राम जन्मभूमि मामला: भगवान राम को सुप्रीम कोर्ट से फिर मिली तारीख
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले की सुनवाई को जनवरी, 2019 तक के लिए टाल दिया है। रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने भी मामले पर नवंबर मे सुनवाई की गुहार लगाई थी।
नई दिल्ली, माला दीक्षित। अयोध्या पर इंतजार बढ़ गया है। राम जन्मभूमि मामले में सुनवाई फिर टल गई है। अपनी जन्मभूमि पर मालिकाना हक के मुकदमें की सुनवाई की बाट जोह रहे भगवान राम को सुप्रीम कोर्ट से एक बार फिर तारीख मिल गई है। अब जनवरी के पहले सप्ताह में मुकदमें पर नियमित सुनवाई की तिथि तय होगी और तभी यह तय होगा कि मामले पर कौन सी पीठ सुनवाई करेगी।
सोमवार को खचाखच भरी अदालत में संक्षिप्त सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, संजय किशन कौल व केएम जोसेफ की पीठ ने सभी अपीलों को जनवरी के पहले सप्ताह में सुनवाई की तिथि तय करने के लिए लगाने का आदेश दिया। मामले में किसी भी पक्ष की दलीलें सुनने से पहले पीठ ने सीधे आदेश लिखा दिया।
जैसे ही कोर्ट ने मामले को सुनवाई की तिथि तय करने के लिए जनवरी के पहले सप्ताह में लगाने का आदेश दिया, तभी उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वे किसी पक्ष की ओर से नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हैं कोर्ट को इस मामले की गंभीरता और लंबे समय से अपीलों पर सुनवाई लंबित रहने को ध्यान में रखते हुए जल्दी सुनवाई करनी चाहिए।
मेहता ने कहा कि कोर्ट इस मामले पर दिवाली की छुट्टी के तुरंत बाद सुनवाई करे। रामलला की ओर से पेश वकील सीएस वैद्यनाथन ने भी कोर्ट से नवंबर में सुनवाई करने का अनुरोध किया। लेकिन पीठ ने मांग ठुकरा दी।
कोर्ट ने कहा कि अभी वे केवल मामले में सुनवाई की तिथि तय करने के लिए मुकदमें को जनवरी के पहले सप्ताह में लगाने का आदेश दे रहे हैं। तभी यह भी तय होगा कि कौन सी पीठ मामले पर सुनवाई करेगी। जब एक वकील ने सुनवाई के लिए निश्चित तिथि दिये जाने की गुहार लगाई तो पीठ ने कहा कि उनकी भी प्राथमिकताएं हैं। मामले पर जनवरी, फरवरी, मार्च, अप्रैल कब सुनवाई होगी, ये उचित पीठ ही तय करेगी। वह अभी से इस बारे में नहीं बता सकते।
गत 27 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के इस्माइल फारुखी फैसले में मस्जिद को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा न मानने के अंश को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजने की मुस्लिम पक्ष की मांग बहुमत से खारिज करते हुए कहा था कि मुख्य मामले पर सुनवाई में पहले ही बहुत देर हो चुकी है। मुख्य मामले की अपीलों को 29 अक्टूबर को सुनवाई पर लगाया जाए।
यह फैसला मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा (अब सेवानिवृत), जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर की पीठ ने सुनाया था। उस पीठ के न्यायाधीशों में से जस्टिस दीपक मिश्रा सेवानिवृत हो चुके हैं। चूंकि मामला 29 अक्टूबर को लगाने का आदेश था इसलिए यह मामला सोमवार को सुनवाई पर लगा था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या रामजन्म भूमि मामले में 30 सितंबर 2010 को फैसला सुनाते हुए विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। इस फैसले को भगवान रामलला विराजमान के साथ ही सभी हिन्दू मस्लिम पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट मे अपील दाखिल कर चुनौती दे रखी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिलहाल मामले में यथास्थिति कायम है।
इससे पहले क्या हुआ
गौरतलब है कि 27 सितंबर को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुआई वाली पीठ ने दो-एक के बहुमत से आदेश दिया था कि विवादित भूमि के मालिकाना हक वाले दीवानी मुकदमे की सुनवाई तीन जजों की नई पीठ 29 अक्टूबर को करेगी।
पीठ ने नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं मानने वाले इस्माइल फारूकी मामले में 1994 के फैसले के अंश को पुनर्विचार के लिए सात जजों की पीठ को भेजने से मना कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि विवादित जमीन पर मालिकाना हक का निर्धारण साक्ष्यों के आधार पर किया जाएगा। इसलिए पिछले फैसले का मौजूदा मामले से कोई संबंध नहीं है।
अपना और मुख्य न्यायाधीश की ओर से फैसला लिखने वाले जस्टिस अशोक भूषण ने कहा था कि हमें वह संदर्भ देखना है, जिसमें पांच जजों की पीठ ने वह फैसला सुनाया था। हालांकि, पीठ में शामिल जस्टिस एस. अब्दुल नजीर ने अलग फैसला देकर कहा था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं, इस पर धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विस्तृत विचार की जरूरत है।
नई पीठ में कौन-कौन
- प्रधान न्यायाधीश : रंजन गोगोई
- जस्टिस : संजय किशन कौल और केएम जोसेफ
पिछली पीठ में कौन थे
- रिटायर्ड सीजेआइ : दीपक मिश्रा
- जस्टिस : अशोक भूषण और अब्दुल नजीर
ये हैं पक्षकार : रामलला विराजमान, हिंदू महासभा, वक्फ बोर्ड और अन्य।