छत्तीसगढ़ और नक्सल चुनौती: वादे और जमीनी हकीकत के भंवर में फंसी बघेल सरकार
बस्तर में शांति स्थापना सबसे बड़ा काम है। आदिवासियों की रिहाई का वादा करने से कांग्रेस को भारी जीत तो मिल गई,लेकिन इसे पूरा कर पाना इतना आसान नहीं है
रायपुर, नईदुनिया। छत्तीसगढ़ प्रांत का उदय भले ही 18 साल पहले हुआ है,लेकिन यहां के लोग नक्सली हिंसा के नासूर का दर्द पिछले चालीस वर्षो से झेल रहे हैं। पिछले 15 साल से सत्ता पर काबिज रही भाजपा सरकार ने सलवा जुड़ूम अभियान से लेकर ऑपरेशन ग्रीन हंट तक तमाम उपाय किए। सैकड़ों नक्सली मारे गए, चार हजार से ज्यादा गिरफ्तारियां हुईं, सैकड़ों ने समर्पण किया,लेकिन मामला सुलझा नहीं। भाजपा की सरकार गई तो पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का बयान आया-मुझे दुख है कि नक्सल समस्या खत्म करने का काम अधूरा रह गया। इधर कांग्रेस की नई सरकार ने नक्सल नीति में बदलाव कर समस्या खत्म करने का दावा किया,जिसकी चर्चा हो रही है,लेकिन इसे लेकर सरकार ऊहापोह में है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कभी नक्सलवाद को सामाजिक आर्थिक समस्या बता कर शांति वार्ता की बात करते हैं, तो कभी फोर्स न हटाने का बयान देते हैं। डीजीपी गोली का जवाब गोली बताते हैं। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि शांति के लिए वार्ता का रास्ता खोला जाएगा। आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस के प्रत्याशी वादा करते रहे कि जेलों में बंद निर्दोष आदिवासियों की रिहाई की पहल की जाएगी।
कांग्रेस नेता राज बब्बर तो नक्सलियों को क्रांतिकारी तक कह गए। इन वादों का ही नतीजा रहा कि बस्तर की 12 में से 11 सीटें कांग्रेस को मिलीं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पहली प्रेस ब्रीफिंग में कहा था कि नक्सलवाद कानून-व्यवस्था की नहीं बल्कि सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक समस्या है। पीड़ितों से बात कर हल निकालेंगे। इसके बाद बयान आया कि नक्सल क्षेत्रों से फोर्स की वापसी नहीं होगी। नए डीजीपी आए तो कहा-गोली का जवाब गोली से देंगे। वहीं,सुकमा की कोंटा सीट से विधायक और कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा ने बयान दिया कि नक्सलियों से बात करेंगे। यानी जितनी मुंह उतनी बातें। साफ कुछ नहीं है।
विधायकों की चिंता वादा कैसे होगा पूरा
बस्तर के नक्सल क्षेत्र से जीते एक विधायक कहते हैं कि मेरे लिए तो सबसे बड़ी दिक्कत यही है। नक्सल समस्या नहीं सुलझी तो क्या होगा। लड़कर उनसे नहीं जीत सकते, बात तो करनी होगी। एक अन्य विधायक बोले, नक्सलियों से वार्ता करना आसान नहीं है। मैंने सीएम से कहा है कि आदिवासियों की रिहाई के लिए कुछ करें। सीधे रिहाई न हो तो फास्ट ट्रैक कोर्ट की व्यवस्था कराएं।
भरोसा बहाली का संकट
जानकारों का कहना है कि नक्सली इतनी आसानी से बातचीत करने को तैयार नहीं होंगे। सरकार और उनके बीच भरोसा बहाली का संकट है। इसके लिए सरकार को ढेरों पहल करनी होगी। जेलों से रिहाई से लेकर बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, वकीलों पर दर्ज मामलों की वापसी और विस्थापित आदिवासियों को वापस गांवों में बसाने तक का काम करना होगा। नक्सल इलाकों से जो स्कूल, अस्पताल, आंगनबाड़ी बंद किए गए हैं उन्हें दोबारा खोलना होगा। मुठभेड़ बंद करनी होगी, फोर्स में कटौती करनी होगी। इन सब कामों से लंबा समय लग सकता है।
ये हो सकती है नीति
जेलों में बंद आदिवासियों की रिहाई या फिर फास्ट ट्रैक कोर्ट से सुनवाई
सलवा जुड़ूम विस्थापितों की घर वापसी के प्रयास करने का वादा
बातचीत के लिए नक्सलियों को प्रस्ताव देना और माहौल बनाना
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार जुड़ूम पीड़ितों का मुआवजा का वितरण
शांति का माहौल बनाने के लिए सुरक्षा में कटौती की संभावना
इन मुद्दों पर केंद्र से टकराव
आदिवासियों की रिहाई के मामले पर भाजपा की नीति बेहद सख्त है
नक्सलियों से वार्ता पर केंद्र की सहमति मिलना मुश्किल
सुरक्षाबलों की वापसी का विरोध, इसे आत्मघाती माना जा रहा है
जुड़ूम पीड़ित वास्तव में पीड़ित हैं या नक्सली इसे लेकर मतैक्य नहीं है
सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, वकीलों पर दर्ज केस वापसी पर टकराव बढ़ेगा