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जानिए, उस कानून के बारे में जिसके तहत मोदी की हत्या के साजिशकर्ता हुए गिरफ्तार

यह एक ऐसा कानून है जिसमें पुलिस किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है और इसमें अग्रिम जमानत भी नहीं मिलती।

By Brij Bihari ChoubeyEdited By: Published: Wed, 29 Aug 2018 12:46 PM (IST)Updated: Wed, 29 Aug 2018 01:00 PM (IST)
जानिए, उस कानून के बारे में जिसके तहत मोदी की हत्या के साजिशकर्ता हुए गिरफ्तार
जानिए, उस कानून के बारे में जिसके तहत मोदी की हत्या के साजिशकर्ता हुए गिरफ्तार

नई दिल्ली (जेएनएन)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश के मामले में पांच वामपंथी विचारकों को जिस गैर कानूनी गतिविधि निरोधक कानून यानी अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया है, उसे 1967 में बनाया गया था। दरअसल, देश की संप्रभुता और अंखडता की रक्षा के लिए संविधान के अनुच्छेद 19 (1) में प्राप्त मौलिक अधिकारों पर व्यावहारिक पाबंदी लगाने के लिए इसे अस्तित्व में लाया गया था। आगे चलकर देश में माओवादी, अलगाववादी और आतंकवादी घटनाओं के मद्देनजर इसका ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल होने लगा और इससे जुड़े विवाद भी बढ़ने लगे। आइए जानते हैं क्‍या है इस कानून के प्रावधान। कब-कब यह कानून सुर्खियों में रहा।

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इन मौलिक अधिकारों पर पाबंदी
यूएपीए के तहत सरकार को अनुच्छेद 19 (1) में प्राप्त बोलने की आजादी, शांतिपूर्वक एकत्र होने की स्वतंत्रता और संगठन बनाने के अधिकार पर व्यावहारिक प्रतिबंध लगाने की शक्ति मिली हुई है।
क्यों पड़ रही है इसकी जरूरत
देश में राष्ट्रविरोधी तत्वों की सक्रियता बढ़ने के साथ आतंकवादी एवं विध्वंसक गतिविधि (रोकथाम) कानून (टाडा) और आतंकवाद निरोधक कानून (पोटा) के रूप में दो सख्त कानून पारित किए गए, लेकिन इनको लेकर विवाद बढ़ने के बाद उन्हें निरस्त कर दिया गया। इसके बाद से ऐसी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए सरकार के पास यूएपीए के रूप में एक सशक्त कानून ही मौजूद है।
इस पर क्यों उठते हैं विवाद
सरकार ने इस कानून का जितनी तेजी से इस्तेमाल किया उतनी ही तीव्रता से इससे जुड़े विवाद भी सामने आए हैं। समस्या यह है कि यूएपीए में गिरफ्तारी की जो वजहें बताई गई हैं, वह काफी अस्पष्ट हैं। मसलन, किसी प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने पर आपको गिरफ्तार किया जा सकता है, लेकिन क्‍या उसकी संगठन की सदस्यता कायम रहेगी, इसपर कानून खामोश है। इसमें इसका कोई उल्लेख नहीं है। इसलिए, ऐसे किसी संगठन से जुड़ा साहित्य पकड़े जाने पर भी पुलिस संबंधित व्यक्ति को गिरफ्तार कर लेती है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में अपने एक फैसले में स्पष्ट कहा था कि महज किसी संगठन का सदस्य होना अपराध नहीं है, जबतक कि वह व्यक्ति किसी राष्ट्रविरोधी गतिविधि में शामिल न हो या फिर इसके लिए लोगों को नहीं उकसाए।
क्या कहता है यूएपीए
इस कानून में किसी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है। उसके घर पर छापा मारा जा सकता है। उसे 90 दिन तक न्यायिक हिरासत में रखा जा सकता है। इसमें अग्रिम जमानत का भी प्रावधान नहीं है। इसके अलावा सामान्य मामलों में 90 दिन में चार्जशीट फाइल की जाती है, लेकिन यूएपीए में 180 दिन के बाद आरोपपत्र दायर करने का प्रावधान है।
पुलिस साबित नहीं कर पाती है मामले
इस कानून में गिरफ्तार किए गए कई चर्चित व्यक्तियों को बाद में अदालत से राहत मिल गई। मसलन यूपीए के समय गिरफ्तार किए गए डॉ. विनायक सेन के खिलाफ कोई मामला साबित नहीं कर पाई। इसी तरह, इस बार पुणे पुलिस द्वारा गिरफ्तार मुंबई के अरुण फरेरा को पहले भी इसी कानून में जेल भेजा गया था। अदालत ने उन्हें बाद में रिहा कर दिया लेकिन उन्हें पांच साल जेल में बिताने पड़े।


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