छत्तीसगढ़ के 81 फीसद वोटों पर कांग्रेस-भाजपा का कब्जा, खतरे में अन्य पार्टियों का वजूद
छत्तीसगढ़ में भाजपा- कांग्रेस के अलावा बाकी सभी पार्टियों का वजूद खतरे में है। दरअसल, यहां होने वाले विधानसभा चुनाव में कुल वोटों का 81 फीसद तक हिस्सा इन्हीं दोनों पार्टियों के खाते में चला जाता है।
रायपुर [नईदुनिया]। छत्तीसगढ़ में भाजपा-कांग्रेस के अलावा बाकी सभी पार्टियों का वजूद खतरे में है। दरअसल, यहां होने वाले विधानसभा चुनाव में कुल वोटों का 81 फीसद तक हिस्सा इन्हीं दोनों पार्टियों के खाते में चला जाता है।
दूसरी बात, इन दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों को छोड़कर बाकी सभी पार्टियों का वोटिंग प्रतिशत लगातार गिर रहा है। यही वजह है कि राज्य में 18 वर्ष की सियासत में कोई भी राजनीतिक दल तीसरी ताकत बनकर नहीं उभर पाया है।
राज्य में हर बार पांच राष्ट्रीय, करीब आधा दर्जन क्षेत्रीय पार्टियों के साथ ही दर्जनभर से अधिक गैरमान्यता प्राप्त पार्टियां भाग्य आजमाती हैं। इस बार पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जकांछ) व दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी प्रदेश में भाग्य आजमाएगी।
मुकाबले में दिखते तो हैं, रिजल्ट में नहीं
चुनाव प्रचार के दौरान कई सीटों पर त्रिकोणीय व बहुकोणीय मुकाबला नजर आता है, लेकिन ज्यादातर सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सीधी टक्कर होती है। बाकी पार्टियों के अधिकांश प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाते हैं।
बसपा जीती, लेकिन असर सीमित
राष्ट्रीय दलों में भाजपा व कांग्रेस के बाद बसपा ही एकमात्र पार्टी है, जिसके विधायक हर बार सदन में रहते हैं। 2003 व 2008 में पार्टी के दो- दो विधायक चुने गए। 2013 में एक विधायक चुना गया। बसपा लगभग सभी 90 सीटों पर प्रत्याशी उतारती है, इसके बावजूद उसका असर सीमित है।
निर्दलीय पा जाते पार्टियों से ज्यादा वोट
राजनीतिक दलों से ज्यादा वोट निर्दलीय पा जाते हैं। 2003 में सात फीसद वोट निर्दलीयों के खाते में गए। 2008 में बढ़कर करीब साढ़े आठ फीसद, लेकिन 2013 में यह आंकड़ा गिर कर पांच फीसद रह गया। प्रत्याशियों की संख्या के लिहाज से देखा जाए तो इनके वोट प्रतिशत में भी कमी आई है।
प्रदेश की राजनीति करने वाले भी असफल
छत्तीसगढ़ व स्थानीय के नाम पर राजनीति करने वाली पार्टियां भी अब तक के चुनावों में कोई खास असर नहीं डाल पाई हैं। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोगंपा), छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (छमुमो) और छत्तीसगढ़ समाज पार्टी (छसपा) के कई प्रत्याशी चुनाव लड़ते हैं, लेकिन इनमें ज्यादातर की जमानत भी नहीं बच पाती है।