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ईरान के मुद्दे पर अमेरिका को ठेंगा दिखाने की तैयारी में जुटा भारत

परमाणु डील से अमेरिका के अलग होने के बाद और ईरान पर लगने वाले प्रतिबंधों की आशंका के मद्देनजर भारत ने भी अपनी तैयारी तेज कर दी है। वहीं दूसरी तरफ ईरान से भी इस ओर कवायद शुरू हो गई है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 11 May 2018 01:50 PM (IST)Updated: Sat, 12 May 2018 05:08 PM (IST)
ईरान के मुद्दे पर अमेरिका को ठेंगा दिखाने की तैयारी में जुटा भारत
ईरान के मुद्दे पर अमेरिका को ठेंगा दिखाने की तैयारी में जुटा भारत

नई दिल्‍ली [स्‍पेशल डेस्‍क]। परमाणु डील से अमेरिका के अलग होने के बाद और ईरान पर लगने वाले प्रतिबंधों की आशंका के मद्देनजर भारत ने भी अपनी तैयारी तेज कर दी है। वहीं दूसरी तरफ ईरान से भी इस ओर कवायद शुरू हो गई है। आपको बता दें कि भारत और ईरान दोनों ही एक दूसरे के लिए काफी अहम हैं। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि भारत ईरान से तेल का सबसे बड़ा खरीददार है। तेल ईरान की अर्थव्‍यवस्‍था का प्रमुख हिस्‍सा है। ईरान-अमेरिका परमाणु डील के टूटने और बदलते माहौल के बीच ईरान के विदेश मंत्री जावेद जारीफ के भी भारत आने का कार्यक्रम है। इसके अलावा वह फ्रांस, जर्मनी, चीन और ब्रिटेन भी जा सकते हैं।

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अमेरिका पर बात करना वक्‍त बर्बाद करने जैसा

इस बीच ईरान के वरिष्‍ठ नेता अयातुल्‍लाह अली खमेनी का कहना है कि अमेरिका पर बात करना सिर्फ समय बर्बाद करने जैसा है। उनका यह भी कहना है कि अमे‍रिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप को दरअसल इस्‍लाम से ही नफरत है परमाणु डील तो महज एक दिखावा है। उन्‍होंने यह भी कहा कि ट्रंप लगातार ईरान पर झूठे आरोप लगाकर उनके देश को बदनाम करने की साजिश रच रहे हैं। खमेनी के मुताबिक ईरान से परमाणु डील खत्‍म करने के मुद्दे पर ट्रंप के ही अधिकारी उनमें दिमागी पिछड़ापन बता रहे हैं। लिहाजा उस पर बात करना ही बेमानी हो जाता है।

ईरानी राष्‍ट्रपति की भारत यात्रा

गौरतलब है कि फरवरी, 2018 में जब ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी भारत आए थे उस वक्‍त दोनों देशों के बीच विभिन्‍न मुद्दों को लेकर बातचीत हुई थी। अमेरिकी प्रतिबंध की आशंका से ही भारतीय तेल कंपनियों ने ईरान से आयातित तेल के एक बड़े हिस्से का भुगतान यूरो (यूरोपीय संघ की मुद्रा) में करना शुरू किया था। इसी दौरान दोनों देशों के बीच एक-दूसरे के यहां बैंक शाखा खोलने का समझौता हुआ है, जिसे अब अमलीजामा पहनाया जा सकता है। इससे भारत के लिए ईरान में भुगतान करना आसान हो जाएगा।

इस बार बदल गया है माहौल

यहां पर ये बताना बेहद जरूरी होगा कि अमेरिका ने ईरान पर डील से पहले भी प्रतिबंध लगाए थे। लेकिन उस वक्‍त माहौल कुछ दूसरा था और अमेरिका का साथ यूरोप के दूसरे देश भी दे रहे थे। लेकिन इस बार माहौल पूरी तरह से बदला हुआ है। इस बार यूरोप के देश फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन इस डील के समर्थन में हैं जबकि अमेरिका इसको लेकर अलग-थलग पड़ गया है। उसके साथ महज वो देश हैं जो इस डील से नहीं जुड़े हुए थे। इनमें इजरायल समेत सऊदी अरब शामिल है।

संकट से उबरने की कवायद

बहरहाल, प्रतिबंधों के बाद होने वाले संकट से उबरने के लिए भारत की कवायद जो कवायद हो रही है उसका एक सकारात्‍मक पहलू भी यही है कि इस बार यूरापीय देश अमेरिका के साथ नहीं हैं। लिहाजा माना जा रहा है कि भारत को तेल खरीद में शायद पहले जैसी परेशानी से न जूझना पड़े। इसके अलावा भारत ने ट्रंप के फैसले से नाराज यूरोपीय देशों के साथ कूटनीतिक विचार-विमर्श भी शुरू कर दिया है ताकि अमेरिकी प्रतिबंध से बचने की काट खोजी जा सके।

हर हाल में हितों की रक्षा

इस बारे में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा है कि भारत पूरे हालात पर गहरी नजर रखे हुए है। हम वह हरसंभव कदम उठाएंगे जिससे हमारे हितों की रक्षा हो सके। हम चाबहार में भी अपने हितों को सुरक्षित करने के लिए सतर्क और सजग हैं। विदेश मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी ने बताया, ‘यह नहीं भूलना चाहिए कि जब पूर्व में अमेरिका ने ईरान पर भारी आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे तब भी हमने ईरान के साथ कारोबार को बंद नहीं किया था। ईरान के साथ तेल खरीदना भी जारी था। उस वक्‍त अमेरिका की नाराजगी के बावजूद पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने ईरान की यात्रा की थी।

ज्‍यादा कड़े प्रतिबंधों की तैयारी में यूएस

हालांकि माना यह भी जा रहा है कि अमेरिका इस बार ईरान पर पहले से कहीं ज्‍यादा कड़े प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रहा है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ यदि भारत को फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन का साथ मिल जाए तो भारत के लिए ईरान के साथ कारोबार करने या उससे तेल खरीदने में या वहां अपनी औद्योगिक परियोजनाओं को लगाने में खास दिक्कत नहीं आएगी। गौरतलब है कि भारत जिन देशों से तेल की आपूर्ति पर सबसे अधिक निर्भर है उनमें ईरान का नंबर तीसरे स्थान पर आता है। इराक और सऊदी अरब से तेल की आपूर्ति सबसे अधिक होती है। जाहिर है, भारत के लिए तेहरान खासा महत्व रखता है।

प्रतिबंध के बाद क्‍यों आती है दिक्‍कत

दरअसल, अमेरिकी प्रतिबंध के बाद ईरान में परियोजनाओं के लिए फंड जुटाने या फिर उन परियोजनाओं के लिए बीमा करवाने या अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग व्यवस्था के जरिए फंड भेजना मुश्किल हो जाता है। पिछली बार भी ऐसा ही हुआ था। लेकिन अगर यूरोपीय देशों ने ईरान के साथ अपने संबंध बनाए रखे तो भारत इनकी बैंकिंग व्यवस्था और वित्तीय एजेंसियों के जरिए अपना कारोबार सामान्य तौर पर कर सकता है। भारत इस समय ईरान के चाबहार में बंदरगाह बना रहा है। साथ ही चाबहार से अफगानिस्तान के बीच राजमार्ग और रेलवे लाइन का भी निर्माण कर रहा है। इसके अलावा भारत ईरान से तेल भी खरीदता है जिसके भुगतान के लिए उसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय एजेंसियों की दरकार होती है।

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