Move to Jagran APP

चीन के बढ़ते कदमों को रोकने में सहायक साबित होगा भारत-आसियान का साथ

इस बार गणतंत्र दिवस के आयोजन में दक्षिणपूर्व एशिया के दस देशों के राष्ट्रीय नेता शामिल हो रहे हैं। इनकी उपस्थिति भारत की बढ़ती ताकत और प्रभाव में मील का पत्थर मानी जाएगी।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 26 Jan 2018 12:22 PM (IST)Updated: Fri, 26 Jan 2018 07:18 PM (IST)
चीन के बढ़ते कदमों को रोकने में सहायक साबित होगा भारत-आसियान का साथ
चीन के बढ़ते कदमों को रोकने में सहायक साबित होगा भारत-आसियान का साथ

नई दिल्ली [स्वर्ण सिंह]। देश के 69वें गणतंत्र दिवस की परेड इस साल कई मायनों में अनूठी होने जा रही है। इसमें दक्षिणपूर्व एशिया यानी आसियान के सभी दस देशों के राष्ट्रीय नेता एक साथ मुख्य अतिथि होंगे। इन नेताओं की मौजूदगी भारत की कूटनीतिक ताकत का अनोखा प्रदर्शन होगी। इससे पहले हमेशा केवल एक ही विदेशी नेता को मुख्य अतिथि बनाया जाता रहा है। भारत के इतिहास में केवल दो बार ही दो विदेशी नेताओं को इस तरह से मुख्य अतिथि बनाया गया। गणतंत्र दिवस की परेड में यहां भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और सैन्य शक्ति का प्रदर्शन होगा। इन दस नेताओं की उपस्थिति को भारत की बढ़ती ताकत और प्रभाव में मील का पत्थर माना जाएगा। जाहिर है कि यह प्रदर्शन सभी शक्तियों में विश्लेषण और मूल्यांकन का केंद्रीय विषय होगा। खासकर चीन ने पिछले दो दशकों में दक्षिणपूर्व एशिया में तेजी से अपना वर्चस्व बढ़ाया है, उसके लिए तो यह कुछ हद तक चिंता का विषय भी बन सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़े आयोजनों और तेजतर्रार विदेश नीति के तहत यह उनकी दक्षिणपूर्व के दस में से नौ देशों की यात्रओं का नतीजा है कि उनकी व्यक्तिगत मित्रता इन नेताओं को इस आयोजन में खींच ले आई है।

loksabha election banner

भारत की स्वीकार्यता बढ़ी 

पिछले चार वर्षो में पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, फिर संयुक्त अरब अमीरात के युवराज शेख मोहम्मद बिन जायद अल नहयान, फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद और अब आसियान के दस नेताओं को मुख्य अतिथि बनाना प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति इस ओर संकेत भी करती है। इससे दुनिया में न केवल भारत की स्वीकार्यता बढ़ी है, बल्कि पहली बार भारत सभी बड़ी शक्तियों से तालमेल बनाने कामयाब दिखता है। 1990 के दशक में जबसे भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी की शुरुआत हुई है तबसे आसियान-भारत संबंधों को चीन पर अंकुश लगाने की नजर से देखा जाता रहा है। ठीक इसीलिए आज भारत राजनीतिक और आर्थिक संबंधों के साथ-साथ सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रिश्तों को मजबूत करने पर जोर दे रहा है। ये शायद इसलिए भी है, क्योंकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति की वजह से उनका विश्व स्तर पर सिकुड़ता प्रतिनिधित्व चीन के बढ़ते प्रभाव का उत्प्रेरक साबित हो रहा है। इसलिए यूरोपीय देशों की तरह एशिया प्रशांत में भी आसियान और भारत को स्वायत्त होने की आवश्यकता है।

कुछ हद तक दोनों चीन के साथ अपनी गैर बराबरी को स्वीकार करते हैं। इसीलिए चीन के साथ कभी जुड़ने और कभी दूरी बनाने की लचीली रणनीति से उस पर अंकुश रखने के आयाम बनाना चाहते हैं। आज भारत का आसियान के साथ तकरीबन अरब डॉलर का व्यापार है और इसे 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य है, परंतु चीन-आसियान के 450 अरब डॉलर के व्यापार के मुकाबले यह कहीं कम है। याद रहे कि चीन के मुकाबले भारत और आसियान के संबंध राजनयिक और आर्थिक साझेदारी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि बड़े गहरे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक बंधनों पर आधारित हैं और आज इन्हीं कड़ियों को उभारने की कोशिश की जा रही है। यही भारत और आसियान के मजबूत रिश्तों की नई ऊर्जा का स्नोत बन रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी ने सितंबर 2014 में रंगून में हुए 12वें भारत-आसियान शिखर सम्मेलन में पहली बार भारत की ‘लुक ईस्ट नीति’ को ‘एक्ट ईस्ट’ बनाने की घोषणा की थी जिसे उन्होंने आसियान पर केंद्रित बताया था। चीन की चुनौती से निपटने के लिए आसियान भारत को एक मजबूत सहयोगी के तौर पर देखता है और इस लिहाज से समुद्री सुरक्षा और विशेषकर एंटी पायरेसी में भारत की साझेदारी चाहता है। इसके लिए भारत और आसियान की नौ सेनाओं का लगातार संयुक्त युद्धाभ्यास होता रहा है।

