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आरक्षण विवाद में मध्यस्थता करेंगे मुख्यमंत्री, रूपाणी ने बुलाई उच्चस्तरीय बैठक

किसी मसले पर मतभेद होना और उसे उजागर करना लोकतंत्र का मूल तत्व है। इसके जरिये जनभावना सामने आती है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sat, 15 Feb 2020 08:16 PM (IST)Updated: Sat, 15 Feb 2020 08:16 PM (IST)
आरक्षण विवाद में मध्यस्थता करेंगे मुख्यमंत्री, रूपाणी ने बुलाई उच्चस्तरीय बैठक
आरक्षण विवाद में मध्यस्थता करेंगे मुख्यमंत्री, रूपाणी ने बुलाई उच्चस्तरीय बैठक

अहमदाबाद, राज्य ब्यूरो। लोक रक्षक दल भर्ती परीक्षा के परिपत्र को रद्द करने की मांग को लेकर गांधीनगर सत्‍याग्रह छावणी धरने पर बैठी एससी-एसटी तथा ओबीसी वर्ग की युवतियां शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीराबा से मिलने निकली, लेकिन पुलिस ने उन्हें बीच में ही रोक दिया। इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री रुपाणी खुद मध्यस्थता कर रहे हैं, जल्द इसके हल होने की उम्मीद है।

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गुजरात सरकार के जारी परिपत्र के खिलाफ धरना दो माह से चल रहा

गुजरात सरकार के कार्मिक विभाग की ओर से1 अगस्त 2018 में एक परिपत्र जारी किया गया था जिसके तहत एससी-एसटी व ओबीसी वर्ग की मेरिट सूची पहले बनाकर बाद में जनरल कैटेगरी की मेरिट सूची तैयार की गई। इसको लेकर लोक रक्षक दल भर्ती परीक्षा की आरक्षित वर्ग की अभ्यर्थियों ने युवतियों ने दो माह पहले गांधीनगर में धरना शुरु कर दिया।

सरकार के तरीकों से एससी-एसटी व ओबीसी को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा

उनका आरोप है कि सरकार के इस तरीके से आरक्षण का कोई लाभ इस वर्ग को नहीं हो रहा है, आरक्षित वर्ग की मेरिट में टॉप आने वाली युवतियों को भी आर‍क्षित सूची में डाल दिया। सरकार ने जब इस परिपत्र को रद्द करने के संकेत दिए तो अनारक्षीत वर्ग के नेता विरोध पर उतर आए। पाटीदार, राजपूत व ब्राम्हण समाज के नेताओं ने उप मुख्यमंत्री नीतिन पटेल से मुलाकात कर अपनी नाराजगी प्रगट की।

आरक्षित वर्ग की युवतियों को मोदी की मां से नहीं मिलने दिया

शनिवार को आरक्षित वर्ग की युवतियां पीएम मोदी की मां हीराबा से मिलकर अपनी व्यथा सुनाने के लिए सत्याग्रह छावणी से निकलकर गांधीनगर के ही रायसण गांव के व्रंदावन बंगला-2 पर जाने के लिए रवाना हुई लेकिन पुलिस ने उन्हें बीच में ही रोक लिया। पुलिस का कहना है कि धारा 144 होने तथा मंजूरी के बिना रैली निकालकर जाना कानून की अवहेलना है।

आरक्षित वर्ग के भाजपा व कांग्रेस का आंदोलनकारियों को समर्थन

आरक्षित वर्ग के भाजपा सांसद व विधायकों सहित कांग्रेस भी इस आंदोलन के समर्थन में आ गई जिसके चलते सरकार ने दबाव में आकर गत दिनों भरोसा दिलाया कि सरकार अग्सत 2018 के विवादास्पद परिपत्र को रद कर देगी, लेकिन अब अनारक्षित वर्ग इस परिपत्र के पक्ष में खडा हो गया। उधर आंदोलन कर रही युवतियों का आरोप है कि सरकार सामान्य वर्ग के नेताओं के साथ बैठकों को दौर कर रहा है, लेकिन दो माह से आंदोलन कर रही युवतियों से सरकार का एक प्रतिनिधि भी मिलने नहीं पहुंचा।

मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने मामले की समीक्षा के लिए बैठक बुलाई 

मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने खुद इस मामले की समीक्षा के लिए अपने आवास पर उच्चस्तरीय बैठक बुलाई जिसमें दोनों ही वर्ग की मांगों पर चर्चा हुई। बैठक में उप मुख्यमंत्री नीतिन पटेल, भाजपा अध्‍यक्ष जीतूभाई वाघाणी के अलावा मुख्यमंत्री कार्यालय के प्रधान सचिव के कैलाशनाथन आदि मौजूद थे।

किसी मसले पर मतभेद होना और उसे उजागर करना लोकतंत्र का मूल तत्व है। इसके जरिये जनभावना सामने आती है, लेकिन जब यही विरोध प्रदर्शन देश के हृदय स्थल पर राष्ट्रविरोधी या लोकतंत्र के खिलाफ आंदोलन में तब्दील हो जाए तो वह संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ होता है। यह बात सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख न्यायाधीशों में शुमार जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कही है। जाहिर है उनका इशारा देश के विभिन्न हिस्सों में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में हो रहे आंदोलनों को लेकर था।

मतभेदों को रोकने के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कानून-व्यवस्था का उल्लंघन है

15वें जस्टिस पीडी देसाई मेमोरियल व्याख्यान में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, मतभेदों को उजागर होने से रोकने के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल भी कानून व्यवस्था का उल्लंघन है। उन्होंने कहा, मतभेद उचित हैं, लेकिन ध्यान रहना चाहिए जब लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार विकास और सामाजिक समन्वय की योजना पेश कर रही हो तब मिश्रित समाज वाले देश में एकाधिकार की बात करना उचित नहीं है।

मतभेदों को महत्व न देने से सामाजिक विकास अवरुद्ध होता है

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, मतभेदों और सवालों को महत्व न देने से देश में राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास अवरुद्ध हो जाएगा। लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतभेद 'सेफ्टी वाल्व' की मानिंद हैं जिनसे होकर जनभावना सामने आती है और सरकार को उनके अनुसार नीतियों में सुधार करने का संदेश मिलता है, लेकिन यह सब संविधान के दायरे में होना चाहिए।


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