कांग्रेस के प्रति हिमाचल की जनता में था काफी आक्रोश, क्या सबक लेगी कांग्रेस
हिमाचल के इस राजनीतिक रिकॉर्ड कि वहां हर पांच साल पर प्राय: सरकारें बदल जाती रही हैं।
नई दिल्ली [पीयूष द्विवेदी]। हिमाचल में जनता वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाते हुए भाजपा को अवसर दिया है। हिमाचल में कांग्रेस के वीरभद्र सिंह का शासन था, जिन्होंने वर्ष 2012 में भाजपा को सत्ता से बाहर कर हिमाचल की बागडोर संभाली थी। दरअसल इन चुनावों के दौरान हिमाचल के मुद्दे, वहां के मतदाताओं के मिजाज पर कम ही बात हुई। हालांकि हिमाचल के इस राजनीतिक रिकॉर्ड कि वहां हर पांच साल पर प्राय: सरकारें बदल जाती रही हैं, के आधार पर यह अनुमान जरूर व्यक्त किए गए थे कि वीरभद्र सिंह के लिए सत्ता में फिर वापसी मुश्किल होगी। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की पराजय के पीछे सिर्फ इतना ही कारण है? वास्तव में हिमाचल की कांग्रेस सरकार के शासन के प्रति राज्य की जनता में काफी आक्रोश था। पत्नी सहित खुद वीरभद्र सिंह सेब के बागानों से हुई आय और उसके निवेश को लेकर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में घिरे हैं।
कांग्रेस की हार का एक कारण यह भी रहा कि केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से हिमाचल पर बहुत ध्यान नहीं दिया गया। राहुल गांधी पूरी तरह से गुजरात में ही उलङो रहे। शायद कांग्रेस ने मान लिया था कि हिमाचल में वीरभद्र की हार तय है, इसलिए उनको उनके हाल पर छोड़ दिया गया। वैसे यहां यह समझना जरूरी है कि अगर अमित शाह ने प्रेम कुमार धूमल को अपना हिमाचल में भाजपा का नेता घोषित किया था तो इसके पीछे कई कारण थे। दरअसल धूमल हिमाचल के लिहाज से पार्टी का एक ऐसा चेहरा थे, जिनके आगे आने के बाद स्थानीय नेतृत्व के लिए पार्टी में गुटबाजी की संभावना नहीं रह गई थी। जहां तक बात उनकी हार की है तो इसका एक कारण उनकी सीट का बदल जाना भी है। हमीरपुर की अपनी एक तरह से सुरक्षित सीट को छोड़ वे सुजानपुर से लड़े थे, इसलिए उनकी हार में बहुत चौंकने जैसा कुछ नहीं है।1हिमाचल में भाजपा की जीत के दो प्रमुख बिंदु हैं।
पहला कारण है, कांग्रेस की वीरभद्र सरकार का खराब प्रदर्शन जिसकी चर्चा ऊपर की जा चुकी है। दूसरा कारण, केंद्र सरकार की योजनाओं, परियोजनाओं का हिमाचल में ठोस ढंग से क्रियान्वयन है, जिसका प्रभाव राज्य में प्रवेश करते ही दिखाई देने लगता है। परवाणु से सोलन के बीच बन रहा 39 किमी लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग की चौड़ीकरण का कार्य सरकार द्वारा कराया जा रहा है। साथ ही राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण द्वारा ऐसी ही लगभग दर्जन भर परियोजनाओं पर राज्य भर में कार्य किया जा रहा है। स्वास्थ्य का विषय यूं तो राज्य सरकार के अंतर्गत आता है, परंतु इस दिशा में भी केंद्र सरकार की पहल पर हिमाचल के बिलासपुर में एम्स की स्थापना हो रही है। बीते अक्टूबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस परियोजना का शिलान्यास किया गया। जबकि इस एम्स की स्थापना के लिए राज्य सरकार द्वारा जमीन देने में आनाकानी करने से भाजपा को उसे घेरने का एक मुंहमांगा अवसर मिल गया था।
इस प्रकार कुल मिलाकर तथ्य यह है कि भाजपा को हिमाचल में केंद्रीय योजनाओं का लाभ मिला, जिसके दम पर वह विजयी हुई है। वहीं वीरभद्र सरकार का खराब शासन तथा कांग्रेस संगठन द्वारा संभावित हार के भय से या गुजरात पर केंद्रित रहने के चलते चुनावों में हिमाचल की अनदेखी दो कारण रहे, जिससे वहां कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस ने एक नया गढ़ जीतने के मोह में अपने गढ़ को असुरक्षित छोड़ दिया, परिणाम सामने है कि उसके हाथ कुछ नहीं रहा। हिमाचल की हार से कांग्रेस को यह सबक लेना चाहिए कि अपनी राजनीतिक बदहाली के इस दौर में भाजपा शासित राज्यों को प्राप्त करने पर अधिक जोर लगाने के बजाय जो राज्य उसके पास हैं, उनमें बेहतर काम कर अपनी छवि सुधारने का प्रयत्न करने की कोशिश करे। यही नीति उसमें पुन: प्राण फूंक सकती है।
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