Move to Jagran APP

कर्नाटक चुनावः उलझी लड़ाई में थमे-थमे से हैं दावेदार दलों के कदम

कांग्रेस यह जानती है कि उसकी आगे की लड़ाई और विपक्ष में खुद को स्थापित रखने के लिए कर्नाटक की जीत बहुत जरूरी है।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Mon, 16 Apr 2018 11:32 PM (IST)Updated: Tue, 17 Apr 2018 12:47 PM (IST)
कर्नाटक चुनावः उलझी लड़ाई में थमे-थमे से हैं दावेदार दलों के कदम
कर्नाटक चुनावः उलझी लड़ाई में थमे-थमे से हैं दावेदार दलों के कदम

तुमकूर (प्रशांत मिश्र)। दावा है पर भरोसा.? कर्नाटक में आप घूम घूमकर कांग्रेस या भाजपा के नेताओं से पूछ लें, इसका संतोषजनक जवाब नहीं मिलेगा। लगभग एक साल से दोनों मुख्य प्रतिद्वंद्वी दल तैयारियों में जुटे हैं, एक महीने के अंदर चुनावी नतीजा आना है लेकिन फिर भी किसी के दिल में यह अटूट विश्वास क्यों नहीं है कि वही जीतेगा? यह सवाल नेताओं को थोड़ा सतर्क करता है और फिर से दावे शुरू हो जाते हैं, कुछ किंतु परंतु के साथ। कहते हैं- बस फलां फलां चीज हो जाए तो फिर जीत पक्की है। सच्चाई यह है कि भविष्य के लिहाज से दोनों दलों के लिए बहुत अहम कर्नाटक में अभी भी बहुत कुछ करने को बाकी है। आखिरी वक्त पर जिसका दाव भारी होगा, बाजी उसके हाथ होगी। और इस लिहाज से प्रदेश भाजपा यह आस संजोए बैठी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दौरा शुरू हो।

loksabha election banner

कांग्रेस यह जानती है कि उसकी आगे की लड़ाई और विपक्ष में खुद को स्थापित रखने के लिए कर्नाटक की जीत बहुत जरूरी है। जिस तरह फेडरल फ्रंट बनाने की कोशिश हो रही है उसमें हारने का अर्थ होगा क्षेत्रीय दलों के सामने बेबस खड़ा होना। कांग्रेस के चेहरे और कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के लिए तो खैर यह जीवन मरण का सवाल है। वहीं गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव की हार के बाद कर्नाटक की जीत ही भाजपा को दूसरे राज्यों की लड़ाई के लिए खड़ा करेगी। दक्षिण भारत में यह अकेला राज्य है जहां मोटे तौर पर आमना सामना सीधे कांग्रेस से है। जदएस छोटी पार्टी है।

ऐसा नहीं कि सत्ताधारी कांग्रेस के खिलाफ सत्ताविरोधी लहर नहीं है। ऐसा भी नहीं कि मुद्दे की कमी हो और ऐसा भी नहीं है कि भाजपा के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बीएस येद्दयुरप्पा का प्रभाव कम हो गया हो। लेकिन एक बड़ी कमी है जिससे प्रदेश के ये दोनों ही नेता नहीं उबर पा रहे हैं- वह यह है कि कोई भी जनता में वह लहर पैदा करने में असमर्थ रहे हैं जिससे फ्लोटिंग वोटर पाले में आ सके। इस बार ऐसे फ्लोटिंग वोटर की संख्या कुछ ज्यादा हो सकती है इसका अंदाजा तुमकूर में भी देखा जा सकता है। यहीं वह मठ है जो लिंगायत संप्रदाय में अहम माना जाता है। एक प्रोफेसर एमडी सदाशिवैया टकराते हैं और उनसे चुनावी भविष्यवाणी करने को कहता हूं तो जवाब आता है- 'अभी कुछ नहीं कह सकते, मोदी जी के आने के बाद बहुत कुछ बदलेगा। वह क्या कहते हैं उसपर सबकी नजरें होंगी।'

बताने की जरूरत नहीं कि प्रोफेसर साहब क्या कहना चाहते हैं। मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने चाहे जितने भी संवेदनशील मुद्दे छेड़े हों फिर वह लिंगायत को अल्पसंख्यक दर्जा का विषय हो या कर्नाटक के अलग झंडा देने का प्रस्ताव हो, उसका असर बहुत सीमित रहा है। दूसरी ओर येद्दयुरप्पा भले ही पूरे कर्नाटक का दौरा कर आए हों, जनता से वादे कर आए हो, वोटर का भरोसा तब होगा जब भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व यानी प्रधानमंत्री मोदी बोलेंगे। ध्यान रहे कि तुमकूर ओल्ड मैसूर क्षेत्र में आता है जो कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा है।

वर्ष 2008 में जब दक्षिण में भाजपा की पहली सरकार बनी थी तब भी कांग्रेस यहां से भाजपा से ज्यादा सीटें जीतने में सफल रही थी और 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब पूरे देश में बदलाव की लहर चल रही थी उस वक्त भी कांग्रेस भाजपा के मुकाबले बीस रही थी। जाहिर है कि भाजपा को उत्तर और तटीय कर्नाटक मे ही अपनी दमदार प्रदर्शन दिखाना होगा। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने तो 224 सीटों की विधानसभा में 150 प्लस का लक्ष्य दिया है। वह लक्ष्य पूरी तरह मोदी के जलवे और शाह के माइक्रो मैनेजमेंट के सहारे ही पाया जा सकता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.