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चीन के 'स्ट्रंग ऑफ प‌र्ल्स' योजना का भारतीय जवाब होगा इंडोनेशिया का साबांग पोर्ट

यह पहला मौका होगा जब भारत पूर्वी एशियाई क्षेत्र में कनेक्टिविटी से जुड़ी एक अहम परियोजनाओं को अपने बूते पूरा करेगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 03 Jun 2018 10:49 PM (IST)Updated: Mon, 04 Jun 2018 09:49 AM (IST)
चीन के 'स्ट्रंग ऑफ प‌र्ल्स' योजना का भारतीय जवाब होगा इंडोनेशिया का साबांग पोर्ट
चीन के 'स्ट्रंग ऑफ प‌र्ल्स' योजना का भारतीय जवाब होगा इंडोनेशिया का साबांग पोर्ट

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। भारत को हिंद महासागर में चारों तरफ से 'स्ट्रंग ऑफ प‌र्ल्स' परियोजना के तहत छोटे-छोटे सैन्य अड्डों से घेरने की चीन की योजना का भारतीय जवाब धीरे-धीरे रंग पकड़ने लगा है। ईरान में चाबहार पोर्ट भारत की कूटनीतिक सफलता की कहानी पहले से बयां कर रही है और अब आने वाले दिनों में यही कहानी इंडोनेशिया के साबांग द्वीप में दोहराने की तैयारी है।

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इंडोनेशिया के साबांग द्वीप में रणनीतिक पोर्ट बनाने का रास्ता साफ

सेशेल्स में एजंप्शन द्वीप को लेकर इस महीने फैसला संभव

जमीन पर उतरने लगी भारत की कनेक्टिविटी नीति

पीएम नरेंद्र मोदी की हालिया इंडोनेशिया यात्रा के दौरान वहां के साबांग द्वीप पर भारत की मदद से पोर्ट विकसित करने पर सहमति बन चुकी है। इस महीने सेशेल्स के राष्ट्रपति भारत आ रहे हैं जहां एजंप्शन आइलैंड को लेकर बात आगे बढ़ने के आसार है।

साबांग द्वीप पर पोर्ट बनाना पूर्वी एशियाई क्षेत्र में कनेक्टिविटी से जुड़ी भारत की पहली और संभवत: भविष्य की सबसे महत्वपूर्ण योजना होगी। विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि, 'साबांग भारत की 'एक्ट ईस्ट' नीति का सबसे मजबूत स्तंभ होगा। जिसका निर्माण बहुत हद तक चाबहार पोर्ट की तर्ज पर ही होगा। पहले चरण में भारत ऐसी ढांचागत व्यवस्था बनाएगा जिससे इंडोनेशिया के साथ द्विपक्षीय स्तर पर इस्तेमाल किया जा सके, लेकिन बाद में इसे ज्यादा विस्तार दिया जाएगा।'

यह पहला मौका होगा जब भारत पूर्वी एशियाई क्षेत्र में कनेक्टिविटी से जुड़ी एक अहम परियोजनाओं को अपने बूते पूरा करेगा। साबांग पोर्ट का निर्माण सिर्फ भारतीय कूटनीति के लिहाज से ही एक बड़ी सफलता के तौर पर याद नहीं किया जाएगा बल्कि यह दुनिया में एक बड़ी आर्थिक शक्ति के तौर पर भारत के दावे को पुख्ता करने में मदद करेगा। भारत के दक्षिणी पूर्वी समुद्री सीमा के सबसे किनारे पर अंडमान व निकोबार द्वीप के सबसे आखिरी द्वीप से इसकी दूरी महज 175 किलोमीटर है।

साबांग पोर्ट जिस समुद्री राह के करीब होगा उसे दुनिया के सबसे व्यस्त कारोबारी मार्ग माना जाता है। खाड़ी के बड़े तेल उत्पादक देश इस मार्ग का इस्तेमाल अगर कच्चे तेल को पूर्वी एशिया मे भेजने के लिए करते हैं तो चीन व अन्य पूर्वी एशियाई देशों के निर्यात के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है। रणनीतिक लिहाज से भी इसका कम महत्व नहीं होगा। इंडोनेशिया सरकार की तरफ से पहले ही यह बयान दिया जा चुका है कि साबांग में बनाये जाने वाले पोर्ट में हर तरह के वाणिज्यिक जहाज के अलावा यहां पनडुब्बियों के पड़ाव की भी बेहतरीन व्यवस्था की जा सकती है।

कहने की जरुरत नहीं है कि इसके इस्तेमाल के विकल्प को दोनों देशों ने अभी खुला रखा है। जानकार यह भी मान रहे हैं कि साबांग पोर्ट निर्माण में आगे चल कर भारत के साथ जापान भी शामिल होगा। वर्ष 2016 में इंडोनेशिया की तरफ से जापान को साबांग में विकास कार्य के लिए आमंत्रित किया गया था। यह भी याद रखने वाली बात है कि भारत और जापान के बीच एक समझौता पहले से है जिसमें दोनों देश एशिया व दुनिया के दूसरे देशों में कनेक्टिविटी से जुड़ी परियोजनाओं को साथ मिल कर विकसित करने वाले हैं।

साबांग के बाद सरकार की नजर हिंद महासागर में स्थिति देश सिशेल्स के छोटे से द्वीप एजम्पसंस आइजलैंड को लेकर समझौते को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने की है। इस द्वीप पर पोर्ट बनाने की भारतीय योजना को लेकर सिशेल्स का रुख अभी तक सकारात्मक था लेकिन हाल के महीनों में उसका रवैया कुछ बदला हुआ है।

मामले की नजाकत को समझते हुए विदेश सचिव एक पखवाड़े पहले वहां की यात्रा पर भी गये थे। अब सिशेल्स के राष्ट्रपति के भारत दौरे पर बात के आगे बढ़ने के आसार हैं। इसके अलावा भारत बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका में भी एक-एक रणनीतिक पोर्ट को विकसित करने पर बातचीत कर रहा है। चीन अपनी स्टि्रंग ऑफ प‌र्ल्स रणनीति के तहत प्यूर्टो (सूडान), लामू (केन्या), ग्वादर (पाकिस्तान), हमबंटोटा (श्रीलंका) समेत कई देशों में रणनीतिक दृष्टिकोण से पोर्ट विकसित कर रहा है।


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