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कोरोना काल में भारत ने दिखाई वैश्विक नेतृत्व क्षमता, अर्थव्यवस्था को सहारा देने में भी रहा अगुआ

जनता को आर्थिक मदद देने की अमेरिकी योजना में भी भारत की झलक दिख रही है जिससे भारत अर्थव्यवस्था को सहारा देने की योजना में भी अगुआ दिख रहा है।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Thu, 02 Apr 2020 09:23 AM (IST)Updated: Thu, 02 Apr 2020 09:50 AM (IST)
कोरोना काल में भारत ने दिखाई वैश्विक नेतृत्व क्षमता, अर्थव्यवस्था को सहारा देने में भी रहा अगुआ
कोरोना काल में भारत ने दिखाई वैश्विक नेतृत्व क्षमता, अर्थव्यवस्था को सहारा देने में भी रहा अगुआ

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कोरोना महामारी के बीच जहां वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर अनिश्चितता है। हर देश अपनी समस्या से पार पाने की कोशिशों में जुटा है, वहीं भारत ने नेतृत्व क्षमता दिखाई है। ऐसे वक्त में जब ब्रिटेन, फ्रांस, इटली व जर्मनी जैसे देशों के हाथ कांप रहे हैं और अमेरिका ने यह कहते हुए हाथ खड़े कर दिए है कि हालात बिगड़े तो 20 लाख अमेरिकियों की भी मौत हो सकती है।

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ऐसे वक्त में 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन जैसे साहसिक निर्णय के कारण भारत अब तक ऐसे स्थान पर खड़ा है कि जहां भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) आशावादी भरोसा जता रही है। परिषद कह रही है कि लोगों ने पूरा साथ दिया तो स्थिति बिगड़ने नहीं दी जाएगी।वहीं, इस बुरे दौर में सामाजिक हालात और अर्थव्यवस्था को सहारा देने की योजना में भी भारत ने नेतृत्व क्षमता दिखाई है।

PM मोदी ने की पहल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर ही पहले जी-7 और फिर जी-20 देशों की बैठक में यह बात सामने आई कि हमें सामूहिक रूप से इस आपदा से निपटना चाहिए तथा मानवीय मूल्यों पर पहले गौर करना चाहिए। जब देश के अंदर गरीबों की मदद की बात आई तो भारत ने ही पहल की। मोदी सरकार की ओर से 1.70 लाख करोड़ रुपये की राहत योजना की घोषणा की गई। उसके दूसरे दिन अमेरिका में ट्रंप सरकार ने भी दो ट्रिलियन डॉलर की योजना घोषित की जो आकार में भारत से बहुत बड़ी दिख सकती है। दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं में फर्क के लिहाज से यह अंतर लाजिमी है, पर सोच की बात करें तो ट्रंप की घोषणा में मोदी की सोच झलकती है।

अमेरिकी योजना में भी भारत की झलक

ट्रंप ने उसी तरह डायरेक्ट ट्रांसफर की बात की है जिसकी आधारशिला मोदी ने 2014 में पहली बार सरकार बनाने के साथ ही रख दी थी। यूं कहा जा सकता है कि भारत में जनधन खाता, आधार व मोबाइल के जरिये एक ऐसा दूरगामी ढांचा खड़ा कर दिया गया था जिसके जरिये लोगों तक सीधी और तत्काल मदद पहुंचाने का रास्ता तैयार था। अमेरिकी पैकेज में सालाना 75 हजार डॉलर कमाने वाले व्यक्ति को 1200 डॉलर की मदद सीधे खाते में ट्रांसफर की जाएगी। अगर पति-पत्नी की कमाई डेढ़ लाख डॉलर से कम है तो उन्हें 2,400 डॉलर की मदद मिलेगी। प्रति बच्चा भी 500 डॉलर दिए जाएंगे।

यह सब कुछ सोशल सिक्योरिटी नंबर से जुड़ा होगा और उनके आयकर रिटर्न और आमदनी के आधार पर तय होगा, जबकि भारत में महिलाओं के 20 करोड़ जनधन खाते में तीन माह के लिए 1,500 रुपये जाएंगे। मनरेगा मजदूरों की रोजाना मजदूरी में 20 रुपये की वृद्धि, तीन करोड़ वरिष्ठ नागरिकों, विधवा, दिव्यांगों के खाते में हजार रुपये, लगभग नौ करोड़ किसानों के खाते में दो-दो हजार रुपये देने का प्रावधान है। आधार और जनधन खाते के कारण यह मदद सीधे बैंक में पहुंचेगी। एक बड़ी मानवीय सोच उन डॉक्टरों व नर्सों को लेकर दिखाई गई है जो कोरोना से सीधे जंग लड़ रहे हैं। 

उनके लिए 50-50 लाख के बीमे का इंतजाम किया गया है। अमेरिका में भारतीय दूतावास के अधिकारियों की तत्काल प्रतिक्रिया यही थी कि ट्रंप सरकार भारत की तर्ज पर ही योजना लेकर आई है। सरकार की पहल पर ही रिजर्व बैंक ने मध्यम वर्ग को भी ईएमआइ, लोन ब्याज दर में राहत दी है और उद्योग जगत को राहत देकर कोरोना से लड़ते हुए अर्थव्यवस्था को बचाने की तैयारी शुरू हुई है। अंकटाड ने अनुमान जताया है कि भारत-चीन ही अपनी अर्थव्यवस्था बचाने में कामयाब होंगे।


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