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इन 10 बातों से जानिए झारखंड विधानसभा चुनाव को, भाजपा की राह आसान-विपक्ष परेशान

झारखंड के अलावा दिल्ली हरियाणा और महाराष्ट्र ऐसे राज्य हैं जहां अगले कुछ महीनों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। झारखंड में नवंबर-दिसंबर में चुनाव होंगे।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sat, 08 Jun 2019 12:58 PM (IST)Updated: Sun, 09 Jun 2019 06:51 AM (IST)
इन 10 बातों से जानिए झारखंड विधानसभा चुनाव को, भाजपा की राह आसान-विपक्ष परेशान
इन 10 बातों से जानिए झारखंड विधानसभा चुनाव को, भाजपा की राह आसान-विपक्ष परेशान

रांची, [आलोक]। मोदी मैजिक ( MODI MAGIC) के सहारे जल-जंगल-जमीन के प्रदेश झारखंड (Jharkhand) में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election Results 2019) में धमाकेदार जीत के बाद भगवा लहर (Saffron Wave) अपनी बुलंदी पर है। इन चुनावों में झारखंड (Jharkhand) में तमाम कयासों को नकारते हुए एनडीए ने जहां शानदार प्रदर्शन कर महागठबंधन की बोलती बंद कर दी। वहीं कांग्रेस-झामुमो-झाविमो-राजद आदि विपक्षी पार्टियां अब तक अपने हार का कारण तक नहीं ढूंढ़ पा रहीं। बढ़े-चढ़े मनोबल के साथ भाजपा (BJP) ने इस बीच नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assembly Election 2019) की तैयारी शुरू कर दी है। अंदरखाने सभी 81 सीटों पर मंथन की प्रक्रिया आरंभ हो गई है।

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मुख्‍यमंत्री रघुवर दास (Raghubar Das) ने एक बार फिर कमान संभाल लिया है। संथाल जैसे झामुमो के गढ़ को फतह करने और शिबू सोरेन (Shibu Soren) जैसे कद्दावर को हराने के बाद बीजेपी (BJP) यहां दोबारा सत्‍ता में आने का दम भर रही है। वहीं झामुमो अपनी अगुआई में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव में जाने का मन बना रहा है। हालांकि, विपक्षी कुनबा भितरघात, दलबदल, आपसी खींचतान आदि परेशानी से समय रहते उबर जाएगा, यह देखने वाली बात होगी। विधानसभा चुनाव में किसके हाथ लगेगी बाजी, इन 10 बातों से समझिए...

