ईरान-अमेरिकी तनाव से भारत भी नहीं रहेगा अछूता
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह से ईरान परमाणु डील को रद्द किया है उसका दंश भारतीय अर्थव्यवस्था और कूटनीति को भी भुगतना पड़ेगा।
नई दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह से ईरान परमाणु डील को रद्द किया है उसका दंश भारतीय अर्थव्यवस्था और कूटनीति को भी भुगतना पड़ेगा। ट्रंप के इस कदम के बाद जिस तरह से वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता के बादल मंडराने शुरु हुए हैैं उससे भारतीय अर्थव्यवस्था भी अछूती नहीं रहेगी। इसके अलावा अगर अमेरिका अपने कुछ मित्र देशों के साथ ईरान पर तमाम तरह के अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने की कवायद करता है तो इसका असर भी भारत पर पडऩा तय है। खास तौर पर हाल के वर्षों में जिस तरह से भारत ने ईरान के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने की कवायद शुरु की है, उसकी रफ्तार सुस्त हो सकती है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी राष्ट्रपति के फैसले पर अभी कोई सार्वजनिक टिप्पणी जारी नहीं की है लेकिन मंत्रालय के कुछ अधिकारियों ने इस संभावना पर कुछ दिन पहले मीडिया से बात की थी।
आज के हालात में काफी अंतर
इन अधिकारियों का कहना है कि पूर्व में जब ईरान पर अमेरिका के नेतृत्व में प्रतिबंध लगा था और आज के हालात में काफी अंतर है। तब अमेरिका के साथ उसके सभी मित्र राष्ट्र (ब्रिटेन, फ्रांस आदि) थे लेकिन इस बार सभी यूरोपीय देश ईरान डील को लागू करने के पक्ष में है। तब भारत ने अमेरिकी दवाब में न सिर्फ इरान से कम क्रूड खरीदना शुरु कर दिया था बल्कि प्रस्तावित इरान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइपलाइन परियोजना से भी हाथ खींचना पड़ा था। बाद में जब वर्ष 2015 में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, रूस और जर्मनी ने ईरान के साथ परमाणु करार किया तब भारत ने ईरान के साथ रिश्तों को तेजी से प्रगाढ़ करना शुरु किया।
चाबहार बंदरगाह
इसके बाद भारत ने सिर्फ दो वर्ष में न सिर्फ चाबहार बंदरगाह के पहले बर्थ का निर्माण पूरा कर लिया बल्कि इसके जरिए अफगानिस्तान को गेहूं का निर्यात भी शुरु किर दिया। साथ ही भारत ने इरान, रूस और मध्य एशियाई देशों के बीच कनेक्टिविटी से जुड़े आशगाबात समझौते को भी पुनर्जीवित कर दिया है। फरवरी, 2018 में ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी की यात्रा के दौरान दोनो देशों के बीच कई औद्योगिक परियोजनाओं पर चर्चा हुई। इसमें ईरान में गैस फील्ड खरीदने की परियोजना भी शामिल है। अब देखना होगा कि नए हालात में भारत इन मामलों में किस तरह से आगे बढ़ता है।
कूटनीतिक स्तर पर बढ़ेगी चुनौती
उक्त अधिकारियों का कहना है कि अमेरिकी प्रतिबंध के बाद बड़ी चुनौती कूटनीतिक स्तर पर होगी। क्योंकि भारत ने हाल के वर्षों में पश्चिमी एशियाई देशों के साथ अपने रिश्तों को बिल्कुल नया आयाम देना शुरु किया था। खास तौर पर केंद्र सरकार ने सउदी अरब और इजरायल के साथ रिश्तों को मजबूत करने पर खास ध्यान दिया है। अब ये दोनों देश अमेरिका के साथ है। जबकि अफगानिस्तान की वजह से भारत के हित के साथ ईरान से भी काफी जुड़े हुए हैं।