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जानिए क्यों और कैसे खुलने लगी है एक्जिट पोल की पोल

एक्जिट पोल इस धारणा के तहत किए जाते हैं कि व्यक्ति जब वोट देकर निकलता है तो वह सही बोलता है। एक समय तो यह धारणा एक हद तक सही थी, लेकिन समय के साथ लोगों का रुख-रवैया बदला है।

By Digpal SinghEdited By: Published: Thu, 14 Dec 2017 06:35 PM (IST)Updated: Thu, 14 Dec 2017 07:25 PM (IST)
जानिए क्यों और कैसे खुलने लगी है एक्जिट पोल की पोल
जानिए क्यों और कैसे खुलने लगी है एक्जिट पोल की पोल

नई दिल्ली, [जागरण न्यूज नेटवर्क]। एक्जिट पोल के नतीजे चाहे जितनी दिलचस्पी जगाते हों और चर्चा का विषय बनते हों, वे अब मुश्किल से ही सटीक साबित होते हैं। पिछले कुछ समय से वे गलत साबित होने के लिए अभिशप्त से हैं। इसी वर्ष के प्रारंभ में हुए उत्तर प्रदेश के चुनाव में कोई एजेंसी यह भांपने में नाकाम रही थी कि भाजपा को 325 सीटें मिल सकती हैं। सीएसडीएस का एक्जिट पोल तो सपा-कांग्रेस के गठबंधन को भाजपा से कहीं आगे बता रहा था।

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केवल टुडे चाणक्य ने भाजपा को 285 के आसपास सीटें मिलने का अनुमान लगाया था। इसी टुडे चाणक्य ने पंजाब के बारे में यह अनुमान लगाया था कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी, दोनों को 54 सीटों के आसपास सीटें मिलेंगी, लेकिन केजरीवाल की पार्टी को केवल 20 सीटें ही मिल पाईं। इसी के बाद से वह ईवीएम को अपने निशाने पर लिए हुए है। यही रवैया उत्तर प्रदेश में बहन जी की पार्टी- बसपा ने अपना दिखाया, जब उसके खाते में केवल 19 सीटें ही आईं।

एक तरह से असफल एक्जिट पोल हार से खिसियाए हुए राजनीतिक दलों को ईवीएम विरोध की राजनीति करने का मौका देने का काम कर रहे हैं। ऐसे राजनितक दल आम तौर पर इन तर्कों की आड़ लेते हैं कि हमारी सभाओं में भारी भीड़ उमड़ रही थी और एक्जिट पोल भी हमारी मजबूती बयान कर रहे थे। ध्यान रहे कि बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान मोदी की रैलियों में भारी भीड़ देखकर ऐसा लगता था कि भाजपा पहली बार सत्ता में आ सकती है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

एक्जिट पोल इस धारणा के तहत किए जाते हैं कि व्यक्ति जब वोट देकर निकलता है तो वह सही बोलता है। एक समय तो यह धारणा एक हद तक सही थी, लेकिन समय के साथ लोगों का रुख-रवैया बदला है। वोटर समझदार हो गए हैं। वे मुश्किल से ही सच बयान करते हैं। कई बार तो वे पूछने वाले की मंशा के हिसाब से ऐसे जवाब दे देते हैं कि यहां तो इनकी हवा थी, इसलिए इन्हें ही वोट दे दिया। वोटर इस हिचक के चलते भी सही नहीं बताते कि अगर उन्होंने यह बता दिया कि वोट किसे दिया और वह प्रत्याशी या पार्टी चुनाव नहीं जीती तो वह गलत साबित होगा। आज कोई भी खुद को या फिर अपनी राजनीतिक समझ को औरों की निगाह में गलत साबित होते हुए नहीं देखना चाहता।

एक्जिट पोल की सफलता सैंपल साइज की संख्या और उनकी गुणवत्ता पर निर्भर करती है। ज्यादा सैंपल साइज वाले एक्जिट पोल के सही होने की ज्यादा संभावना होती है। इसी के साथ इसका भी महत्व होता है कि जो मतदान केंद्र सैंपल के लिए चुने गए वे मिश्रित आबादी के हिसाब से आदर्श हैं या नहीं? इसके अलावा एक्जिट पोल करने वालों की भी एक भूमिका होती है। अगर यह काम करने वाले केवल खानापूर्ति करने की फिराक में रहते हैं तो फिर नतीजा एक्जिट पोल की पोल खोलने वाला ही रहता है। 


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