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शहरों में साख बचाने में कामयाब रही है भाजपा लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में कांग्रेस को मिली बढ़त

गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि भाजपा की अपने पुराने गढ़ यानी शहरी इलाकों में साख कायम है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस को बढ़त मिली है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 20 Dec 2017 10:49 AM (IST)Updated: Wed, 20 Dec 2017 10:54 AM (IST)
शहरों में साख बचाने में कामयाब रही है भाजपा लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में कांग्रेस को मिली बढ़त
शहरों में साख बचाने में कामयाब रही है भाजपा लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में कांग्रेस को मिली बढ़त

हर्षवर्धन त्रिपाठी

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चार लड़कों ने मिलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के लिए उनके घर में बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी थी, लेकिन चार शहरों ने मोदी-शाह की जमीन बचा ली। अहमदाबाद, सूरत, राजकोट और वड़ोदरा-यही वे चार शहर हैं, जहां से भाजपा को सरकार बनाने के लिए जरूरी जीत मिली है। अहमदाबाद की 16 में से 12 सीटें बचाने में भाजपा कामयाब रही। सूरत की सभी नौ शहरी सीटों पर कमल खिल गया। वड़ोदरा की चार शहरी सीटें भाजपा के नेताओं के चेहरे पर मुस्कुराहट लाने वाले नतीजे दे गईं और राजकोट की तीन शहरी सीटें भाजपा के लिए जीवनदायिनी रहीं क्योंकि इसमें मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की भी सीट रही।

रूपाणी ने राजकोट पश्चिम सीट पर 1,31,586 मत हासिल किया। इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी इंद्रनील राजगुरु को 77,831 मत मिले, जिस सूरत शहर को पाटीदार आंदोलन और जीएसटी के खिलाफ गुस्से के केंद्र के तौर पर देखा जा रहा था, उस सूरत शहर में भाजपा के उम्मीदवारों को जबरदस्त सफलता मिली है। सूरत पश्चिम से भाजपा प्रत्याशी पूण्रेश मोदी को 111,615 मत मिले, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी इकबाल दाउद को सिर्फ 33,733 मत मिले। इसी तरह वड़ोदरा शहर सीट पर भाजपा प्रत्याशी मनीषा वकील को 1,16,367 मत मिले और कांग्रेस प्रत्याशी अनिल परमार को 63,984 मत मिले।

अहमदाबाद की मणिनगर (नरेंद्र मोदी की पुरानी विधानसभा)सीट पर भाजपा प्रत्याशी सुरेश पटेल को 1,16,113 मत मिले और कांग्रेस प्रत्याशी श्वेता बेन को 40,914 वोट मिले। इसी तरह अमित शाह की पुरानी विधानसभा सीट नारनपुरा में भाजपा प्रत्याशी कौशिक पटेल को 1,06,458 मत मिले और कांग्रेस प्रत्याशी नितिन पटेल को 40,243 मत मिले। पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल की विधान सभा सीट रही घाटलोडिया से भाजपा प्रत्याशी भूपेंद्र पटेल को 1,75,652 मत मिले और कांग्रेस प्रत्याशी शशिकांत पटेल को 57,902 मतों से ही संतोष करना पड़ा।

इसी तरह साबरमती से भाजपा प्रत्याशी अरविंद दलाल 1,13,503 मत हासिल करके सीट जीती, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी जीतू पटेल 44,693 मतों पर ही सिमट गए। अहमदाबाद, सूरत, राजकोट और वड़ोदरा की शहरी सीटों पर भाजपा प्रत्याशी 30000-70000 के भारी अंतर से जीते हैं। इन शहरी सीटों पर भारतीय जनता प्रत्याशी को मिले जबरदस्त वोट और जीत का भारी अंतर दिखाता है कि भाजपा का अपने पक्के शहरी मतदाताओं में भरोसा बढ़ा है। 55 विशुद्ध शहरी सीटों में से 44 पर भाजपा जीती है, लेकिन शहरी मतदाताओं में भरोसा सिर्फ गुजरात मॉडल की देन नहीं है।

