भारत ने कहा, कनेक्टिविटी में दूसरे देश की संप्रभुता का आदर सबसे अहम
भारत ने साफ किया है कि आने वाले दिनों में वैश्विक कनेक्टिविटी परियोजनाएं उसकी कूटनीति का एक अहम हिस्सा होंगी।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। भारत ने एक बार फिर यह साफ किया है कि आने वाले दिनों में वैश्विक कनेक्टिविटी परियोजनाएं उसकी कूटनीति का एक अहम हिस्सा होंगी।
भारत ने यह भी कहा है कि सिर्फ पड़ोसी देशों में ही नहीं बल्कि इससे बाहर भी वह बुनियादी सुविधाओं के विकास में हिस्सा लेगा और इसके लिए जापान व अमेरिका जैसे समान विचारधारा वाले देशों का समर्थन लिया जाएगा। लेकिन इन सभी परियोजनाओं में इस बात का ख्याल रखा जाएगा कि वह किसी भी दूसरे देश की संप्रभुता या स्वायत्तता का उल्लंघन नहीं करे।
वैश्विक कनेक्टिविटी पर भारत के इस विचार को विदेश सचिव विजय गोखले ने गुरुवार को रिजीनल कनेक्टिविटी परियोजनाओं पर आयोजित एक सेमिनार को संबोधित करते हुए दिया। कहने की जरूरत नहीं कि भारत का निशाना चीन की तरफ था जिसकी बीआरआई (बेल्ट एंड रोड इनिसियटिव-पुराना नाम वन बेल्ट-वन रोड) परियोजनाओं का सबसे पहले विरोध भारत ने किया।
इस परियोजना में हिस्सा लेने वाले कई देशों ने इसके भारी वित्तीय लागत व इसके कर्ज की शर्तो की वजह से विरोध करना शुरु कर दिया है। भारतीय विदेश सचिव ने यह बात उस मंच से कही जहां अमेरिका व जापान के राजदूत भी उपस्थित थे।
गोखले ने कहा कि, कनेक्टिविटी से जुड़ी योजनाएं दो देशों के बीच व्यापार को बढ़ाने वाला होना चाहिए नहीं कि दो देशों के बीच तनाव बढ़ाने वाला। साथ ही इसमें सभी पक्षों को एक समान अवसर मिलना चाहिए और हर तरह के अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करने वाला होना चाहिए। यह आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने वाले होने चाहिए नहीं कि किसी देश पर कर्ज का भारी बोझ डालने वाला होना चाहिए।
भारत में अमेरिका के राजदूत केन जेस्टर ने कहा कि, कनेक्टिविटी से जुड़ी परियोजनाओं के कई फायदे हैं लेकिन इसके साथ जोखिम भी कम नहीं है। दूसरे देश में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ने के साथ ही इसकी आड़ में गैर कानूनी कारोबार बढ़ाने की घटनाएं भी सामने आ सकती हैं जिससे निबटने के लिए सभी देशो को समग्र तौर पर तैयार होना चाहिए।
जेस्टर ने दक्षिण भारत में खास तौर पर डिजिटल कनेक्टिविटी का मुद्दा उठाया और भारत को आगाह किया कि वह डाटा लोकलाइजेशन पर जो कदम उठा रहा है उसके साथ भी कई तरह के जोखिम है। अगर इस बारे में सोच समझ कर कदम नहीं उठाया गया तो इससे डाटा प्रवाह पर उल्टा असर भी पड़ सकता है।
जापान के राजदूत केंजी हीरामात्सु ने कहा कि भारत व जापान के बीच कनेक्टिविटी परियोजनाओं को लेकर काफी बातचीत चल रही है। दोनो देश एशिया और अफ्रीका के कई देशों में संयुक्त तौर पर परियोजनाओं को लगाने पर विचार कर रहे हैं।