Move to Jagran APP

जम्‍मू कश्‍मीर विधानसभा में उतार-चढ़ाव का है लंबा इतिहास, गवर्नर रूल हो गया अहम

जम्‍मू कश्‍मीर में विधानसभा भंग करने के बाद सबसे बड़ा झटका पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस को लगा है। हालांकि राज्‍य ने यह दौर पहली बार नहीं देखा है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 22 Nov 2018 12:40 PM (IST)Updated: Thu, 22 Nov 2018 01:02 PM (IST)
जम्‍मू कश्‍मीर विधानसभा में उतार-चढ़ाव का है लंबा इतिहास, गवर्नर रूल हो गया अहम
जम्‍मू कश्‍मीर विधानसभा में उतार-चढ़ाव का है लंबा इतिहास, गवर्नर रूल हो गया अहम

नई दिल्‍ली, जागरण स्‍पेशल। जम्‍मू कश्‍मीर में राजनीतिक संकट के बाद आखिरकार विधानसभा भंग कर दी गई है। इसको लेकर पहले से ही आशंका जताई जा रही थी। कहा जा रहा था कि स्‍थानीय निकाय चुनावों के बाद इस तरह का फैसला लिया जा सकता है। बहरहाल, विधानसभा भंग होने के बाद वहां पर राजनीतिक सरगर्मी काफी तेज हो गई है। गवर्नर के इस फैसले का सबसे बड़ा झटका पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस को लगा है जो राज्‍य में दोबारा गठबंधन सरकार बनाने का फार्मूला तलाशने में लगी थीं। इस फैसले के बाद राज्‍यपाल ने सफाई दी है कि हॉर्सट्रेडिंग से बचने के लिए यह फैसला लिया गया। इस खबर के बाद ट्विटर पर भी इससे संबंधित संदेशों की बाढ़ सी आ गई। राजनेता से लेकर आम आदमी इस फैसले के बाद एक्टिव होकर अपने कमेंट्स पोस्‍ट कर रहे हैं।

prime article banner

विधानसभा की स्थिति
गवर्नर के फैसले से पहले यदि वहां की विधानसभा की स्थिति को देखा जाए तो वहां पर जेके पीडीपी के पास 28, भाजपा 25, नेशनल कांफ्रेंस 12, जेके पीपुल्‍स कांफ्रेंस 2, भाकपा (मार्क्‍सवादी)1, जम्‍मू कश्‍मीर पीपुल्‍स डेमोक्रेटिक मोर्चा 1, निर्दलीय 3 सीटों पर काबिज थे। वर्ष 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में साठ फीसद से अधिक का मतदान हुआ था, जिसमें भाजपा को पहली बार यहां पर अप्रत्‍याशित रूप से सीट हासिल हुई थीं। जिसके बाद सरकार बनाने को चली लंबी खींचतान के बाद राज्‍य में भाजपा और पीडीपी ने सरकार बनाई थी। देश की यह ऐसी विधानसभा है जहां इसका कार्यकाल छह वर्ष का होता है।

कब होंगे चुनाव
विधानसभा भंग होने के बाद सबसे बड़ा सवाल विधानसभा चुनावों को लेकर उठना लाजमी है। इसको लेकर कहा जा रहा है कि अब आगामी लोकसभा चुनाव के साथ ही यहां पर दोबारा विधानसभा चुनाव करवाए जाएंगे, तब तक यहां पर राष्‍ट्रपति शासन लागू रहेगा। हालांकि राजनीतिक पार्टियों के पास कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का भी एक विकल्‍प बचा है। गौरतलब है कि अगले वर्ष देश में आम चुनाव होने हैं। इसको लेकर सभी पार्टियों ने कमर कस रखी है।

उतार-चढ़ाव वाली विधानसभा
बहरहाल जहां तक जम्‍मू कश्‍मीर विधानसभा की बात है जो इसका इतिहास भी काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि यहां पर आतंक पनपने के बाद और पाकिस्‍तान दखल के बाद यहां पर राजनीतिक स्थिरता नहीं आ सकी है। यही वजह है कि इसी वर्ष जून में सरकार गिरने और भाजपा-पीडीपी गठबंधन टूटने के बाद राज्‍य में आठवीं बार गवर्नर शासन लगाया गया था। तत्‍कालीन राज्‍यपाल एन एन वोहरा के कार्यकाल में यह चौथा मौका था जब राज्य में राज्यपाल शासन लगाया गया है। पूर्व नौकरशाह रहे वोहरा को 25 जून 2008 को जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया गया था। इससे पहले 8 जनवरी 2016 को जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू हुआ था। उस दौरान पीडीपी और भाजपा ने कुछ समय के लिए सरकार गठन को टालने का निर्णय किया था। यहां पर ये भी बता दें कि राज्‍य में 1990 में  सबसे अधिक समय के लिए राज्‍यपाल शासन लगाया गया था जिसकी अ‍वधि छह साल 264 दिनों की रही थी। यह वो दौर था जब राज्‍य में आतंकवाद अपने चरम पर पहुंच गया था। इसकी वजह से ही केंद्र सरकार को यह कदम उठाना पड़ा था। 

राज्‍य को हासिल है विशेष दर्जा
यहां पर राज्‍यपाल शासन का जिक्र इसलिए भी किया जा रहा है क्‍योंकि जम्‍मू कश्‍मीर में वहां के संविधान के अनुच्छेद 92 के तहत यह कदम उठाया जाता है। इसकी अवधि एक बार में छह माह से अधिक नहीं हो सकती है। इस दौरान यहां की विधानसभा या तो भंग की जाती है या फिर निलंबित कर दी जाती है। वर्तमान में वहां पर लगाए गए राज्‍यपाल शासन का यह अंतिम माह है। भारत के संविधान में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त है। यह देश का एकमात्र राज्य है जिसके पास अपना खुद का संविधान और अधिनियम हैं। अनुच्छेद 370 के तहत ही जम्मू-कश्मीर का अपना एक अलग झंडा और प्रतीक चिह्न भी है। जम्मू-कश्मीर में पहली बार 1977 में राज्यपाल शासन लगाया गया था। तब कांग्रेस ने शेख़ अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस से अपना समर्थन वापल ले लिया था।

आइये जानते हैं राज्‍य में कब-कब लगा गवर्नर रूल

आठ मौकों पर कब कब लगा राज्यपाल शासन

पहली बारः 26 मार्च 1977 से 9 जुलाई 1977 तक। 105 दिनों के लिए।
दूसरी बारः 6 मार्च 1986 से 7 नवंबर 1986 तक। 246 दिनों के लिए।
तीसरी बारः 19 जनवरी 1990 से 9 अक्तूबर 1996 तक। छह साल 264 दिनों के लिए।
चौथी बारः 18 अक्तूबर 2002 से 2 नवंबर 2002 तक। 15 दिनों के लिए।
पांचवी बारः 11 जुलाई 2008 से 5 जनवरी 2009 तक। 178 दिनों के लिए।
छठी बारः 9 जनवरी 2015 से 1 मार्च 2015 तक। 51 दिनों के लिए।
सातवीं बारः 8 जनवरी 2016 से 4 अप्रैल 2016 तक। 87 दिनों के लिए।
आठवीं बारः 19 जून 2018 से अब तक।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.