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1962 के बाद इस बार डिफेंस का बजट रहा सबसे कम, कैसे पूरी होंगी जरूरतें!

इस बजट का लंबे समय तक जिस क्षेत्र पर असर दिखाई देगा वह है रक्षा क्षेत्र। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि 1962 के बाद इस क्षेत्र के लिए सबसे कम बजट प्रस्‍‍तावित किया गया है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 02 Feb 2018 02:36 PM (IST)Updated: Fri, 02 Feb 2018 04:49 PM (IST)
1962 के बाद इस बार डिफेंस का बजट रहा सबसे कम, कैसे पूरी होंगी जरूरतें!
1962 के बाद इस बार डिफेंस का बजट रहा सबसे कम, कैसे पूरी होंगी जरूरतें!

नई दिल्ली [स्‍पेशल डेस्‍क]। वित्तमंत्री अरुण जेटली के आम बजट 2018-19 में किसको क्‍या मिला इसको लेकर कुछ दिनों तक चर्चा जरूर होती रहेगी। लेकिन इस बजट का लंबे समय तक जिस क्षेत्र पर असर दिखाई देगा वह है रक्षा क्षेत्र। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि 1962 के बाद इस क्षेत्र के लिए सबसे कम बजट प्रस्‍‍तावित किया गया है। ऐसा तब है जब चीन की तरफ से लगातार भारत को खतरा बना हुआ है। वहीं पाकिस्‍तान के जरिए चीन भारत को घेरने की कवायद में जुटा हुआ है और तेजी से अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा कर रहा है। इन हालातों में रक्षा बजट का कम होना रक्षा क्षेत्र की जरूरतों के पूरा होने पर सवाल जरूर खड़ा करता है। रक्षा मामलों के जानकार मानते हैं कि इस बजट से रक्षा जरूरतें पूरी नहीं होंगी।

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कुल बजट का डेढ़ फीसद से कुछ अधिक

आगे बढ़ने से पहले हम आपको बता दें कि इस बार के बजट में वित्‍तमंत्री ने जो रक्षा क्षेत्र के लिए बजट निर्धारित किया है वह कुल जीडीपी का महज 1.58 फीसद है। दूसरे आंकड़ों पर जाएं तो यह बजट कुल 46 बिलियन डॉलर या 2,95,511 करोड़ का है। इसमें डीआरडीओ और डिफेंस प्रोडेक्‍शन यूनिट शामिल है। इसके अलावा विततमंत्री ने करीब 1,08,853 करोड़ रुपये डिफेंस से जुड़े लोगों की पेंशन के लिए निर्धारित किए हैं।

पेंशन की राशि से भी कम बजट 

रक्षा विशेषज्ञ और रिटायर्ड कोमोडोर सी उदयभास्‍कर का कहना है कि रक्षा बजट को लेकर यदि पिछले कुछ वर्षों के पन्‍नों को पलटा जाए तो पता चल जाएगा कि बीते एक दशक 2009-2017 तक रक्षा बजट घटकर 2.19 फीसद से 1.65 फीसद तक पहुंच गया है। इस बार यह इससे भी कम हो गया है। उनके मुताबिक इस बार के बजट में रक्षा जरूरतों के लिए सही मायने में 99,564 करोड़ रुपये हाथ में आए हैं। हैरानी की बात ये है कि पेंशन के लिए प्रस्‍तावित की गई राशि से कम है।

जरूरत के लिए नाकाफी

मौजूदा बजट की तुलना यदि पिछले 2017-18 के रक्षा बजट से की जाए तो उस वक्‍त इस क्षेत्र के लिए 2,42,403 करोड़ रुपये प्रस्‍तावित किए गए थे। यदि इसमें पेंशन के लिए रखी राशि को जोड़ दिया जाए तो यह करीब 3,59,854 करोड़ रुपये था। उदयभास्‍कर मानते हैं कि इस बार रक्षा बजट की राशि आंकड़ों के हिसाब से जरूर बढ़ी है। जैसे इस बार यदि कुल रक्षा बजट की बात की जाए तो यह 4,04,364 (63 बिलियन डॉलर) करोड़ रुपये है, जो निर्धारित तौर पर ज्‍यादा लगता है। वह साफतौर इस बजट को रक्षा जरूरतों के लिए नाकाफी मानते हैं, इसकी वजह से जरूरी चीजें अधूरे में छूट सकती है या फिर रुक भी सकती हैं।

तेजस का उदाहरण 

उनके मुताबिक भारत में निर्मित हल्‍का लड़ाकु विमान तेजस वर्ष 2001 में हमारे सामने आया था, इसको भी अभी सही मायने में सभी पहलूओं पर खरा उतरना बाकी है। इसके विकास में दशक लग गया है। उनका सीधेतौर पर कहना था कि यदि भारत को अपने रक्षा क्षेत्र में विकास करना है और जरूरतों को पूरा करना है तो उसको आने वाले समय में करीब 900 बिलियन डॉलर खर्च करने होंगे, जिसमें से 200 बिलियन डॉलर महज सेना को आधुनिक बनाने पर खर्च होंगे।

अन्य देशों ने बढ़ाया रक्षा बजट 

आपको बता दें कि पूर्व में जापान, अमेरिका चीन और यहां तक की पाकिस्‍तान ने भी अपने रक्षा बजट में इजाफा किया है। वर्ष 2017-18 के बजट में कुल बजट का करीब 12.78 फीसद रक्षा क्षेत्र के लिए रखा गया था। वहीं वर्ष 2016-17 में यह कुल बजट का करीब 11 फीसद था। इसके अलावा 2015-16 में यह 10.5 फीसद रहा था।

भारत को घेरने की कोशिश

यहां पर यह भी ध्‍यान में रखना बेहद जरूरी होगा कि हिंद महासागर में चीन, पाकिस्‍तान के ग्‍वादर पोर्ट से लेकर श्रीलंका के हम्‍बनटोटा पोर्ट तक भारत को घेरने की कोशिशों के तहत स्ट्रिंग ऑफ पर्ल (मोतियों की माला) का निर्माण करने की कोशिश कर रहा है। इस क्षेत्र में उसकी परमाणु क्षमता संपन्‍न पनडुब्ब्यिों को भी देखा गया है। हाल में इस क्षेत्र में अमेरिका के शीर्ष कमांडर ने भी भारत को लेकर चिंता जाहिर की थी।


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