Move to Jagran APP

भारत को घटानी होगी तेल पर अपनी निर्भरता, करने होंगे दूसरे जरूरी उपाय

भारत ने देर से ही सही, तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक पर कच्चे तेल की कीमतों में कटौती के लिए दबाव डालते हुए उचित कदम उठाया है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sat, 14 Jul 2018 10:34 AM (IST)Updated: Sat, 14 Jul 2018 10:34 AM (IST)
भारत को घटानी होगी तेल पर अपनी निर्भरता, करने होंगे दूसरे जरूरी उपाय
भारत को घटानी होगी तेल पर अपनी निर्भरता, करने होंगे दूसरे जरूरी उपाय

(डॉ. जयंतीलाल भंडारी)। भारत ने देर से ही सही, तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक पर कच्चे तेल की कीमतों में कटौती के लिए दबाव डालते हुए उचित कदम उठाया है। एक जुलाई से ओपेक ने कच्चे तेल के उत्पादन में लगभग 10 लाख बैरल प्रतिदिन (बीपीडी) की बढ़ोतरी की है, पर कीमतें अब भी कम नहीं हो पाई हैं। नि:संदेह बीते कुछ वक्त से तेल की लगातार बढ़ती कीमतें भारत के लिए चिंता का सबब बनी हुई हैं। भारत अपनी जरूरत का अस्सी फीसद कच्चा तेल आयात करता है। जाहिर है, तेल की बढ़ती कीमतों से देश का आयात बिल भी बढ़ रहा है। इससे देश में डॉलर की मांग बढ़ गई है और इस कारण विदेशी मुद्रा कोष में तेजी से गिरावट आ रही है। 11 जुलाई को देश के विदेशी मुद्रा कोष का स्तर 405 अरब डॉलर रह गया, जो एक माह पहले 425 अरब डॉलर के स्तर पर था।

loksabha election banner

 भारतीय रुपये के मूल्य में गिरावट

डॉलर की मांग बढ़ने से भारतीय रुपये के मूल्य में भी गिरावट आ रही है। हाल ही में क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कहा है कि अमेरिका और चीन के बीच छिड़े ट्रेड वार, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के बढ़ती कीमतों और रुपये की कीमत में ऐतिहासिक गिरावट से अब पेट्रोल और डीजल में आ रही तेजी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा खतरा है। दुनिया के मशहूर निवेश बैंकों-बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच, मार्गन स्टेनले और ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म सीएलएसए द्वारा भी कुछ ऐसी ही आशंकाएं जाहिर की गई हैं। अर्थ विशेषज्ञों का कहना है कि कोई एक-दो दशक पहले मानसून का बिगड़ना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आर्थिक-सामाजिक चिंता का कारण बन जाया करता था, लेकिन अब मानसून के धोखा देने पर भी अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को काफी कुछ नियंत्रित कर लिया जाता है। जबकि कच्चे तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय हलचलों और तेल उत्पादक देशों की नीतियों से प्रभावित होती हैं, जिस पर भारत का नियंत्रण नहीं है।

भारत के समक्ष चिंता

यहां पर तेल आयात को लेकर भारत के समक्ष एक और बड़ी चिंता सामने है। पिछले दिनों अमेरिका ने भारत और चीन सहित सभी देशों को ईरान से कच्चे तेल का आयात 4 नवंबर तक बंद करने के लिए कहा है। उसका यह फरमान न मानने वाले देशों पर उसने सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाने की धमकी दी है। जाहिर है इससे भारत के समक्ष एक तरह की विकट स्थिति पैदा हो गई है। भारत में इराक और सऊदी अरब के बाद सबसे ज्यादा कच्चा तेल ईरान से मंगाया जाता है। ईरान को भारत के द्वारा यूरोपीय बैंकों के माध्यम से यूरो में भुगतान किया जाता है। डॉलर की तुलना में यूरो में भुगतान भारत के लिए लाभप्रद है। इसके अलावा ईरान से किया जाने वाला कच्चे तेल का आयात सस्ते परिवहन के चलते भी भारत के लिए फायदेमंद है।

