चीन की तरह नहीं होंगी भारत की परियोजनाएं, दूसरे देशों के हितों को मिलेगी वरीयता
भारत ने जापान के साथ भी एक समझौता किया है ताकि दूसरे देशों में कनेक्टिविटी परियोजनाओं को संयुक्त तौर पर लागू किया जा सके।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। भारत चीन की तरह दूसरे देशों में भारी भरकम निवेश कर कनेक्टिविटी परियोजनाएं तो नहीं लगाएगा, लेकिन कोशिश है कि भारतीय निवेश चीनी निवेश से अलग दिखे। दूसरे देशों में जो भी परियोजनाएं लगे उसको लेकर वहां कोई नकारात्मक माहौल पैदा न हो। पड़ोसी देश बांग्लादेश में अगले हफ्ते भारत की मदद से तीन अहम रेल परियोजनाओं और एक ऊर्जा परियोजनाओं पर काम शुरु होने जा रहा है। इन चारों परियोजनाओं पर भारत तकरीबन 1500 करोड़ रुपये की राशि उपलब्ध कराएगा, लेकिन यह आर्थिक मदद इस तरह से दी जाएगी कि पड़ोसी देश बांग्लादेश पर कोई वित्तीय बोझ नहीं पड़े।
भारत की मदद से बांग्लादेश में चार बड़ी परियोजनाओं पर काम होगा शुरु
पीएम नरेंद्र मोदी व बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना अगले हफ्ते भारत की मदद से दोनो देशों के बीच चार अहम परियोजनाओं पर काम की शुरुआत को हरी झंडी दिखाएंगे। यह भारत की मदद से दूसरे देश में लगाई जा रही अभी तक सबसे बड़ी कनेक्टिविटी परियोजनाएं होंगी। भारत इस तरह की परियोजनाएं दूसरे कई पड़ोसी देशों में और अन्य देशों में भी लगाने का इच्छुक है। बांग्लादेश में लगाई जा रही इन परियोजनाओं पर दूसरे देशों की भी नजर है।
भारत इस तरह की परियोजनाओं आने वाले दिनों में नेपाल, श्रीलंका के अलावा आसियान व मध्य एशिया के कई देशों में शुरु करने की इच्छा रखता है। सनद रहे कि चीन की ढांचागत परियोजनाओं का कई देशों में विरोध हो रहा है। यहां तक कि पाकिस्तान में भी चीन की मदद से चलाई जा रही सड़क, बिजली व पोर्ट परियोजनाओं का विरोध बढ़ रहा है।
बेहद आसान शर्तो पर कर्ज
बांग्लादेश और भारत के बीच तीन रेल परियोजनाओं (अगरतला-अखौड़ा, कुलौरा-शाहबाजपुर और ढाका-टोंगी-जयदेवपुर) को शुरु करने के साथ ही डीजल आपूर्ति के लिए एक 130 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बिछाने का काम इस हफ्ते शुरु होगा। विदेश मंत्रालय के सूत्रों इन परियोजनाओं के लिए कुछ राशि बतौर अनुदान दी जा रही है जबकि कुछ राशि लाइन ऑफ क्रेडिट (कर्ज) के तौर पर दी जा रही है, लेकिन इस बात का ख्याल रखा गया है कि बांग्लादेश पर इसका कोई वित्तीय बोझ नहीं पड़े। साथ ही उन परियोजनाओं का चयन किया गया है जिसका लाभ पड़ोसी देश को ज्यादा हो।
मसलन, ढाका-टोंगी-जयदेवपुर के बीच मौजूदा रेल लाइन में भारत की तरफ से दो नए ट्रैक बिछाए जाएंगे जो न सिर्फ बांग्लादेश की आम जनता के लिए ट्रेन से आवागमन को सुविधाजनक बनाएगा बल्कि वहां आर्थिक गतिविधियों को भी बढ़ावा देगा।
भारत निश्चित तौर पर बांग्लादेश की इन परियोजनाओं को दूसरे देशों के लिए आर्दश के तौर पर पेश करना चाहता है, लेकिन इसका फायदा देश के समूचे पूर्वी व खास तौर पर पूर्वोत्तर राज्यों को मिलेगा। पूर्वोत्तर राज्यों के उद्योग को बांग्लादेश के बंदरगाह से जोड़ना भारत की इच्छा है जिसकी राह इन परियोजनाओं से खुलेगी।
सनद रहे कि भारत ने जापान के साथ भी एक समझौता किया है ताकि दूसरे देशों में कनेक्टिविटी परियोजनाओं को संयुक्त तौर पर लागू किया जा सके। अभी हाल ही में नेपाल के लिए दो नई रेल लाइनें बिछाने की घोषणा की गई है जिसके सर्वेक्षण का काम चल रहा है। इसके अलावा भारत से म्यांमार होते हुए थाइलैंड तक सड़क मार्ग पर काम तेज है। इसे दूसरे देशों में ले जाने की इच्छा भारत जता चुका है।
बांग्लादेश के लिए विशेष पावर प्लांट लगा सकता है भारत
दक्षिण एशिया में बांग्लादेश एक ऐसा देश है जिसके साथ भारत के रिश्ते पिछले एक दशक से लगातार मजबूत हो रहे हैं। आने वाले दिनों में इसके और प्रगाढ़ होने की संभावना है। खास तौर पर भारत जिस तरह से अपने इस पड़ोसी देश की ऊर्जा जरुरतों को पूरा करने की कोशिश कर रहा है उसका अपना असर होगा। भारत अभी बांग्लादेश को 1160 मेगावाट बिजली की आपूर्ति करता है और वर्ष 2020 से बांग्लादेश को पाइपलाइन से डीजल व अन्य पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति भी शुरु हो जाएगी।
अब दोनो देश इस संभावना को तलाश रहे हैं कि क्या बांग्लादेश को बिजली देने के लिए भारत में विशेष प्लांट लगाये जा सकते हैं। भारत इसके लिए तैयार है और उसने बांग्लादेश से कहा है कि वह इस बारे में निजी बिजली कंपनियों से बात करे। बाद में जो भी मदद की जरुरत पड़ेगी उसे उपलब्ध कराया जाएगा।भारत बांग्लादेश में एक एलएनजी टर्मिनल भी लगाना चाहता है ताकि आस्ट्रेलिया से एलएनजी ला कर वहां उसका इस्तेमाल हो सके।
भारत की मंशा है कि आगे चल कर दोनो देशों देशों के गैस ग्रिड नेटवर्क को भी एक दूसरे से जोड़ा जा सके। ऐसे में भारत काफी कम कीमत पर गैस हासिल कर उससे बनी बिजली को वापस बांग्लादेश को भेज सकता है। भारत अभी भी बांग्लादेश का एक अहम ऊर्जा आपूर्तिकर्ता देश बन चुका है। बांग्लादेश में अभी सालाना 11,300 मेगावाट बिजली की मांग है जिसमें 10 फीसद से ज्यादा भारत देता है।