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इस तरह बदल जाएगी भारतीय किसानी की तस्वीर लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं

बजट 2018 में किसानों के लिए कई घोषणाओं का एलान किया गया है। लेकिन जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन कैसे होता है, वो देखना दिलचस्प होगा।

By Lalit RaiEdited By: Published: Fri, 02 Feb 2018 05:27 PM (IST)Updated: Fri, 02 Feb 2018 05:27 PM (IST)
इस तरह बदल जाएगी भारतीय किसानी की तस्वीर लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं
इस तरह बदल जाएगी भारतीय किसानी की तस्वीर लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहा करते थे कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। गांवों के विकास के जरिए ही भारत का विकास हो सकता है और इसके लिए किसानी, बागवानी और पशुपालन पर खास ध्यान होगा। ये बात सच है कि देश की जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान घटा है। लेकिन एक तथ्य ये भी है कि आज भी किसानों को तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

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एनडीए सरकार ने किसानों से वादा किया है कि वो 2022 तक आय को दोगुनी करने के तमाम विकल्पों पर काम कर रहे हैं और इसकी झलक गुरुवार को पेश बजट 2018 में दिखी। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि मौजूदा सरकार किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। वित्त मंत्री ने बजट में एलान किया समर्थन मूल्य को डेढ़ गुना करने का फैसला किया गया है। सरकार के इस एलान पर जानकारों और आम किसानों का क्या कहना है उसे जानने से पहले हम आप को भारत में कृषि की तस्वीर पर चर्चा करेंगे।

कृषि से जुड़े कुछ तथ्य

-देश की अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी 2016-17 में 18 फीसद से घटकर 2017-18 में 16 फीसद रह गई है। रोजगार देने के मामले में इस क्षेत्र की भागीदारी 49 फीसद है।

-आजीविका के लिए कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों पर 59 फीसद आबादी आश्रित है।

-खेती की जाने वाली कुल जमीन का रकबा करीब 14.14 करोड़ हेक्टेअर है।

-7.32 करोड़ हेक्टेअर वर्षा पर आधारित असिंचित क्षेत्र है।

-2014-16 के दौरान देश में कृषि जीडीपी वृद्धि दर 3.2 फीसद है।

-2017 में देश में उत्पादित अनाज का उत्पादन 27.83 करोड़ टन था।

-भारत, दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक है। दुनिया में कुल उत्पादित दूध का 19 फीसद हिस्सा भारत से आता है।

-भारत, दुनिया का छठा सबसे बड़ा खाद्य और अनाज का बाजार है। देश का प्रसंस्करण उद्योग वैश्विक खाद्य बाजार का 32 फीसद तैयार करता है।

-फल उत्पादन में भारत, दुनिया में दूसरे पायदान पर है। 2016-17 में देश में बागवानी उत्पादन में करीब 28 करोड़ टन रहा।

-देश के कुल निर्यात में कृषि उत्पादों की हिस्से दारी 10 फीसद है। भारत, मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है।

सिंचाई की समस्या

चीन के बाद भारत दुनिया का सर्वाधिक सिंचित देश है। लेकिन देश की दो तिहाई किसान कृषि सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर हैं। देश में बारिश द्वारा जल के संचयन के लिए पर्याप्त भंडारण क्षमता नहीं है। लिहाजा कई इलाके जहां बाढ़ की समस्या का सामना करते हैं, वहीं कुछ इलाकों में सूखा पड़ जाता है।

किसानों के लिए सरकार ने क्या किया

-2015 से 2017 के दौरान किसानों को 10.2 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कॉर्ड मुहैया।

-2017 से 2019 के लिए 90 लाख कार्ड जारी किये गये हैं।

-पीएम फसल बीमा योजना में बदलाव करके बीमा राशि दोगुनी की गई और प्रीमियम को कम किया गया।

