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Jallianwala Bagh Trust : जालियांवाला बाग ट्रस्ट से कांग्रेस बाहर, अब नेता विपक्ष होंगे सदस्य

जालियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट में कांग्रेस अध्यक्ष की स्थायी सदस्यता देने वाले प्रावधान को हटाने से संबंधित विधेयक पर संसद की मुहर लग गई।

By Tilak RajEdited By: Published: Tue, 19 Nov 2019 09:00 PM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 09:00 PM (IST)
Jallianwala Bagh Trust : जालियांवाला बाग ट्रस्ट से कांग्रेस बाहर, अब नेता विपक्ष होंगे सदस्य
Jallianwala Bagh Trust : जालियांवाला बाग ट्रस्ट से कांग्रेस बाहर, अब नेता विपक्ष होंगे सदस्य

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। जालियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट में कांग्रेस अध्यक्ष की स्थायी सदस्यता देने वाले प्रावधान को हटाने से संबंधित विधेयक पर संसद की मुहर लग गई। लोकसभा इस विधेयक को पिछले सत्र में ही पास कर चुका है, मंगलवार को राज्यसभा ने इसे पास कर दिया। विपक्ष ने इस संशोधन का तीखा विरोध करते हुए सरकार पर इतिहास को नए सिरे नहीं लिखने की चेतावनी दी। वहीं, भाजपा ने साफ किया कि आजादी की साझा लड़ाई पर किसी एक दल का अधिकार नहीं हो सकता है।

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कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों ने किया विरोध

संसद से संशोधन विधेयक के पास होने के बाद अब जालियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट में कांग्रेस अध्यक्ष की जगह पर लोकसभा में नेता विपक्ष या फिर सबसे बड़ी पार्टी के नेता को जगह मिलेगी। इसके साथ ही सरकार को सदस्यों के पांच साल का कार्यकाल समाप्त होने के पहले भी हटाने का अधिकार होगा। विधेयक पर बहस के दौरान कांग्रेस के प्रताप सिंह बाजवा, सपा के रामगोपाल यादव, तृणमूल के सुखेन्दु शेखर राय, सीपीएम के केके रागेश समेत कई विपक्षी सदस्यों ने संशोधनों का विरोध किया।

इतिहास को दोबारा लिखने की जरूरत नहीं

कांग्रेस की ओर से बोलते हुए प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि इतिहास को दोबारा लिखने की जरूरत नहीं है। उन्होंने भगत सिंह और जालियांवाला बाग नरसंहार का 21 साल बाद बदला लेने वाले उधम सिंह को भारत रत्न देने की मांग की।

आजादी की लड़ाई सिर्फ कांग्रेस ने अकेले नहीं लड़ी

सत्तापक्ष की ओर से राज्यसभा सदस्य के रूप में अपने पहले संबोधन में सुधांशु त्रिवेदी ने विपक्ष के आरोपों का सिलसिलेवार जवाब दिया। त्रिवेदी ने बताया कि किस तरह तकनीकी और सैद्धांतिक दोनों कारणों से ट्रस्ट के प्रावधान में संशोधन की जरूरत है। उनके अनुसार, तकनीकी तौर पर किसी एक राजनीतिक दल का अध्यक्ष का राष्ट्रीय स्मारक के ट्रस्ट में स्थायी सदस्य नहीं हो सकता है, क्योंकि राजनीतिक दल की स्थिति बदलती रहती है और कांग्रेस को कई बार टूटी है। वह कभी समाप्त भी हो सकती है। संवैधानिक संस्थाओं में संवैधानिक पदों के लिए ही स्थायी स्थान होना चाहिए। इसी तरह सैद्धांतिक रूप से उन्होंने साबित किया कि आजादी की लड़ाई सिर्फ कांग्रेस ने अकेले नहीं लड़ी, बल्कि इसमें सभी का योगदान था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के कई नेता जेल में रहे और उन्हें किताबें लिखने की सुविधा भी मिली। लेकिन ऐसे कई सेनानी थे जिन्हें केवल प्रताड़ना मिली क्या उनका योगदान भूला जा सकता है।

विपक्ष को कठघरे में खड़ा किया

पर्यटन और संस्कृति मंत्री प्रल्हाद पटेल ने भी विपक्ष को कठघरे में खड़ा किया और कहा कि सही मायने में अब इसे राजनीति से परे किया गया है। उन्होंने याद दिलाया कि 1951 में जब यह गठित हुआ था तो प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में शामिल हुए थे। 1970 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी शामिल हुईं, तो उस वक्त के कांग्रेस अध्यक्ष जगजीवन राम गैर हाजिर रहे। पटेल ने कहा कि इसमें केवल उन्हें ही जगह मिलनी चाहिए जो जनता चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं।


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