करने के आरोप लगाए गए हैं और इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के 2010 के आदेश में बोपैया के खिलाफ की गई टिप्पणियों का हवाला दिया गया है।
राज्यपाल ने बोपैया को दिलाई प्रोटेम स्पीकर की शपथ
बता दें कि कर्नाटक के राज्यपाल ने विधानसभा में शनिवार को शक्ति परीक्षण कराने के लिए भाजपा के वरिष्ठ विधायक केजी बोपैया को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया है। विराजपेट से विधायक बोपैया सदन के स्पीकर रह चुके हैं। कांग्रेस-जद (एस) राज्यपाल के इस फैसले के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए।
कौन हैं केजी बोपैया
कर्नाटक विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किए गए केजी बोपैया चार बार विधायक रह चुके हैं। वह कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष रह चुके हैं और पहले भी एक बार उन्हें प्रोटेम स्पीकर बनाया गया था।
दो वरिष्ठ विधायकों का नाम भेजा गया था
विधानसभा सचिवालय की ओर से प्रोटेम स्पीकर के लिए आरवी देशपांडे और उमेश कट्टी के नाम भेजे गए थे। लेकिन कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला ने भाजपा विधायक बोपैया को प्रोटेम स्पीकर की शपथ दिलाई। बोपैया 2009 से 2013 तक कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं। 2008 में उन्हें चार दिनों के लिए प्रोटेम स्पीकर बनाया गया था और इसके बाद वह उपाध्यक्ष चुने गए थे।
सबसे अहम है प्रोटेम स्पीकर का रोल
नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाने और इसके बाद बहुमत परीक्षण करवाने की जिम्मेदारी प्रोटेम स्पीकर की होती है। इस वजह से पूरे घटनाक्रम में प्रोटेम स्पीकर का रोल सबसे अहम हो जाता है। प्रोटेम स्पीकर हालांकि बहुमत परीक्षण के दौरान खुद वोटिंग नहीं कर सकता है, पर स्पीकर की तरह उनके पास भी टाई होने की स्थिति में निर्णायक वोट करने का अधिकार होता है। इसके अलावा उनका सबसे अहम रोल किसी भी वोट को क्वालीफाई या डिसक्वालिफाई करने में होगा।
शनिवार शाम 4 बजे होगा बहुमत परीक्षण
सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार शाम चार बजे येद्दयुरप्पा को कर्नाटक विधानसभा में बहुमत साबित करने को कहा है। कोर्ट का यह फैसला एक तरह से कांग्रेस और जेडीएस के लिए राहत लेकर आया है और कांग्रेस ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताने में भी देर नहीं लगायी। हालांकि भाजपा की ओर से इसका विरोध करते हुए कुछ समय और मांगा गया, लेकिन कोर्ट ने इसके लिए इन्कार कर दिया। भाजपा के वकील सात दिन का समय चाहते थे।
अभी क्या हैं कर्नाटक के हालात
कर्नाटक विधानसभा में 222 सीटों के लिए चुनाव हुए हैं। यानी बहुमत के लिए 112 सीटों की जरूरत होगी।भाजपा के 104 विधायक जीतकर आए हैं। जेडीएस के 37 और कांग्रेस के 78 विधायक और 3 अन्य जीत कर आए हैं। यानी बहुमत साबित करने के लिए भाजपा को अब भी 8 विधायकों की जरूरत पड़ेगी। लेकिन जेडीएस के कुमारस्वामी दो सीटों से जीतकर विधायक बने हैं। ऐसे में उन्हें एक सीट से इस्तीफा देना पड़ेगा। तो फिर 221 सीट के लिहाज से भाजपा को 111 सीटों की जरूरत पड़ेगी बहुमत साबित करने के लिए।