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बंगाल में भाजपा जीती तो ग्रामीण पृष्ठभूमि के नेता को मिल सकती है कमान, जानिए कौन होगा मुख्यमंत्री

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 200 प्लस सीटों का दावा कर रहे हैं तो यह चर्चा भी तेज होने लगी है कि भाजपा आई तो कमान किसके हाथ जाएगी। गांव में लोकप्रिय नेता के हाथ या शहरी प्रबुद्ध लोगों के पसंदीदा नेता के हाथ।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 18 Apr 2021 08:00 PM (IST)Updated: Mon, 19 Apr 2021 07:01 AM (IST)
बंगाल में भाजपा जीती तो ग्रामीण पृष्ठभूमि के नेता को मिल सकती है कमान, जानिए कौन होगा मुख्यमंत्री
बंगाल में चर्चा तेज, भाजपा सत्ता में आई तो कौन होगा मुख्यमंत्री।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बंगाल में पांच चरण के मतदान के बाद अब जबकि तृणमूल और भाजपा के बीच कुछ आखिरी दांव बचा है और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 200 प्लस सीटों का दावा कर रहे हैं तो यह चर्चा भी तेज होने लगी है कि भाजपा आई तो कमान किसके हाथ जाएगी। गांव में लोकप्रिय नेता के हाथ या शहरी प्रबुद्ध लोगों के पसंदीदा नेता के हाथ। लंबे अरसे से संगठन का काम देख रहे ग्रामीण पृष्ठभूमि के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष के हाथ या फिर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से सीधी टक्कर लेने वाले और नंदीग्राम में लड़ाई को हाईवोल्टेज बनाने वाले सुवेंदु अधिकारी व अपनी विद्वता से पहचान बनाने वाले व केंद्रीय नेतृत्व के खास रहे स्वपनदास गुप्ता सरीखे नेता के हाथ।

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बंगाल में चर्चा तेज, भाजपा सत्ता में आई तो कौन होगा मुख्यमंत्री

अगर बंगाल में भाजपा की सरकार आती है तो कौन होगा मुख्यमंत्री इसका निर्णय भाजपा संसदीय बोर्ड करेगा। लेकिन नेताओं के गुण दोष की चर्चा पार्टी नेताओं में रोचकता के साथ हो रही है। जाहिर तौर पर जब सुवेंदु ममता का साथ छोड़कर भाजपा में आए थे तो यह अटकल तेज हो गई थी कि उन्हें ही ममता के मुकाबले खड़ा किया जाएगा। दरअसल उनका भाजपा में आना ममता के लिए बहुत बड़ा झटका था। तब सुवेंदु और ज्यादा हाईलाइट हो गए जब ममता ने नंदीग्राम से ही लड़ने का मन बना लिया।

दिलीप घोष के अलावा सुवेंदु अधिकारी और स्वपनदास गुप्ता का नाम भी चर्चा में

नंदीग्राम एक तरह से मुख्यमंत्री की कसौटी बन गया। जिस तरह से पूरे चुनाव अभियान में सुवेंदु को पूरे प्रदेश में घुमाया जा रहा है, उसने यह भी स्पष्ट कर दिया कि सुवेंदु भाजपा के लिए एक अहम चेहरा हैं। 10 साल तक ममता सरकार में रहते हुए उन्हें प्रशासनिक अनुभव भी है। वैसे भी मुख्यमंत्री को हराने वाले का कद भारी हो जाता है। वहीं राज्यसभा से इस्तीफा देकर स्वपनदास गुप्ता का बंगाल में उतरना भी एक संदेश था क्योंकि वह प्रदेश के साथ साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर नजर रखते रहे हैं।

दिलीप घोष गांव की नब्ज को समझते हैं, भाजपा ने बंगाल में गांव के रास्ते से ही बनाई पैठ 

पर दिलीप घोष फैक्टर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। फिलहाल उनके पक्ष में सबसे बड़ी बात यही है कि वह शहरी प्रबुद्ध लोगों को भले ही पसंद न आएं, लेकिन गांव की नब्ज को समझते हैं। वैसे भी शहरों की पार्टी के रूप में जानी जाने वाली भाजपा ने बंगाल में गांव के रास्ते से ही पैठ बनाई है।

वाममोर्चा ने राज किया तो गांव की बदौलत और ममता भी हटेंगीं तो गांव के कारण ही

पार्टी को इसका भी अहसास है कि वाममोर्चा ने साढ़े तीन दशक तक राज किया तो गांव की बदौलत और ममता इस बार अगर हटीं तो वह भी गांव के कारण ही होगा। भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाकर भाजपा का मैदान में उतरना घोष की दावेदारी को ही मजबूत करता है।

भाजपा ने कहा- बंगाल में 200 प्लस सीीट आएंगीं तो गांव के कारण ही

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है, मध्यमवर्ग के समर्थन के कारण हमें शहरों की पार्टी कहा जाता रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में तो हमने गांव में पैठ बनाई है। उत्तर प्रदेश में हम गांव की पार्टी न बने होते तो 325 नहीं पहुंचते और बंगाल में 200 प्लस आएंगे तो वह गांव के कारण ही होगा। यानी नेतृत्व चुनाव की बात आई तो गांव की पसंद शायद हावी हो।


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