  1. दांव पर होगी भाजपा की प्रतिष्ठा : लोकसभा चुनाव में परचम लहराने के बाद अब झारखंड में सत्‍ता में बने रहने की चुनौती भाजपा के सामने होगी। झारखंड गठन के बाद से पहली बार लगातार पांच साल तक सरकार चलाने को वे अपनी बड़ी ताकत के रूप में पेश करेंगे। पार्टी को अगले 5 महीनों में होने वाले विधानसभा चुनाव में जहां एंटी इंकबैंसी फैक्‍टर से निपटना होगा, वहीं विपक्षी पार्टियाें की ओर से की जाने वाली लोकलुभावन घोषणाओं की काट भी खोजनी होगी।
  2. महागठबंधन के सामने भाजपा की दावेदारी कितनी मजबूत : झारखंड में सत्‍ता विरोधी लहर के बीच लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 11 और उसकी सहयोगी आजसू पार्टी ने 1 सीट यानी कुल 14 में से 12 सीटों पर जीत दर्ज की। जबकि महागठबंधन को सिर्फ दो सीट नसीब हुई। इस लिहाज से बीजेपी की दावेदारी विधानसभा चुनाव में भी काफी मजबूत मानी जा रही है। सत्‍तारुढ़ भाजपा को उम्‍मीद है कि केंद्र और राज्‍य की विकासपरक सरकारी योजनाओं के चलते उन्‍हेें मतदाताओं का समर्थन हासिल होगा। बीजेपी ने इस बार विधानसभा चुनाव में अबकी बार 60 के पार का नारा दिया है।
  3. विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अलग होते हैं मुद्दे : राजनीतिक जानकार की भाषा में कहें तो लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव को एक नजरिए से नहीं देखा जा सकता। विधानसभा चुनाव में स्‍थानीय मुद्दे काफी अहम होते हैं। राज्‍य के मसले पर मतदाताओं की बारीक नजर होती है। इन चुनावों में पार्टी की अंदरुनी गुटबाजी से भी चुनाव परिणाम पर खासा असर पड़ता है। इनमें बिजली-पानी-सड़क-शिक्षा-स्‍वास्‍थ्‍य समेत कई स्थानीय मुद्दों की भूमिका काफी अहम होती है। पार्टी के अलावा उम्‍मीदवार भी बड़ा फैक्‍टर होता है।
  4. 40% पिछड़ी जाति और 27% आदिवासी के हाथ में सत्‍ता की चाबी:  झारखंड की आबादी की बात करें तो यहां करीब 27% आदिवासी, 35-40% पिछड़ी जाति, 12% अनुसूचित जाति के लोग हैं। इनमें 68% हिंदू, 14.5% मुसलमान, 4.3% ईसाई और 12.84% अन्‍य धर्म-संप्रदाय को मानने वाले लाेग हैं। चुनाव के लिहाज से देखा जाए तो 40% पिछड़ी जाति और 27% आदिवासी के हाथ में ही सत्ता की चाबी होती है। हालांकि, इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा को 51फीसद वोट हासिल हुआ है।
  5. अर्जुन मुंडा के केंद्रीय मंत्री बनने से भाजपा को संबल : आदिवासियों के बड़े नेता और भाजपा के खास चेहरे को खूंटी संसदीय क्षेत्र में जीत के बाद केंद्रीय मंत्री बनाया गया है। इससे भाजपा पर आदिवासियों का भरोसा बढ़ेगा। हाल के दिनों पर बीजेपी से दूर हो रहे आदिवासी बहुल इलाकों में पार्टी एक बार फिर से मुखर होकर अपने प्रतिद्वंद्वियों पर बढ़त हासिल कर सकेगी। अर्जुन के संबल और लोकसभा चुनाव के नतीजों से उत्‍साहित पार्टी कार्यकर्ताओं को जमीनी स्‍तर पर आदिवासियों से जुड़ाव में मदद मिलेगी। आदिवासी वोटबैंक पर भाजपा की पकड़ मजबूत होगी।
  6. संथाल में जिस पार्टी का कब्जा सत्ता उसकी : झारखंड में माना जाता रहा है कि संथाल में जिस पार्टी का कब्जा होता है सत्ता उसकी होती है। इस बार लोकसभा चुनाव में झामुमो को भाजपा ने संथाल में जबर्दस्‍त पटकनी दी है। झामुमो सुप्रीमो और आदिवासियों के बड़े नेता शिबू सोरेन को दुमका की परंपरागत सीट पर करारी शिकस्‍त देकर जहां भाजपा ने जेएमएम के गढ़ में सेंध लगा दी, वहीं आने वाले दिनों में गुरुजी की पकड़ आदिवासियों पर कमजोर करने के और पैंतरे भी आजमाए जा सकते हैं।
  7. भाजपा में अंदरुनी विरोध, रघुवर दास पर खींचतान : मुख्‍यमंत्री रघुवर दास की बात करें तो संभव है कि भाजपा एक बार फिर उनके नेतृत्‍व में ही झारखंड में विधानसभा चुनाव लड़े। ऐसे में पार्टी में उनके विरोधी खेमे की सुगबुगाहट भी बढ़ेगी। लोकसभा चुनाव में बेटिकट किए गए रवींद्र राय, रविंद्र पांडेय और सरकार में मंत्री सरयू राय सरीखे नेता विरोध के सुर बुलंद करेंगे। आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद रुकी हुई पार्टी की खींचतान विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर देखने को मिल सकती है।
  8. गरमाएगा आदिवासी और गैरआदिवासी मुख्‍यमंत्री का मुद्दा: आदिवासी राज्‍यों में शुमार झारखंड में रघुवर दास पहले ऐसे मुख्‍यमंत्री हैं जो गैरआदिवासी हैं। खुले तौर पर इसका विरोध कई बार हो चुका है। भाजपा के अंदर से ही आदिवासी मुख्‍यमंत्री की मांग लगातार उठती रही है। ऐसे में विपक्षी पार्टियों आदिवासी चेहरे के नाम पर चुनाव की दिशा मोड़ सकते हैं। भाजपा ने अगर रघुवर दास की अगुआई में विधानसभा चुनाव लड़ा, तो आदिवासी और गैरआदिवासी का मुद्दा अहम हो सकता है।
  9. झारखंड में महागठबंधन बने रहने पर संशय : सरसरी तौर पर कहें तो लोकसभा चुनावों में झारखंड में महागठबंधन फेल हो गया। राजद ने तय सीट से अलग चतरा में भी अपने प्रत्‍याशी खड़े कर दिए। ऐसे में विधानसभा चुनाव में अगर गठबंधन से मुकाबले की बात करें तो बीजेपी काफी मजबूत स्थिति में दिख रही है। बीजेपी और आजसू का गठबंधन तय माना जा रहा है। वहीं झामुमो, कांग्रेस, झाविमो और राजद को लेकर सबके मन में संशय है। इन पार्टियों के नेता-कार्यकर्ता खुले तौर पर चुनाव में अकेले जाने की वकालत कर चुके हैं। बहरहाल, विधानसभा चुनाव में फिर से महागठबंधन बनता है तो भाजपा को कुछ मुश्किलें पेश आ सकती हैं।
  10. विधानसभा की 81 सीटों पर होता है चुनाव : झारखंड में विधानसभा की 81 सीटों पर चुनाव और एक सीट एंग्लो इंडियन के लिए नामित किया जाता है। 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 37 सीटें मिली थीं। तब भाजपा और सुदेश महतो की पार्टी आजसू ने मिलकर सरकार बनाई थी। हालांकि, पूर्व मुख्‍यमंत्री बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के 6 विधायक बाद में भाजपा में शामिल हो गए थे। इस समय राज्‍य विधानसभा में भाजपा के 43 विधायक हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा के 19, जबकि कांग्रेस के पास 6 विधायक हैं। 

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