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कमलनाथ को धैर्य की पारी ने बनाया मध्यप्रदेश का नया शहंशाह

मध्यप्रदेश की सत्ता की कप्तानी कमलनाथ को सौंपे जाने में सियासी समीकरणों के साथ हाईकमान विशेषकर गांधी परिवार से दशकों पुरानी निकटता की भी अहम भूमिका है।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Thu, 13 Dec 2018 08:50 PM (IST)Updated: Fri, 14 Dec 2018 06:53 AM (IST)
कमलनाथ को धैर्य की पारी ने बनाया मध्यप्रदेश का नया शहंशाह
कमलनाथ को धैर्य की पारी ने बनाया मध्यप्रदेश का नया शहंशाह

संजय मिश्र, नई दिल्ली। राजनीति वाकई ट्वेंटी-टवेंटी नहीं बल्कि टेस्ट मैच क्रिकेट है जिसमें संयम और धैर्य की लंबी पारी शिखर तक ले जाती है। चार दशक तक राष्ट्रीय राजनीति की पिच पर बैटिंग करने वाले मध्यप्रदेश की सियासत के नये शहंशाह बने कमलनाथ की सूबे की नई पारी इसी बात को साबित करती है। मध्यप्रदेश की सत्ता की कप्तानी कमलनाथ को सौंपे जाने में सियासी समीकरणों के साथ हाईकमान विशेषकर गांधी परिवार से दशकों पुरानी निकटता की भी अहम भूमिका है।

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राजनीति के रण में आज पार्टियां नये चेहरों पर दांव लगाने को ज्यादा मुफीद मान रहीं। ऐसे दौर में भी कमलनाथ जैसे कांग्रेस की पुरानी पीढ़ी के नेता को सूबे की सत्ता की कप्तानी सौंपे जाना सहज बात नहीं है। वह भी तब जब ज्योतिरादित्य सिंधिया सरीखे नई पीढ़ी के चेहरे अपनी राजनीतिक लोकप्रियता के दायरे का विस्तार करते दिखाई दे रहे हों। कमलनाथ 1977-78 के दौर में कांग्रेस की संजय गांधी की टीम के युवा चेहरे के रुप में उभरकर सामने आए। तब संजय की युवाओं की टीम में गुलाम नबी आजाद और अंबिका सोनी के साथ कमलनाथ भी खास थे। उसी दौरान इंदिरा गांधी से भी उनकी निकटता बन गई।

गांधी परिवार से शुरू हुई निकटता ने उनके राजनीतिक कैरियर को ऐसी शुरूआत दी कि पहली बार 1980 में छिंदवाडा से लोकसभा सांसद बने कमलनाथ 16वीं लोकसभा में सबसे वरिष्ठ सांसदों में एक हैं। इसीलिए जब नई लोकसभा गठित हुई तो प्रोटेम स्पीकर के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सभी सांसदों को शपथ कमलनाथ ने ही दिलाई थी।

कांग्रेस में यह सर्वविदित है कि खुद इंदिरा गांधी और संजय गांधी ने 1980 के आम चुनाव में जीतने की बेहतर संभावना वाली सीट के रुप में छिंदवाडा का चयन कर कमलनाथ को मध्यप्रदेश भेजा। यहीं से उत्तरप्रदेश के कानपुर में जन्मे कोलकाता में पले-बढ़े कमलनाथ ने मध्यप्रदेश को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाई तो कभी मुड़ कर नहीं देखा। तभी नौ बार यहां से लोकसभा चुनाव जीते कमलनाथ और छिंदवाड़ा एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं।

