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अफगानिस्तान में स्थायी संघर्ष विराम का स्वागत करेगा भारत, लेकिन अपने हितों को लेकर भी सतर्क

अफगानिस्तान शांति वार्ता के अहम मुकाम पर पहुंचने के साथ ही भारत भी अपनी भावी भूमिका को लेकर ज्यादा सतर्क हो गया है। अफगानिस्तान के प्रमुख वार्ताकार डॉ. अब्दुल्ला अब्दुल्ला की प्रधानमंत्री मोदी के साथ हुई बातचीत इस संदर्भ में अहम मानी जा रही है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Thu, 08 Oct 2020 10:45 PM (IST)Updated: Thu, 08 Oct 2020 10:45 PM (IST)
अफगानिस्तान में स्थायी संघर्ष विराम का स्वागत करेगा भारत, लेकिन अपने हितों को लेकर भी सतर्क
भारत अफगानिस्तान में अपनी भावी भूमिका को लेकर सतर्क हो गया है।

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। अफगानिस्तान शांति वार्ता के अहम मुकाम पर पहुंचने के साथ ही भारत भी अपनी भावी भूमिका को लेकर ज्यादा सतर्क हो गया है। अमेरिका की अगुआई में तालिबान और अफगान सरकार के साथ चल रही वार्ता में अफगानिस्तान के प्रमुख वार्ताकार डॉ. अब्दुल्ला अब्दुल्ला की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गुरुवार को हुई बातचीत इस संदर्भ में काफी अहम मानी जा रही है।

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अब्दुल्ला के साथ बातचीत में प्रधानमंत्री ने अफगानिस्तान में पूरी तरह से अमन-शांति की बहाली को लेकर भारत की प्रतिबद्धता जताई और कहा कि भारत वहां समग्र व स्थायी संघर्ष विराम का स्वागत करेगा। डॉ. अब्दुल्ला की बुधवार को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल से इस संदर्भ में लंबी बातचीत हुई है और शुक्रवार को वह विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात करेंगे।

माना जा रहा है कि भारत कई स्तरों पर हुई इस बातचीत के आधार पर यह तय करेगा कि उसे तालिबान के साथ बातचीत का सीधा रास्ता खोलना चाहिए या नहीं। अफगानिस्तान में होने वाले शांति समझौते को लेकर अगले हफ्ते-दस दिनों में अहम घोषणा होने की उम्मीद है। अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि जाल्मे खलीलजाद गुरुवार को फिर पाकिस्तान पहुंचे हैं। उनके साथ अफगानिस्तान में तैनात अमेरिकी सेना के सबसे वरिष्ठ अधिकारी जनरल आस्टिन स्कॉट मिलर भी हैं।

साफ है कि जिस तरह ट्रंप प्रशासन राष्ट्रपति चुनाव से पहले अफगानिस्तान स्थित अपने सारे सैनिकों को वापस बुलाने की तैयारी में है, उसे देखते हुए पाकिस्तान की अहमियत और बढ़ गई है। अमेरिका पाकिस्तान से यह गारंटी चाहता है कि काबुल में शांति वार्ता के बाद गठित होने वाली नई सत्ता को वह अपने हितों के लिए प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेगा। यह भारतीय कूटनीतिक के लिए काफी अहम है।

अगर अमेरिकी सेना की वापसी के बाद काबुल में तालिबान के आधिपत्य वाली सरकार काबिज होती है तो यह पाकिस्तान के लिए बड़ी जीत होगी। प्रधानमंत्री मोदी ने डॉ. अब्दुल्ला को आश्वासन दिया कि अफगानिस्तान के विकास के लिए भारत की प्रतिबद्धता कभी कम नहीं होगी। भारत की तीन अरब डॉलर की मदद से अभी वहां के 34 प्रांतों में सैकड़ों परियोजनाओं को चलाया जा रहा है। भारत की चिंता यही है कि भावी सत्ता उसकी अरबों डॉलर की परियोजनाओं को लेकर क्या रुख अख्तियार करती है।

भारत ने ईरान के चाबहार एयरपोर्ट को अफगानिस्तान के अंदरूनी इलाकों से रेलवे और सड़क मार्ग से जोड़ने की भी एक योजना तैयार की है। इसके भविष्य को लेकर भी सवाल उठ सकता है। हालांकि, तालिबान ने इन परियोजनाओं को लेकर कोई विपरीत टिप्पणी नहीं की है। भारत अभी अफगानिस्तान में पुलिस, सेना और प्रशासनिक अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के लिए कई तरह के कार्यक्रम चला रहा है। पाकिस्तानी प्रभाव वाला तालिबान इसको जारी रखता है या नहीं, यह भी देखना होगा। 


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