ईरान की क्रेडिट लिमिट

इतना ही नहीं, ईरान भारत को भुगतान के लिए 60 दिनों की क्रेडिट देता है, जबकि दूसरे देश सिर्फ 30 दिन की ही क्रेडिट देते हैं। यद्यपि भारत के लिए कच्चे तेल के आयात हेतु ईरान का विकल्प तलाशना मुश्किल नहीं होगा, लेकिन उस नए विकल्प के साथ हमें ऐसी तमाम सहूलियतें शायद न मिलें जो फिलहाल ईरान हमें देता है। इन तमाम परिस्थितियों को देखते बेहतर यही होगा कि भारत जहां एक ओर तेल की कीमतों में कटौती के लिए ओपेक पर लगातार दबाव बनाए रखे, वहीं अपनी ऊर्जा संबंधी जरूरतों की पूर्ति के लिए तेल के बजाय अन्य विकल्पों को बढ़ावा देने की नीति अख्तियार करे। पिछले महीने दुनिया के तीन में से दो सबसे बड़े तेल उपभोक्ता देश चीन और भारत ने साथ मिलकर तेल उत्पादक देशों पर कच्चे तेल की कीमतें वाजिब किए जाने का दबाव बनाने हेतु संयुक्त रणनीति को अंतिम रूप दिया।

कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाना 

इसके तहत सबसे पहले ओपेक संगठन पर कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने हेतु दबाव बनाया गया, जो सफल रहा। ज्ञातव्य है कि एशियाई देशों के लिए तेल आपूर्तियां दुबई या ओमान के कच्चे तेल बाजारों से संबंधित होती हैं, नतीजतन उनसे यूरोप व उत्तरी अमेरिका के देशों की तुलना में कुछ अधिक कीमतें ली जाती हैं। कीमतों के इस आधिक्य को एशियाई प्रीमियम की संज्ञा दी गई है। यह एशियाई प्रीमियम अमेरिका या यूरोपीय देशों की तुलना में प्रति बैरल करीब छह डॉलर अधिक है। भारत-चीन का तर्क है कि चूंकि वे दुनिया में बड़े तेल आयातक देश हैं, अत: उनसे एशियाई प्रीमियम वसूल करने के बजाय उन्हें बड़ी मात्र में तेल खरीदी का विशेष डिस्काउंट दिया जाना चाहिए। यदि भारत व चीन अपने गठजोड़ का विस्तार करते हुए इसमें दो और बड़े तेल उपभोक्ता देश दक्षिण कोरिया व जापान को भी भागीदार बना लें तो ये चारों संगठित रूप से तेल उत्पादक देशों से कीमतों को लेकर ज्यादा प्रभावी ढंग से मोलभाव कर सकेंगे।

महंगाई से बचाने के लिए सरकार की नीति

इसके साथ-साथ देशवासियों को पेट्रोल और डीजल की महंगाई से बचाने के लिए सरकार अपनी ऊर्जा नीति को नए सिरे से तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करे तो बेहतर होगा। अब ऐसे उपाय करना अपरिहार्य हो गया है, जिससे तेल पर हमारी निर्भरता घटे। इस हेतु सरकार इलेक्टिक से चलने वाले वाहनों को बढ़ावा दे। ऐसे वाहनों पर टैक्स की दरें कम रखी जाएं और यदि जरूरी लगे तो सबसिडी भी दी जाए। इस संदर्भ में राज्य परिवहन निगमों को यह लक्ष्य दिया जाए कि वे अपने परिवहन बेड़े में एक निश्चित प्रतिशत में इलेक्टिक वाहनों को शामिल करें। इसके साथ-साथ केंद्र व राज्य सरकारें लोक परिवहन सेवा को सरल और कारगर बनाने के भी उपाय करें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे अपनाने के लिए प्रोत्साहित हों।

पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे लाना होगा 

यह भी उपयुक्त होगा कि तेल की कीमतों में राहत देने के लिए पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाए। राज्य सरकारों को भी एक न्यूनतम दर पर वैट लगाने की अनुमति दी जाए ताकि उनकी आमदनी में एकदम कमी न आए और लोगों को भी कम दर पर पेट्रोल व डीजल प्राप्त हो सके। सरकार द्वारा तेल बाजार में समय और मूल्य आधारित नीतिगत हस्तक्षेप के मद्देनजर तेल कीमतों को एक मानक स्तर से नीचे रखकर अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं की खपत को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। आशा करें कि भारत तेल कीमतों पर नियंत्रण और ओपेक संगठन से सस्ते कच्चे तेल के मोलभाव के लिए चीन के साथ-साथ दक्षिण कोरिया और जापान से गठजोड़ बनाने की डगर पर आगे बढ़ेगा और यह गठजोड़ कच्चे तेल की कुछ कीमत घटाने में कामयाब होगा। ऐसे प्रयासों से ही देश की अर्थव्यवस्था कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के नकारात्मक असर से निपट सकती है।

(लेखक अर्थशास्त्री हैं) 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.