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अपने सियासी सफर में केवल एक बार 1997 में यहां सुंदरलाल पटवा जैसे दिग्गज से उन्हें उपचुनाव में शिकस्त मिली मगर 1998 के चुनाव में उन्होंने बाजी पलट दी। गांधी परिवार से उनकी निकटता राजीव गांधी व सोनिया गांधी के दौर में और गहरी हुई। राजनीतिक वजहों के साथ यह निकटता ही रही है कि कांग्रेस के सबसे चुनौतीपूर्ण दौर में राहुल गांधी को भी मध्यप्रदेश जैसे बड़े सूबे में कमलनाथ ही सबको साधते हुए नतीजे देने वाले भरोसेमंद चेहरा नजर आए हैं।

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मध्यप्रदेश की सत्ता के नये शहंशाह कमलनाथ की छवि वैसे जननेता की नहीं रही है। मगर प्रशासनिक व प्रबंधन क्षमता के साथ विरोधियों को भी साथ लेकर चलने में उन्हें बेहद कुशल माना जाता है। भाजपा के भी कई बड़े नेताओं से भी उनके अच्छे रिश्ते रहे हैं जिसमें शिवराज सिंह चौहान भी शामिल हैं।

मध्यप्रदेश के विकास के मुद्दे पर राजनीति को आड़े नहीं आने देने का कमलनाथ का नजरिया भी उनके विरोधी खेमे में अच्छे रिश्ते की वजह मानी जाती है। यूपीए की दस साल की सरकार के दौरान सूबे के विकास के मुद्दे पर कमलनाथ ने शिवराज के अनुरोध पर अलग-अलग मंत्रालयों के मसले का समाधान निकालने में भूमिका निभाई। सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्री रहने के दौरान मध्यप्रदेश को कुछ अहम सड़क परियोजनाएं भी दी।

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नरसिंह राव सरकार में पहली बार स्वतंत्र प्रभार के साथ पर्यावरण मंत्री बने कमलनाथ 1992 में रियो द जिनेरो सम्मेलन में विकासशील देशों के मुखर प्रवक्ता के रुप में उभरे जहां इन देशों ने विकसित राष्ट्रों की दादागिरी पर सवाल उठाए थे। मनमोहन सिंह सरकार में वाणिज्य व उद्योग मंत्री के रुप में देश की विदेश-व्यापार नीति से लेकर डब्लूटीओ और जी-20 जैसे अहम मंचों पर अपनी क्षमताओं का इजहार किया। यूपीए दो सरकार के आखिरी के दो सबसे मुश्किल साल जब विपक्ष बेहद आक्रामक था तब संसदीय कार्यमंत्री के रुप में कारगर भूमिका निभाई। इसमें उनके निजी रिश्तों और कुशल प्रबंधन क्षमता का अहम योगदान रहा।

राजनीति में नेताओं का कार्यकर्ताओं ही नहीं जनता से सीधा संवाद सत्ता की कुंजी मानी जाती है। शिवराज सिंह चौहान इसका सबसे ताजा उदाहरण हैं। वैसे प्रदेश कांग्रेस की कमान थामने से पहले कमलनाथ का यह संवाद मुख्य रुप से छिंदवाड़ा तक ही सीमित था। विकास के मानचित्र पर अपने क्षेत्र का नक्शा बदलने के लिए चर्चित कमलनाथ की खासियत यह भी रही है कि छिंदवाडा से उनके दरवाजे पर दिल्ली आने वाले वे हर शख्स से चाहे कुछ पल ही सही मिलते जरूर थे।

दिन के किसी पहर वक्त हो न हो वे दिल्ली से छिंदवाड़ा जाने वाली ट्रेन की रवानगी के कुछ समय पूर्व लोगों से मुलाकात जरूर करते थे। ताकि उन्हें बेवजह रात में रुकना न पड़े। जाहिर तौर पर कांग्रेस की बदलाव की आवाज पर मुहर लगाने वाली मध्यप्रदेश की जनता सरकार के अपने नये कप्तान कमलनाथ से अपनी अपेक्षाओं व आकांक्षाओं को लेकर कुछ ऐसी ही सजगता-सहृदयता की उम्मीद करेगी।


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