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ममता बनर्जी की चाहत- राहुल गांधी नहीं, उनके पीछे खड़ा हो विपक्ष

तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस कोशिश में जुटी हैं कि समूचा विपक्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए उनके पीछे खड़ा हो।

By Digpal SinghEdited By: Published: Thu, 21 Dec 2017 06:01 PM (IST)Updated: Thu, 21 Dec 2017 06:09 PM (IST)
ममता बनर्जी की चाहत- राहुल गांधी नहीं, उनके पीछे खड़ा हो विपक्ष
ममता बनर्जी की चाहत- राहुल गांधी नहीं, उनके पीछे खड़ा हो विपक्ष

नई दिल्ली, [जेएनएन]। पहले कांग्रेस से नाराज रहीं, फिर नोटबंदी और अन्य मसलों पर सोनिया गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर राजनीति करती दिखीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक बार फिर कांग्रेस से दूरी बनाती दिख रही हैं। राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद उन्हें बधाई देने वाला न तो उनका कोई बयान सामने आया है और न ही ट्वीट। इतना ही नहीं उनके सांसद संसद में कांग्रेसी सांसदों के हंगामे से भी दूरी बनाए हुए हैं। वे कुछ मसलों पर संसद के बाहर अकेले ही धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं।

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शीतकालीन सत्र में तृणमूल कांग्रेस के सांसदों का यह रवैया इसलिए नोटिस किया जा रहा है, क्योंकि बीते सत्रों में दोनों दलों के सांसद सरकार को घेरने के लिए संसद के भीतर-बाहर एकजुट नजर आते थे। हैरानी यह है कि जब ममता कांग्रेस से दूरी बना रही हैं तब गुजरात में कांग्रेस के नए सहयोगी के तौर पर सामने आए हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवानी उनसे संपर्क कायम कर रहे हैं। 

तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन की मानें तो देशभर के युवा नेता ममता बनर्जी से संपर्क साध रहे हैं ताकि 2019 के आम चुनाव में भाजपा का सामना करने के लिए उनका मार्गदर्शन हासिल कर सकें। डेरेक के अनुसार हार्दिक और जिग्नेश ने ममता से फोन पर बात की है। यह जानकारी देने के साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि कैसे ममता का चार दशकों का अनुभव और उनकी प्रसिद्धि उन्हें भाजपा का मुकाबला कर सकने वाली सबसे विश्वसनीय नेता बनाती हैं।

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उन्होंने यहां तक कहा कि भाजपा का मुकाबला कर सकने में ममता बनर्जी से बेहतर और कोई नहीं और यह साबित करने के लिए उन्हें अपनी नेता का सीवी दिखाने की जरूरत नहीं। संसद में कांग्रेस के हंगामे पर भी उन्होंने कहा कि कांग्रेस की रणनीति के बारे में उससे ही सवाल किया जाना चाहिए, हमारा मानना तो यह है कि संसद बहस का मंच है। डेरेक के ऐसे बयानों से अगर कुछ साबित हो रहा है तो यही कि ममता बनर्जी यह चाह रही हैं कि आगामी आम चुनाव के समय विपक्ष उन्हें अपना नेता माने। वह ऐसी इच्छा पहले भी प्रकट कर चुकी हैं।

नोटबंदी के फैसले के बाद तो वह इतना सक्रिय हुई थीं कि उन्होंने अखिलेश, केजरीवाल और नोटबंदी का विरोध करने वाले ऐसे ही नेताओं से घूम-घूम कर मुलाकात की थी। चूंकि नीतीश कुमार नोटबंदी को सही बता रहे थे, इसलिए उन्होंने उन्हें गद्दार तक करारा दिया था। यह भी उल्लेखनीय है कि गुजरात चुनाव के नतीजों को उन्होंने भाजपा की नैतिक पराजय बताते हुए गुजरात की जनता को तो बधाई दी, लेकिन कांग्रेस की सफलता का जिक्र तक नहीं किया।

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