तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और उभरते बाजारों में भारत की स्थिति आगे भी रहेगी कायम
तुर्की और ब्राजील जैसे कई देश आज संकट के मुहाने पर खड़े हैं। ये देश उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बढ़ते घाटे और मुद्राओं में भारी गिरावट का सामना कर रहे हैं।
राहुल लाल। कई क्षेत्रों में फैले निराशावाद के बावजूद ऐसे साक्ष्य सामने आ रहे हैं जो भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार की पुष्टि करते हैं। वस्तुनिष्ठ रूप से देखने पर भारतीय अर्थव्यवस्था के बुनियादी तत्व इतने सशक्त नजर आते हैं कि देश उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में बहने वाली हवा से मामूली रूप से ही प्रभावित दिखता है। तुर्की और ब्राजील जैसे कई देश आज संकट के मुहाने पर खड़े हैं जिसके लिए अमेरिका में आर्थिक वृद्धि की बहाली होने से पूंजी की तीव्र निकासी और मौद्रिक नीति को कड़ा करने के फेडरल रिजर्व के संकेतों को जिम्मेदार माना जा सकता है।
ये देश उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बढ़ते घाटे और मुद्राओं में भारी गिरावट का सामना कर रहे हैं और उन्हें अपनी मुद्राओं को संभालने के लिए खास उपायों का सहारा लेना पड़ा है। फिर भी भारत इसका अपवाद बना हुआ है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत में हो रहे सुधार और अंतर्निहित वृहद आर्थिक स्थिरता का परिचायक है। आर्थिक स्थिरता आंशिक रूप से उस भरोसे से पैदा हुई है कि सरकार पिछले साल लक्ष्य से चूकने के बाद भी राजकोषीय सशक्तीकरण के लिए प्रतिबद्ध है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की शुरुआत ने भले ही काफी संदेह और रिफंड के बारे में शिकायतों को जन्म दिया, लेकिन राजस्व के आंकड़े अच्छे रहे हैं और जीडीपी के बरक्स कर अनुपात अप्रत्याशित रूप से काफी अधिक है।
विश्व बैंक के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक भारत ने फ्रांस को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था का तमगा भी हासिल कर लिया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष का मानना है कि वर्ष 2022 तक भारत दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन जाएगा। सावधानी से देखें तो अर्थव्यवस्था में तेजी लौटने के कई संकेत नजर आते हैं। विनिर्माण क्षेत्र के लिए निक्केई इंडिया का खरीद प्रबंधक सूचकांक (पीएमआइ) जून महीने में 52.1 से बढ़कर 53.1 हो गया। पीएमआइ के मुताबिक जून में सेवा क्षेत्र का भी विस्तार हुआ है जो एक साल में इस क्षेत्र का सबसे बड़ा सुधार है। साफ तौर पर मांग सुधरने के भी संकेत दिख रहे हैं। बैंकों की ऋण वृद्धि भी अब दोहरे अंक में पहुंच चुकी है और पिछले कुछ महीनों से इस दायरे में बनी हुई है।
जून में यात्री वाहनों की बिक्री 37 फीसद से अधिक बढ़ी जो एक दशक में सर्वाधिक है। वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री में वृद्धि भी 2011-12 के स्तर पर नजर आई है। इसी तरह रेलवे की माल ढुलाई में भी अच्छी वृद्धि देखने को मिली है। हवाई सफर करने वाले यात्रियों की वृद्धि हालांकि 2017 के आखिरी महीनों की तुलना में हल्की धीमी हुई है, लेकिन फिर भी मई में भारत लगातार 45वें महीने दो अंकों में यात्री वृद्धि दर हासिल करने में सफल रहा है। विमानन कंपनियां वित्तीय रूप से भी अच्छी स्थिति में नजर आ रही हैं। संभवत: सबसे अहम बात यह है कि लंबे समय तक स्थिर रहने के बाद गैर-तेल निर्यात भी बढ़ता दिख रहा है।
इस उम्मीद की पर्याप्त वजह है कि अर्थव्यवस्था का यह सशक्त प्रदर्शन और उभरते बाजारों में भारत की अलग स्थिति आगे भी कायम रहेगी। वैश्विक प्रगति में सुधार हो रहा है और इस तरह निर्यात भी अनुकूल दिशा में ही रहना चाहिए। अमेरिका पूर्ण रोजगार के करीब है और भारत के बाकी निर्यात बाजारों का प्रदर्शन भी अच्छा है। सूचना प्रौद्योगिकी-आधारित सेवाओं के निर्यात की संभावना भी बेहतर हो रही है। मानसून के भी छिटपुट भौगोलिक असमानताओं के बावजूद काफी हद तक अपेक्षा के अनुरूप रहने के आसार हैं। बारिश अच्छी होने से ग्रामीण मांग भी अच्छी रहने की उम्मीद है। नोटबंदी और जीएसटी के रूप में भारतीय अर्थव्यवस्था को लगे दोहरे झटके अब अतीत का हिस्सा बनते जा रहे हैं। कुल मिलाकर वैश्विक पूंजी को वृद्धि एवं स्थायित्व देने वाले इकलौते उभरते बाजार के तौर पर भारत की असाधारण हैसियत कुछ समय तक जारी रह सकती है।