सांस्कृतिक रिश्ता 

आज इस नए परिप्रेक्ष्य में भारत भले ही चीन की काट न बन पाए, उसके विस्तारवाद के लिए एक अवरोध जरूर बन सकता है। इसकी आधारशिला कूटनीति से भी आगे बढ़कर अपनी साझा सांस्कृतिक परंपराओं और सामाजिक सहभागिता से निकालने की कोशिश इस बार गणतंत्र दिवस में देखने को मिलेगी।

बौद्ध धर्म- जो नेपाल के लुंबिनी से शुरू होकर भारत के गया में प्रतिपादित हुआ और जिसका बाद में अशोक महान ने पूरे दक्षिणपूर्व एशिया में विस्तार किया- आज भारत और आसियान के सामाजिक जुड़ाव का आधार बन सकता है। बौद्ध धर्म कंबोडिया का राष्ट्रीय धर्म है तो थाईलैंड में 94, म्यांमार में 87, लाओस में 64, सिंगापुर में 33, मलेशिया में 20, वियतनाम में 12 प्रतिशत जनसंख्या बौद्धों की है। दुनिया में आबादी के लिहाज से सबसे बड़े मुस्लिम देश इंडोनेशिया में भी राष्ट्र नेता धार्मिक रूप से भले ही खुद को मुस्लिम मानते हों, परंतु संस्कृति के लिहाज स्वयं को हिंदू मानते हैं। भारत एक बहुधर्मी देश है, लिहाजा फिलीपींस के ईसाई और इंडोनेशिया के मुस्लिम भी इतिहास में अपने आप को भारत से जुड़ा पाते हैं। उदाहरण के तौर पर ईसवीं 802 में आज के कंबोडिया में सभी खमेर घटकों को जोड़कर राजा जयवर्मन ने कंबुजा राष्ट्र की स्थापना की थी और आज भी प्रसिद्ध अंकोरवाट में मूर्ति और भवन शिल्प में भारत की झलक साफ नजर आती है।

जुड़ाव की जड़ें

इन सभी देशों का पहली सहस्नाब्दी में भारत के साथ बहुत ही गहन और घनिष्ठ जुड़ाव आज भी वहां की भाषाओं की शब्दावली, शहरों के नामों और लोकगीत व लोक साहित्य में देखा जा सकता है। इन सभी देशों के स्वतंत्रता संग्राम में भी आपसी दोस्ती के सबूत भरे पड़े हुए हैं। भारत का महाग्रंथ रामायण तो इनके साझा इतिहास को और भी पीछे तक ले जाता है। गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में रामायण उत्सव के अंतर्गत भारत के साथ साथ दक्षिणपूर्व के सभी देशों से आई सांस्कृतिक मंडलियां भी अपनी-अपनी रामायण प्रस्तुति देंगी। इसके साथ रामायण पर एक डाक टिकट जारी किया जाएगा। आसियान के सभी नेता खादी की जैकेट पहने गणतंत्र के मौके पर नजर आएंगे। ये परस्पर सौहार्द, व्यक्तिगत और सामाजिक बंधन को दर्शाते हैं।

इसके साथ साथ एक्ट ईस्ट का भारत के पूवरेत्तर राज्यों से भी गहर संबंध है। 1990 में जब लुक ईस्ट नीति का निर्धारण किया गया था, ठीक उसी वक्त आसियान के विस्तार में चार नए देशों (कंबोडिया, लाओस, म्यांमार और वियतनाम) के जुड़ जाने से आसियान भारत के पूवरेत्तर से जुड़ गया था। तभी इस बात पर खास जोर दिया गया था कि पूवरेत्तर के राज्यों की दक्षिणपूर्व के देशों से कनेक्टिविटी वहां आर्थिक स्तर उभार कर राजनीतिक अशांति और अस्थिरता से निपटने में सहायक हो सकती है। आज एक्ट ईस्ट के अंतर्गत पूवरेत्तर राज्यों में भी बुनियादी ढांचे में तेजी से बदलाव लाने की कोशिश की जा रही है। 2020 तक पूवरेत्तर के सभी आठ राज्यों की राजधानियों को रेल से जोड़ने की योजना है। इसके अलावा भारत, म्यांमार, थाईलैंड त्रिपक्षीय एक्सप्रेस-वे पर भी काम हो रहा है।

बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल नेटवर्क के अंतर्गत भी सड़क और रेल का निर्माण जारी है। बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारा तो इस क्षेत्र को जल, हवाई और सड़क यानी सभी यातायात के साधनों से पड़ोसी देशों

को जोड़ने को प्रतिबद्ध है। उपर्युक्त उल्लेखित तमाम विशेषताओं से साफ जाहिर होता है कि भारत के अंदरूनी और बाहरी एशियाई क्षेत्र की शांति और समृद्धि के लिए भारत-आसियान के बढ़ते बहुआयामी रिश्तों को एक नई सभ्यतागत भू-राजनीति नजरिया के अंतर्गत सुनियोजित करना कारगर हो सकता है।

इस तरह एक मंच पर आ गए दुनिया के दस देश

इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड जैसे पांच देशों के साथ मिलकर अगस्त 1967 में आसियान का गठन किया गया थ। उस समय इस बात का अंदाजा नहीं था कि यह संस्था अपने गठन के 50 वर्ष पूरा कर सकती है। मनीला में 31वें शिखर सम्मेलन के साथ धूम-धाम के साथ इसकी 50वां वर्षगांठ भी मनाई गई। आसियान का मुख्यालय इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में है। अभी इसके 10 सदस्य हैं जिनमें इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, थाइलैंड, फिलीपींस, ब्रुनेई, वियतनाम, म्यांयामार, कंबोडिया और लाओस शामिल हैं।

(लेखक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान, जेएनयू में प्रोफेसर हैं) 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.