जस्टिस सीकरी को निशाना बनाने वालों पर भड़के मार्कंडेय काटजू, जानें क्या कहा
Supreme court के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने जस्टिस एके सीकरी को निशाना बनाने वाले पत्रकारों को आड़े हाथों लिया है।
जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू विवादित मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। ताजा मामले में उन्होंने जस्टिस एके सीकरी को निशाना बनाने वाले पत्रकारों को आड़े हाथों लिया है।
सोमवार को फेसबुक पर एक लंबा पोस्ट लिखकर उन्होंने पूछा है कि क्या भारतीय मीडिया को कोई शर्म नहीं है? हमारे ज्यादातर सड़े और बेशर्म मीडिया ने जस्टिस सीकरी को कीचड़ में धकेलने और उनकी प्रतिष्ठा को बर्बाद करने की कोशिश की है।
जस्टिस काटजू ने कहा कि प्रशासनिक व्यवस्था में दुष्ट, भ्रष्ट और धूर्त अधिकारी होते हैं। ऐसे अधिकारियों की आलोचना का अधिकार है। इसके साथ ही ईमानदार लोग भी होते हैं, जिनका सम्मान होना चाहिए। लेकिन, दुख की बात है कि मीडिया को अच्छे लोग नहीं दिखाई देते हैं। आप किसी भी शख्स को यूं ही नहीं बदनाम कर सकते हैं।
बताते चलें कि सीबीआइ निदेशक रहे आलोक वर्मा पर चयन समिति ने 2-1 से फैसला दिया कि वे इस संवेदनशील संगठन को संभालने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्य न्यायाधीश के प्रतिनिधि के रूप में आए जस्टिस सीकरी ने वर्मा के तबादले का फैसला किया। इस पर मीडिया के कुछ हिस्से में यह खबर आई कि जस्टिस सीकरी पोस्ट रिटायरमेंट का फायदा देख रहे थे।
जस्टिस काटजू ने सीकरी के साथ कुछ पुराने अनुभवों को भी साझा किया है। वे बताते हैं कि दिल्ली हाई कोर्ट में उनके मुख्य न्यायाधीश रहने के दौरान जस्टिस सीकरी उनके अधीनस्थ थे। उस दौरान वे रात को आठ बजे तक रुकते थे। सामान्य तौर पर वे पूछा करते थे कि क्या कोई जज अभी अपने चैंबर में मौजूद है?
इसके जवाब में सिर्फ एक ही उत्तर आता था कि जस्टिस सीकरी अपने चैंबर में हैं। वे उनके पास जाकर घर जाने के लिए कहते थे और साथ ही में यह भी कहते थे कि ज्यादा तनाव लेने की जरूरत नहीं है। उनकी निष्ठा पर आप सवाल नहीं उठा सकते हैं। दुख की बात है कि मीडिया के एक तबके ने उन्हें निशाना बनाया।
जस्टिस काटजू ने कहा कि कॉमनवेल्थ सेक्रेटारियट ऑर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से अलग होता है। इसके पदाधिकारी साल में दो या तीन बार मामलों की सुनवाई के लिए बैठते हैं। उन्हें उस काम के लिए नियमित भुगतान भी नहीं होता है। लिहाजा मीडिया को किसी शख्स को कठघरे में खड़ा करने के पहले सभी पहलुओं पर गौर करना चाहिए।