-दिसंबर 2017 तक योजना के तहत कुल दो करोड़ राशि का बीमा किया गया।

-प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत 2015 से जनवरी 2018 तक 20 लाख हेक्टेअर भूमि पर सुश्र्म सिंचाई की तकनीक उपलब्ध कराई गई।

-नीम कोटेड यूरिया की उपलब्धता।

-केंद्र सरकार ने ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दिया। महिलाओं को स्वयंसहायका समूहों के जरिए प्रोत्साहन की योजना।

आम लोगों की राय

यूपी के कुछ शहरों खासतौर से गाजीपुर, मऊ और बलिया के कुछ किसानों से दैनिक जागरण ने बजट 2018 पर बात की।

गाजीपुर के रहने वाले ओंकार का कहना है कि वो पिछले 10 सालों से अलग अलग सरकारों द्वारा बजट को सुनते आए हैं। खेती को लेकर बड़ी बड़ी योजनाओं को लागू करने की घोषणा की जाती है।लेकिन जमीन पर कुछ ही किसानों को लाभ मिल पाता है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वो कहते हैं निचले स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार की वजह से आम किसानों के खेतों को वो सुविधाएं नहीं मिल पाती है जिससे खेती की उपज बढ़ सके। मौजूदा सरकार शुरू से ही कहती आ रही है कि 2022 तक कृषि आय दोगुना हो जाएगी। लेकिन वास्तविक चुनौती उन घोषणाओं को जमीन पर उतारने की है जिसका सामना किसान करते आए हैं।

ओंकार की बात को आगे बढ़ाते हुए मऊ के अमित सिंह मृदा स्वास्थ्य कार्ड के बारे में बताते हैं कि केंद्र सरकार की उस मुहिम को जिला स्तर पर या स्थानीय स्तर पर पलीता लगा रहे हैं। मृदा स्वास्थ्य कार्ड को हासिल करने में संपन्न किसानों को मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ता है। लेकिन छोटे और सीमांत किसानों के लिए अनुभव बेहद ही खराब रहता है। बजट 2018 में एमएसपी से डेढ़ गुना दाम दिलाने की कवायद तो ठीक है। लेकिन सरकारें किस तरह से उसे जमीन पर उतारेंगी देखमे वाली बात होगी।

मऊ के अमित सिंह की राय से बलिया के सुशील राय भी इत्तेफाक रखते हैं। सुशील का कहना है कि सरकार ने जिस तरह मंडियों को मौजूदा कानून से मुक्त रखकर हाट को किसान के दर तक पहुंचाने का ऐलान किया है वो काबिलेतारीफ है। अगर हकीकत में ये जमीन पर दिखने लगा तो उन किसानों को भी फायदा मिलेगा जो अपनी कम उपज को अधिक लागत के डर से मंडियों तक ले जाने से बचते हैं। अपने अनुभव को साझा करते हुए वो कहते हैं कि बहुत बार ऐसा होता है कि छोटा किसान अपनी उपज को लेकर मंडी तक पहुंचता है लेकिन मंडीकर्मियों की उदासीनता की वजह से मझोले और छोटे किसानों को अनगिनत समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

जानकार की राय

कृषि मामलों के जानकार देविंदर शर्मा कहते हैं कि बजट ग्रामीण भारत पर केंद्रित और किसान हितैषी है। कसौटी पर कसें तो मिली-जुली तस्वीर नजर आएगी। वित्त मंत्री ने खरीफ के लिए फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में डेढ़ गुना बढ़ोतरी का ऐलान किया है। लेकिन शायद यह नाकाफी होगा, क्योंकि फसल की पूरी खरीद एमएसपी पर नहीं होती है और एमएसपी निर्धारण के लिए सही आधार नहीं अपनाया जा रहा है। लागत के ऊपर 50 फीसद एमएसपी पर स्वामीनाथन आयोग कि सिफारिशों पर अमल होता नहीं दिखाई दे रहा है। अपनी बात को आगे बढ़ते हुए कहते हैं कि भावांतरण की अवधारणा अच्छी है लेकिन व्यवहार में कठिन है। 


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