यदि भाजपा से समझौता नहीं हुआ तो कांग्रेस-राकांपा से मिलकर शिवसेना अपना सीएम बनाने से नहीं चूकेगी
2014 में स्थिर सरकार देने के नाम पर ही राकांपा ने फड़नवीस की अल्पमत सरकार को बाहर से बिना शर्त समर्थन दिया था।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। शिवसेना ने भाजपा को चौतरफा घेरने का मन बना लिया है। यदि भाजपा के साथ वह किसी समझौते पर नहीं पहुंची तो वह भाजपा की अल्पमत सरकार गिराने और कांग्रेस-राकांपा के सहयोग से अपना मुख्यमंत्री बनाने से नहीं चूकेगी।
राज्यपाल सबसे बड़े गठबंधन को ही पहले सरकार बनाने का मौका देंगे
कांग्रेस-राकांपा आज दो मत में दिखाई दे रही हैं। उसके नेताओं का एक गुट शिवसेना को सरकार बनाने के लिए उकसाता दिखाई दे रहा है तो दूसरा विपक्ष में बैठने की बात कर रहा है। चूंकि भाजपा-शिवसेना चुनावपूर्व गठबंधन करके लड़ी हैं। इसलिए परंपरानुसार राज्यपाल सबसे बड़े गठबंधन को ही पहले सरकार बनाने का मौका देंगे।
विवाद होने की स्थिति में गठबंधन के सबसे बड़े दल को पहले मौका मिल सकता है
सबसे अधिक सीटें रखने वाले गठबंधन के दलों में आपसी विवाद होने की स्थिति में इस गठबंधन के सबसे बड़े दल को पहले मौका दिए जाने की परंपरा है। इस स्थिति में भी भाजपा का पलड़ा भारी है। उसके पास निर्दलीय विधायकों को लेकर आज 118 विधायक हैं। जबकि शिवसेना के पास यह संख्या 62-63 तक ही पहुंच रही है।
फड़नवीस अल्पमत सरकार के मुख्यमंत्री बन सकते हैं
नई सरकार अस्तित्व में आने की अंतिम तिथि में अभी एक सप्ताह बाकी है। यदि तब तक भी भाजपा शिवसेना को मनाने में विफल रही तो फड़नवीस 2014 की भांति एक बार फिर अल्पमत सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले सकते हैं।
शिवसेना ने बनाई भाजपा को घेरने की रणनीति
भाजपा की असली मुश्किलें उसके बाद शुरू होंगी। माना जा रहा है कि उस स्थिति में सरकार को घेरने की रणनीति शिवसेना ने अभी से बनानी शुरू कर दी है। गुरुवार सुबह राकांपा अध्यक्ष शरद पवार से शिवसेना नेता संजय राउत की मुलाकात इसी रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है।
शिवसेना, कांग्रेस और राकांपा विधानसभाध्यक्ष के चुनाव में भाजपा को पटकनी दे सकती है
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार अल्पमत सरकार के शपथ लेने के साथ ही राज्यपाल उसे बहुमत सिद्ध करने की अवधि भी बता देंगे। इसके बाद सरकार को विधानमंडल का सत्र बुलाना होगा। भाजपा के पास उस समय तक भी शिवसेना को मनाने अथवा कहीं से भी अपने लिए पर्याप्त विधायकों का समर्थन जुटाने का मौका रहेगा। लेकिन तब भी बात नहीं बनी तो सरकार के बहुमत सिद्ध करने से पहले ही शिवसेना, कांग्रेस और राकांपा मिलकर विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा के विरुद्ध अपना उम्मीदवार उतारकर अपनी शक्ति का अहसास करा सकते हैं। निश्चि रूप से उस स्थिति में विधानसभा अध्यक्ष के लिए खड़ा किया जाने वाला भाजपा का उम्मीदवार परास्त होगा। यह अल्पमत सरकार के गिरने का संकेत होगा।
विधानसभा अध्यक्ष की जंग हारने के बाद नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ेगा
विधानसभा अध्यक्ष की जंग हारने के बाद नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री के पास पिछले वर्ष कर्नाटक की तर्ज पर इस्तीफा देने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचेगा। चूंकि कांग्रेस-राकांपा के कुछ नेता बराबर यह संकेत देते आ रहे हैं कि यदि शिवसेना खुलकर सरकार बनाने की कवायद में जुटती है तो वे उसे समर्थन देंगे। संभवत: इसी आश्वासन के भरोसे शिवसेना के हौसले बुलंद दिख रहे हैं।
राकांपा ने दिया संकेत, राज्य में नहीं लगने देंगे राष्ट्रपति शासन
राकांपा प्रवक्ता नवाब मलिक शुक्रवार को ही यह संकेत दे चुके हैं कि वह राज्य को राष्ट्रपति शासन में नहीं जाने देंगे। इसके बजाय उनकी पार्टी वैकल्पिक सरकार बनाने पर विचार करेगी। 2014 में स्थिर सरकार देने के नाम पर ही राकांपा ने फड़नवीस की अल्पमत सरकार को बाहर से बिना शर्त समर्थन दिया था। इसलिए राकांपा पुन: वही रास्ता अपनाए तो उस पर कोई आक्षेप भी नहीं लगाया जा सकता। भले ही शिवसेना की ऐसी डबल बैसाखियों वाली सरकार कर्नाटक की कुमारस्वामी सरकार की तर्ज पर कुछ महीने ही चल सके, लेकिन उसका अपना मुख्यमंत्री बनाने का सपना तो पूरा हो ही जाएगा।