UNGA में भारत ने पाकिस्तान से पूछे यह 5 सवाल, क्या इमरान सरकार दे पाएगी इनका जवाब?
भारत ने पूछे पांच सख्त सवाल भारतीय राजनयिक विदिशा मैत्रा ने कहा- इमरान ने घृणा फैलाने की कोशिश की। कहा 1947 में वहां अल्पसंख्यकों की संख्या 23 फीसद थी जो अब केवल तीन फीसद रह गई।
नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में भारत कश्मीर मुद्दे पर अपनी सारगर्भित और संयमित कूटनीति को जारी रखे हुए है। पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने अभिभाषण में कहीं भी पाकिस्तान का नाम नहीं लिया। वहीं, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के भाषण का बड़ा हिस्सा भारत, भारतीय प्रधानमंत्री और यहां की राजनीति पर तल्ख हमला करने पर केंद्रित था।
अब भारत ने इमरान खान की तरफ से उठाए गए सवालों का जवाब भी बेहद संयमित तरीके से दिया है, लेकिन उसके आतंकी चेहरे को बेनकाब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। भारत ने पाकिस्तान और आतंकी संगठनों से उसके रिश्तों को लेकर पांच सवाल भी पूछे हैं जिसका जवाब देना इमरान खान के लिए आसान नहीं होगा। इसमें एक सवाल यह भी है कि क्या पाकिस्तान एक मात्र ऐसा देश नहीं है जो संयुक्त राष्ट्र से प्रतिबंधित आतंकियों को पेंशन देता है।
भारत के पांच सवाल
1. क्या पाकिस्तान बताएगा कि उसके यहां यूएन की तरफ से घोषित 130 आतंकी और 25 आतंकी संगठन क्यों रहते हैं?
2. क्या पाकिस्तान एक मात्र ऐसा देश नहीं है जो ऐसे आतंकियों को पेंशन देता है जिन पर यूएन का प्रतिबंध लगा हो?
3. क्या पाकिस्तान इस बात से इन्कार करेगा कि उसके हबीब बैंक को आतंकी फंडिंग देने की वजह से न्यूयॉर्क में प्रतिबंधित कर दिया गया?
4. क्या एफएटीएफ ने पाकिस्तान को आतंकी फंडिंग से जुड़े 27 मानकों में से 20 के उल्लंघन का दोषी नहीं माना?
5. क्या इमरान खान इस बात से इन्कार करेंगे कि उन्होंने कहा है कि वह ओसामा बिन लादेन का खुला समर्थन करते हैं?
भारत इमरान खान को कितनी देता है तवज्जो
भारत ने यह जबाव संयुक्त राष्ट्र में प्रथम सचिव विदिशा मैत्रा से दिलाकर यह भी जता दिया कि प्रधानमंत्री इमरान खान की उलटबांसी को वह कितना तवज्जो देता है। मैत्रा ने अपने लिखित भाषण में कहा, 'आतंकवाद के उद्योग की समूची वैल्यू चेन को जिस तरह से पाकिस्तान ने स्थापित किया है उसे इमरान ने अपने भाषण में खुल्लमखुल्ला जायज ठहराया है, यह पूरी तरह से फसादी है।' भारतीय अल्पसंख्यकों की आवाज उठाने की इमरान की कोशिश पर भारत ने कहा है कि वह पहले खुद ही अपने देश में अल्पसंख्यकों की स्थिति देख लें।
1947 में वहां की आबादी में अल्पसंख्यक 23 फीसद थे जो अब घटकर तीन फीसद रह गए हैं। मैत्रा ने इसी तरह पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को उनके पूरे नाम इमरान खान नियाजी से संबोधित करते हुए कहा कि वह इतिहास का सही तरीके से अध्ययन करें ताकि उन्हें पता चल सके कि 1971 में बांग्लादेशी नागरिकों के नरसंहार में लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने क्या भूमिका निभाई थी।
मैत्रा ने आगे कहा कि आतंकवाद को मुख्यधारा में लाने के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री अब मानवाधिकार के अगुआ बनने की कोशिश कर रहे हैं। मानवाधिकार पर उपदेश देने की उनकी नई मुग्धता की तुलना भारत ने दुर्लभ पहाड़ी बकरी 'मारखोर' के शिकार करने से की है।
सनद रहे कि मारखोर पाकिस्तान के पहाड़ी इलाकों में होती है जिसके शिकार के लिए हर वर्ष पाकिस्तान सरकार लाइसेंस जारी करती है और हजारों डॉलर की कमाई करती है। जबकि दुनियाभर में इस प्रजाति की बकरी को बचाने के लिए पाकिस्तान सरकार के इस कृत्य की आलोचना की जाती है।
भारत की तरफ से यह भी बता दिया गया कि जम्मू-कश्मीर में जो हुआ है वह पूरी तरह से लोकतांत्रिक और भारत के विविधता वाले माहौल के मद्देनजर किया गया है और अब इसमें बदलाव नहीं किया जा सकता। अंत में इमरान को साफ किया गया कि किसी भी दूसरे व्यक्ति को भारतीय नागरिकों की तरफ से बोलने की जरूरत नहीं है, कम से कम उन्हें तो बिल्कुल नहीं जो आतंकवाद की फैक्ट्री चलाते हों और जिनकी विचारधारा नफरत पर टिकी हुई हो।