गृहमंत्री अमित शाह ने कहा- पीओके व अक्साई चिन के लिए लगा देंगे जान की बाजी
अमित शाह ने 1964 में 370 को लेकर संसद में हुए बहस का जिक्र करते हुए बताया कि किस तरह मधु लिमये से लेकर राम मनोहर लोहिया तक इसके खिलाफ थे।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को वापस लेने, 35ए को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर को दो भागों में बांटकर केंद्र शासित प्रदेश बनाने के सरकार के प्रस्ताव पर संसद ने मुहर लगा दी। यानी आधिकारिक रूप से कश्मीर अब भारत का अटूट हिस्सा बन गया है।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि 'पीओके और अक्साई चिन जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है और उसके लिए जान दे देंगे।' उन्होंने आगे कहा- 'मै जब-जब जम्मू-कश्मीर पर बोलता हूं तब-तब पीओके और अक्साई चीन इसका हिस्सा होता है।
'370 को जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद का मूल बताते हुए कहा कि इसके खत्म होने से लोगों को मुख्यधारा के करीब लाने में मदद मिलेगी। घाटी के लोगों से उन्होंने यह वादा भी किया कि उनके विकास के लिए मोदी सरकार का दिल खुला रहेगा। स्थिति सामान्य हुई तो संघ शासित प्रदेश को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा दे देंगे।
धारा 370 और 35ए को समाप्त करने के दो प्रस्तावों और जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक पर संसद की मुहर लगते ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों केंद्र शासित प्रदेश बन गए हैं। इस पर केवल राष्ट्रपति का हस्ताक्षर होना बाकी है।
केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में विधानसभा जरूर होगी, लेकिन अमित शाह ने साफ कर दिया है कि धारा 370 के कारण सीटों के परिसीमन के रूके काम को पूरा किया जाएगा। यही नहीं, अब तक मतदान से वंचित रखे जा रहे पाकिस्तान से शरणार्थियों व वहां रह रहे बाहरी लोगों को पहली बार विधानसभा में मतदान का अधिकार मिल जाएगा।
राज्यसभा की तरह लोकसभा में विपक्ष में पूरी तरह बंटा हुआ दिखा। राकांपा की सुप्रिया सुले और सपा के अखिलेश यादव समेत कई सांसदों ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाया और विधेयक की निंदा की, लेकिन यह नहीं बताया कि वे विधेयक के पक्ष में बोल रहे हैं विपक्ष में। यहां तक कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इसको लेकर चुटकी भी ली।
टीआरएस, बीजद, बसपा जैसे विपक्षी दल लोकसभा में भी सरकार के पक्ष में खड़े दिखे तो जेडीयू और तृणमूल कांग्रेस ने विरोध में वाकआउट किया। हालत यह थी विपक्ष लोकसभा एक तिहाई का आंकड़ा भी नहीं जुटा पाया और तीन-चौथाई से अधिक सांसदों ने विधेयक का समर्थन किया।
लगभग सात घंटे तक चली चर्चा में शाह ने विपक्ष के हर सवाल का जवाब दिया। पूरी प्रक्रिया में कश्मीर के आम लोगों की राय नहीं लेने और फैसले को लोकतंत्र विरोधी बताने के विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा कि 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लेह, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर की जनता की आकांक्षाओं से अच्छी तरह से अवगत हैं और उनकी नब्ज को समझते हैं और उसी को ध्यान में रखकर यह फैसला किया गया है।'
उन्होंने कहा कि धारा 370 खत्म होने के बाद घाटी के लोग अब धीरे-धीरे मुख्यधारा के करीब आएंगे और अपनी आशाओं-आकांक्षाओं को पूरा कर सकेंगे। अमित शाह ने विस्तार से बताया कि किस तरह धारा 370 राज्य के विकास में रूकावट बनी हुई थी। उन्होंने इसे दलित विरोधी, महिला विरोधी, जनजाति विरोधी और पर्यावरण विरोधी बताया।
शाह ने कहा विपक्ष इसके विरोध में तरह-तरह के तर्क दे रहा है, लेकिन 'किसी ने यह नहीं बताया कि धारा 370 ने किस तरह से कश्मीर में विकास लाया है। उन्होंने विपक्षी सांसदों को धारा 370 के कारण कश्मीर को हुए नुकसान पर गहराई से विचार करने को कहा।
उन्होंने कहा कि इस धारा के रहने से आम जनता को गरीबी के अलावा कुछ नहीं मिला। उन्होंने विपक्षी सदस्यों से पूछा कि 'एक बार सोचिये तो सही कि 370 से क्या मिला। रोटी मिली, रोजगार मिला, शिक्षा मिली?'
उन्होंने आगे कहा- 'धारा 370 दलित विरोधी, आदिवासी विरोधी, विकास विरोधी, महिला विरोधी है।' विस्तार से बताया कि किस तरह से संसद ने देश में विभिन्न वर्गो के कल्याण के बहुत सारे कानून पास किये, लेकिन धारा 370 की आड़ लेते हुए उनका लाभ जम्मू-कश्मीर की आम जनता तक नहीं पहुंचने दिया गया। इसके माध्यम से जम्मू-कश्मीर के विकास रोका गया है।
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद के मूल में धारा 370 को जिम्मेदार बताते हुए अमित शाह ने बताया किस तरह 1988 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति ने 'आपरेशन टोपाक' की शुरुआत की थी। उनके अनुसार इसमें बताया गया था कि किस तरह धारा 370 का इस्तेमाल करते हुए जम्मू-कश्मीर के लोगों में अलगाववाद की भावना भरी जा सकती है और आतंकवाद को बढ़ावा दिया जा सकता है। इसके बाद 1989 में घाटी में आतंकवाद की आग में झोंक दिया गया, जिसमें अभी तक 41 हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। उन्होंने पूछा कि 'आखिर इन 41 हजार से अधिक लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन है?'
विपक्ष की ओर से जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य के दर्जे के छिन जाने के बाद कई राज्यों को अनुच्छेद 371 के तहत मिले दर्जे के बारे में आशंका जताई गई। इसके साथ ही नागालैंड में शांति के लिए एनएससीएन (मुइवा) के साथ हुए समझौते में राज्य के लिए अलग झंडा स्वीकार किये जाने की अटकलों को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश की गई।
अमित शाह ने साफ कर दिया कि अनुच्छेद 371 के कारण कहीं भी अलगाववाद और आतंकवाद नहीं पनपा है, इसीलिए उसे छूने का सवाल ही नहीं उठता है। उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि नागा समझौते में भी देशहित को सर्वोपरि रखा जाएगा और ऐसी कोई भी शर्त स्वीकार नहीं की जाएगी, जो देश विरोधी हो।
अमित शाह ने सरकार के फैसले को सांप्रदायिक बताए जाने का तीखा प्रतिवाद किया। उन्होंेंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम, सिख, जैन, बौद्ध और हिंदू सभी धर्मो के लोग रहते हैं और इससे सभी प्रभावित होंगे।
उन्होंने 1964 में 370 को लेकर संसद में हुए बहस का जिक्र करते हुए बताया कि किस तरह मधु लिमये से लेकर राम मनोहर लोहिया तक इसके खिलाफ थे। उन्होंने विपक्ष और खासकर सपा सांसद अखिलेश यादव की ओर इशारा करते हुए पूछा कि क्या ये लोग भी धर्मनिरपेक्ष नहीं थे। उन्होंने साफ किया कि सरकार के फैसले का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।
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