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कावेरी विवाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की पौ बारह

कावेरी नदी के पानी के बंटवारे संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने कर्नाटक में कांग्रेस और मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की पौ बारह कर दी है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 19 Feb 2018 10:14 AM (IST)Updated: Mon, 19 Feb 2018 10:14 AM (IST)
कावेरी विवाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की पौ बारह
कावेरी विवाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की पौ बारह

नई दिल्‍ली [अनंत मित्तल]। कावेरी नदी के पानी के बंटवारे संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने कर्नाटक में कांग्रेस और मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की पौ बारह कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि दो राज्यों के बीच से गुजरने वाली नदी राष्ट्रीय संपत्ति है। अपने यहां नदी के उद्गम के बावजूद कोई भी राज्य उस पर मालिकाना नहीं जता सकता। इसके तहत कर्नाटक को अब कावेरी नदी से 14.75 टीएमसी (100 अरब घन) फीट अतिरिक्त पानी मिलेगा। हालांकि तमिलनाडु को भी पहले से करीब 75 फीसद अधिक पानी मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु को 10 टीएमसी फीट अतिरिक्त जल भूमिगत स्रोतों से निकाल लेने को कहा है। कर्नाटक को अब तमिलनाडु के लिए 177.25 टीएमसी फीट अतिरिक्त पानी छोड़ना होगा।

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कावेरी बेसिन

पानी के बंटवारे का यह विवाद मुख्य रूप से तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच था, लेकिन चूंकि कावेरी बेसिन में केरल और पुदुचेरी के कुछ छोटे-छोटे से इलाके शामिल हैं तो इस विवाद में वे भी कूद गए थे। 1892 में तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर रियासत के बीच पानी के बंटवारे को लेकर एक समझौता हुआ था, लेकिन जल्द ही समझौता विवादों में घिर गया। इसके बाद 1924 में भी विवाद के निपटारे की कोशिश की गई, लेकिन बुनियादी मतभेद बने रहे। जून 1990 में केंद्र सरकार ने कावेरी पंचाट बनाया, जिसने 16 साल की सुनवाई के बाद 2007 में फैसला दिया कि प्रति वर्ष 419 टीएमसी फीट पानी तमिलनाडु को दिया जाए जबकि 270 टीएमसी फीट पानी कर्नाटक के हिस्से आए। कावेरी बेसिन में 740 टीएमसी फीट पानी मानते हुए पंचाट ने ये फैसला दिया।

पानी की भारी किल्लत

केरल को 30 टीएमसी फीट और पुदुचेरी को 7 टीएमसी फीट पानी देने का फैसला दिया गया, लेकिन कर्नाटक और तमिलनाडु, दोनों ही उसके फैसले से खुश नहीं थे और उन्होंने समीक्षा याचिका दायर की थी जिसका 11 साल बाद निपटारा हुआ है। दरअसल बेंगलुरु के पिछले दो दशक में हुए भारी विस्तार से शहर में पीने के पानी की भारी किल्लत है। इस महानगर को पीने के लिए पानी धरती के भीतर से खींचना पड़ता है जिसने भूजल स्तर स्तर को नीचे पहुंचा दिया है। इस लिहाज से बेंगलुरु के लिए तो कावेरी का पानी जीवनरेखा ही साबित होगा। इसके अलावा नदियों को राष्ट्रीय संपदा बताने की सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या का फायदा कर्नाटक आगे महादयी नदी के पानी के गोवा से बंटवारा संबंधी विवाद में भी उठा सकता है।

प्यास बुझाने के लिए अपरिहार्य

बेंगलुरु के लिए कावेरी के पानी की मांग की तरह सिद्धरमैया सरकार ने महादयी के पानी को भी उत्तरी कर्नाटक के करोड़ों लोगों की प्यास बुझाने के लिए अपरिहार्य बताया है। हालांकि सच यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट की साफ हिदायत के बावजूद सतलुज के पानी को हरियाणा से बांटने में पंजाब की कांग्रेस सरकार मुकर चुकी है। इस बाबत आदेश आने पर पंजाब में कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा से इस्तीफा देकर अकाली-भाजपा सरकार पर भारी दबाव बनाया था। इसी नहर के जरिये सतलुज का पानी हरियाणा को मिलने वाला था। इसका उदाहरण देकर भाजपा कर्नाटक में कावेरी का अतिरिक्त पानी पाने की कामयाबी का सेहरा बांध रही कांग्रेस को बेनकाब कर सकती है।

कावेरी जल बंटवारा विवाद खत्म

इस प्रकार कर्नाटक के पक्ष में आए फैसले से एक सदी पुराना कावेरी जल बंटवारा विवाद खत्म हो गया है। अफसोस यह है कि कुदरत का अनमोल तोहफा होने के बावजूद कावेरी के पानी के बंटवारे के लिए कर्नाटक और तमिलनाडु आपस में कई बार भिड़ चुके हैं। देखा जाए तो मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र, न्यायमूर्ति अमिताव राय व न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर की पीठ ने कावेरी जल पंचाट के पांच फरवरी, 2007 के फैसले में मामूली बदलाव ही किया है। पंचाट ने कर्नाटक के घरेलू और औद्योगिक जल उपयोग के बड़े हिस्से में इस बिना पर कटौती की थी कि कावेरी बेसिन में बेंगलुरु शहर का सिर्फ एक-तिहाई हिस्सा आता है। अब देखना यही है कि कर्नाटक में चुनावी मुकाबले पर कावेरी के पानी का क्या असर पड़ेगा? 

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