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हिमाचल प्रदेश ने सत्ता में बदलाव की निभाई पुरानी परंपरा लेकिन दिग्गज हार गए चुनाव

चुनाव के नतीजे परंपरा के अनुरूप तो रहे, लेकिन कई राजनीतिक बदलाव राज्य में पहली बार देखने को मिले।

By Lalit RaiEdited By: Published: Sat, 23 Dec 2017 10:15 AM (IST)Updated: Sat, 23 Dec 2017 10:47 AM (IST)
हिमाचल प्रदेश ने सत्ता में बदलाव की निभाई पुरानी परंपरा लेकिन दिग्गज हार गए चुनाव
हिमाचल प्रदेश ने सत्ता में बदलाव की निभाई पुरानी परंपरा लेकिन दिग्गज हार गए चुनाव

नई दिल्ली [अनंत मित्तल] । हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने भारी उलटफेर करके सत्ता के दोनों प्रमुख दावेदार दलों, भाजपा और कांग्रेस को लोकतंत्र में लोक यानी अपनी अहमियत का अहसास बखूबी करा दिया है। इस छोटे से मगर उन्नत पहाड़ी राज्य की सुधी जनता ने लोकतंत्र की सर्वोच्च परंपरा निभाते हुए सत्तारूढ़ कांग्रेस को दरवाजा दिखाया और विपक्षी भाजपा को 44 सीट नवाज कर सत्ता तो सौंपी मगर उसके मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल को बड़ी निष्ठुरता से हरा दिया। दूसरी तरफ छह बार के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की कांग्रेस को जिताने में नाकामी के बावजूद हिमाचल की जनता ने उन्हें और उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह, दोनों को जिता कर उनसे पीछा छुड़ाने की कांग्रेस आलाकमान की कोशिश पर भी पानी फेर दिया। वहीं वीरभद्र की दुत्कार के बवजूद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू ने चुनाव जीत कर अपना वजूद बढ़ा लिया है।

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हिमाचल चुनाव में बने कई रिकॉर्ड
हिमाचल के चुनाव में और भी कई रिकॉर्ड बने। ठियोग के मतदाताओं ने पूरे 24 साल बाद माकपा के राकेश सिन्हा को जिता कर बिहार,पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत में सिमट रहे वामपंथी जनाधार को संजीवनी दी है। राज्य में चुनाव लड़ीं 19 महिलाओं में से वोटरों ने चार उम्मीदवारों को जिताया है। साल 2012 में तीन ही महिला विधायक चुनी गई थीं। कांग्रेस अपने पांच साला राज के प्रति जनता के गुस्से के बावजूद लगभग 42 फीसद वोट पाने में कामयाब रही। साल 2012 में उसे 42.81 प्रतिशत वोटों की बदौलत बहुमत और भाजपा को 68 सदस्यीय सदन में महज 26 सीट पर जीत मिली थी। भाजपा को इस चुनाव में 48.8 फीसद वोटों के साथ सत्ता मिली है। यह 2012 में मिले 38.47 प्रतिशत वोटों से दस प्रतिशत से भी अधिक है। वीरभद्र सिंह के भ्रष्टाचार के खिलाफ चुनाव लड़ी भाजपा ने तीन करोड़ रुपये काली दौलत सहित धरे गए पंडित सुखराम के मंत्री बेटे अनिल शर्मा को चुनाव से ठीक पहले पार्टी में शामिल किया था। उन्हीं की बदौलत भाजपा, मंडी जिले की 10 में से नौ सीट जीतने में कामयाब रही। साथ ही राज्य के सबसे बड़े कांगड़ा जिले की 15 सीटों में से मिली 11 सीटों की बदौलत भाजपा सरकार बना रही है। धूमल के हमीरपुर जिले में भाजपा का गढ़ भेदने में कांग्रेस कामयाब रही। जिले की पांच सीटों में से तीन कांग्रेस और दो सीट भाजपा ने जीती हैं। अनिच्छा के बावजूद पार्टी के आग्रह पर सुजानपुर से चुनाव लड़े धूमल चुनाव हार गए जबकि शिमला ग्रामीण अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह को सौंप अर्की से चुनाव लड़े वीरभद्र दोनों सीट जीत गए। धूमल की पारंपरिक सीट हमीरपुर है और सुजानपुर में वे अपने ही राजनीतिक शागिर्द भाजपा पलट कांग्रेस उम्मीदवार राजेंद्र सिंह राणा से चुनाव हार कर मुख्यमंत्री पद से भी हाथ धो बैठे।