शहरी मतदाताओं में भाजपा को हमेशा से अच्छा वोट मिलता रहा है, इसे समझने के लिए उत्तर प्रदेश के विधानसभा और शहरी निकाय चुनावों के नतीजों को देखना चाहिए। 2012 में सपा ने 224 सीटें हासिल करके सरकार बना ली थी और भाजपा को सिर्फ 47 सीटें मिली थीं, लेकिन उसके तुरंत बाद हुए नगर निकाय चुनावों में 12 में से 8 मेयर भाजपा के ही जीते। 2007 में भी भाजपा ने प्रदेश की 12 में से आठ मेयर सीटें जीत ली थीं। जबकि उसके ठीक पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को सिर्फ 51 सीटें मिली थीं। उस चुनाव में बसपा ने 206 सीटें हासिल करके सरकार बनाई थी। ये आंकड़े बताते हैं कि शहरी मतदाता भाजपा के साथ किस तरह से जुड़ा हुआ है। इसलिए गुजरात में शहरी सीटों पर भाजपा का जीतना कोई अचंभा नहीं है।

हां, इतना जरूर है कि भाजपा सरकार की नीतियों से गुजरात में शहर और ज्यादा सुविधा वाले बेहतर हुए हैं, लेकिन, गांवों में उस अनुपात में आमदनी और सुविधा न बढ़ने का नुकसान अब भाजपा को हो सकता है। काफी हद तक इसकी आहट 2017 के गुजरात विधानसभा चुनावों में सुनाई भी दी है। गांव की सीटों पर भाजपा का प्रदर्शन बिगड़ा है। इन चुनावों में 109 ग्रामीण सीटों में से 63 सीटें कांग्रेस ने जीती है। पहले से 23 सीटें ज्यादा इस बार कांग्रेस ने जीती हैं। भाजपा को 43 सीटें मिली हैं, लेकिन ये साफ है कि गुजरात में शहरों और गांवों के बीच की खाई लगातार बढ़ी है।

अहमदाबाद चुनावों के दौरान टैक्सी ड्राइवर रंजीत झाला ने हंसते हुए कहा कि उद्योग लगने से जमीनों के भाव तो 10 गुना मिल गए, लेकिन, किसान उपजाएगा कहां और क्या आयात करके खाएगा? यह एक खतरनाक इशारा है। गुजरात में विकास हुआ है,लेकिन उसमें ग्रामीणों, किसानों और सामाजिक रूप से कमजोर वर्गो को हिस्सेदारी कितनी रही, इस पर सवाल खड़े हो रहे हैं? 2019 की लड़ाई में यह सवाल और बड़ा होगा। इसका अनुमान उसी समय लग गया था जब संसद मार्ग पर देश भर से आए किसान संगठनों ने किसान पंचायत के जरिए अपनी ताकत दिखाई थी।

हालांकि इसका अंदाजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अच्छे से है, लेकिन असली मुश्किल यही है कि क्या 2019 के पहले किसानों को उनकी उपज का कितना बेहतर भाव मिल सकेगा। जिस न्यू इंडिया की बात पीएम कर रहे हैं, उसमें कृषि प्रधान भारत की हिस्सेदारी कितनी होगी ये बताना जरूरी है। 1प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात-हिमाचल प्रदेश के चुनाव जीतने के बाद के भाषण में जीतेगा भाई जीतेगा, विकास ही जीतेगा का नारा लगाकर 2019 का चुनावी सुर तय कर दिया है, लेकिन इस सुर को ग्रामीण भारत अच्छे से नहीं लगा पाया तो चुनावी संगीत बेसुरा होने का खतरा बढ़ेगा।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लगातार उद्योगपतियों पर हमला करके किसानों, ग्रामीण भारत के साथ खड़े होने की कोशिश करते दिख रहे हैं। गुजरात चुनाव ने राहुल गांधी की नेता वाली छवि पहले से बहुत दुरुस्त की है। इंडिया बनाम भारत की बात लंबे समय से कही जा रही है। 2019 का चुनाव इंडिया बनाम भारत यानी शहर बनाम गांव की तरफ जाता दिख रहा है। इसीलिए भाजपा को 2019 में मजबूती के लिए जरूरी है कि शहरी पार्टी वाली छवि को जल्द से जल्द दुरुस्त किया जाए। किसान अपने खेत में हंसता नजर आए और बाजार उसके दरवाजे खड़ा इंतजार करे, तभी असल विकास माना जाएगा और तब देश का नारा होगा-जीतेगा भाई जीतेगा, विकास ही जीतेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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