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ज्योतिरादित्य सिंधिया और केपी यादव आए एक साथ, रिश्तों पर जमी बर्फ पिघली

सिंधिया जब भाजपा में आए तो केपी को यह नागवार लगा लेकिन अब रिश्तों पर जमी बर्फ अब पिघल गई लग रही है। उपचुनाव की तैयारी में जुटी भाजपा ने दोनों को करीब ला दिया।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Wed, 08 Jul 2020 03:08 PM (IST)Updated: Wed, 08 Jul 2020 03:08 PM (IST)
ज्योतिरादित्य सिंधिया और केपी यादव आए एक साथ, रिश्तों पर जमी बर्फ पिघली
ज्योतिरादित्य सिंधिया और केपी यादव आए एक साथ, रिश्तों पर जमी बर्फ पिघली

 भोपाल, जेएनएन। पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को लोकसभा चुनाव में पराजित करने वाले सांसद केपी यादव किसी दौर में उनके करीबी हुआ करते थे। केपी सिंधिया परिवार के वाहन चालक थे। एक उपचुनाव में टिकट मांग रहे केपी की अनदेखी हुई तो उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। केपी यादव ने सिंधिया से बगावत कर उन्हें लोकसभा चुनाव में पराजित किया तो वह पूरे देश में सुर्खियों में आ गए। सिंधिया जब भाजपा में आए तो केपी को यह नागवार लगा लेकिन, अब रिश्तों पर जमी बर्फ अब पिघल गई लग रही है। उपचुनाव की तैयारी में जुटी भाजपा ने दोनों को करीब ला दिया। अशोकनगर में हुई वर्चुअल रैली में दोनं ने एक दूसरे की तारीफ की। केपी ने सिंधिया के साथ काम करने में खुशी जताई है। सिंधिया ने भी कहा है कि हम एक हैं।

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बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में गुना-शिवपुरी सीट पर भाजपा ने केपी यादव को उतारकर ज्योतिरादित्य सिंधिया को करारी मात दी थी। हालांकि, एक दौर में केपी यादव मूंगावली जिला पंचायत में ज्योतिरादित्य सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि हुआ करते थे। मूंगावली सीट पर 2018 के उपचुनाव में केपी यादव ने सिंधिया से टिकट की मांग की थी, लेकिन कांग्रेस से केपी यादव के बजाय बृजेन्द्र यादव को प्रत्याशी बनाया था। इसके बाद केपी यादव ने भाजपा का दामन थाम लिया था।

इसके बाद से केपी यादव ने सिंधिया के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सिंधिया के खिलाफ केपी यादव पर दांव लगाया और वो सफल रहा। हालांकि, यहीं से मध्य प्रदेश का सियासी समीकरण भी गड़बड़ाया और सिंधिया ने अपने 22 समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। 

भाजपा में आने के बाद सिंधिया राजनीतिक तौर पर काफी मजबूत स्थिति में हैं। उन्होंने मूंगावली में अपनी राजनीतिक पकड़ को मजबूत करने के लिए बृजेंद्र यादव को आगे बढ़ाया और शिवराज सरकार में राज्यमंत्री बनवाने में कामयाब रहे। इसे केपी यादव की सियासी तौर पर कमजोर करने का दांव भी माना गया। भाजपा की मूंगावली और बमोरी में वर्चुअल रैली में केपी यादव नहीं जुड़े, जिसे लेकर तमाम सवाल खड़े हुए थे। ऐसे में अशोकनगर की वर्चुअल रैली में दोनों नेता एक साथ नजर आ गए।


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