भाजपा की जीत, कौन बनेगा सीएम

धूमल की हार के बाद भाजपा आलाकमान केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगतप्रकाश नड्डा और जयराम सिंह ठाकुर में से ही किसी को मुख्यमंत्री पद सौंपने में उलझा है। ठाकुर पांचवीं बार विधायक चुने गए हैं। वे धूमल मंत्रिमंडल में ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज मंत्री और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रह चुके हैं। उन्हें आरएसएस और पार्टी आलाकमान का चहेता भी माना जाता है। सिर्फ 52 साल के होने के कारण वे नड्डा से भी उम्र में छोटे हैं। नड्डा हालांकि आपातकाल से पहले 1975 से ही छात्र राजनीति में सक्रिय हैं। सत्ता की राजनीति में उन्होंने 1993 में अपने गृह नगर बिलासपुर से चुनाव जीतकर कदम रखा। उन्हें तभी पार्टी ने सदन में विपक्ष का नेता बना दिया। 1998 में दुबारा विधायक चुने जाने पर धूमल के साथ मंत्री बने। साल 2012 में धूमल के प्रतिद्वंद्वी बनने पर पार्टी उन्हें राष्ट्रीय संगठन में महामंत्री बनाकर राज्यसभा में ले आई।

नड्डा को भी पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का चहेता बताया जाता है। राज्य में 1998 और 2007 में, दो बार भाजपा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनके बेटे अनुराग ठाकुर, हमीरपुर से निर्वाचित भाजपा सांसद हैं। अबकी बार भी भाजपा पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ रही थी मगर राज्य के 35 फीसद ठाकुर मतदाताओं के वीरभद्र सिंह के पक्ष में रुझान के मद्देनजर उसे मतदान से ऐन पांच दिन पहले धूमल के चेहरे पर दाव लगाना पड़ा था। कांग्रेस ने हालांकि खुद को वीरभद्र सिंह से मुक्त करने के लिए हिमाचल विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड वाला दांव चला था, लेकिन अपने बेटे विक्रमादित्य सहित खुद और कांग्रेस को कुल 21 सीट पर चुनाव जिताकर वीरभद्र ने उसे नाकाम कर दिया। उत्तराखंड की 70 सदस्यीय विधानसभा में मुख्यमंत्री हरीश रावत के दोनों क्षेत्रों से चुनाव हारने से कांग्रेस 11 सीट पर सिमट गई थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तथा उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने उत्तराखंड में दर्जन भर विधायकों सहित अनेक पायेदार नेताओं के पार्टी छोड़ देने के बावजूद कांग्रेस को हरीश रावत से मुक्त करने के लिए उन्हें विधानसभा चुनाव में मनमानी छूट दी थी। कमोबेश वैसी ही छूट कांग्रेस आलाकमान ने हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को भी दी।

कांग्रेस में भी दिग्गज हार गए चुनाव

हिमाचल के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू भी वीरभद्र के तमाम विरोध के बावजूद नादौन सीट से चुनाव जीत गए जबकि दमदार कौल सिंह ठाकुर, ठाकुर सिंह भरमौरी, सुधीर शर्मा सहित कांग्रेस के अधिकतर मंत्री एवं मुख्य संसदीय सचिव चुनाव हार गए। कौलसिंह की बेटी और जिला पंचायत अध्यक्ष चंपा ठाकुर भी मंडी सीट से हार गईं। भाजपा के भी प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती सहित धूमल के समधी गुलाब सिंह ठाकुर, वरिष्ठ नेता रविंदर रवि और माहेश्वर सिंह भी चुनाव हार गए। इस प्रकार जनता ने प्रदेश के अनेक कद्दावर नेताओं के सिर चढ़ा सत्ता का मद चूर—चूर किया है। उम्र के 83 साल जी चुके वीरभद्र इसे अपना आखिरी चुनाव घोषित कर चुके हैं, मगर सियासत से ओझल होने से पहले वे अपने बेटे को विधायक बनाने में कामयाब रहे। उम्र में उनसे दस साल छोटे धूमल के चुनाव और मुख्यमंत्री पद हारने के कारणों व उनके सियासी भविष्य के बारे में अटकल लग रही हैं। चुनाव जीतने के बावजूद आय से अधिक संपत्ति के मामलों से बेदाग उबरने की चुनौती वीरभद्र की टांग तराजू किए रहेगी।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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