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येद्दयुरप्पा की सरकार गिरने के बाद क्यों याद आए अटल बिहारी बाजपेयी

हम आपको बताते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी को क्यों इस्तीफा देना पड़ा था और येद्दयुरप्पा की स्थिति उनसे कितनी मिलती-जुलती है।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Sat, 19 May 2018 06:04 PM (IST)Updated: Sun, 20 May 2018 07:09 AM (IST)
येद्दयुरप्पा की सरकार गिरने के बाद क्यों याद आए अटल बिहारी बाजपेयी
येद्दयुरप्पा की सरकार गिरने के बाद क्यों याद आए अटल बिहारी बाजपेयी

बेंगलुरु,जेएनएन। कर्नाटक में सियासी उठापटक का खेल खत्म हो चुका है। येद्दयुरप्पा ने शक्ति परीक्षण से पहले विधानसभा में अपने 13 पेज का भाषण पूरा करने के बाद इस्तीफा दे दिया। इस राजनीतिक घटनाक्रम ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के इस्तीफे की याद दिला दी। 22 साल पहले तकरीबन ऐसी ही स्थिति में बाजपेयी ने फ्लोर टेस्ट से पहले ही इस्तीफा दे दिया था और जोरदार भाषण दिया था जो आज भी काफी लोकप्रिय है। हम आपको बताते हैं कि अटल बिहारी बाजपेयी को क्यों इस्तीफा देना पड़ा था और येद्दयुरप्पा की स्थिति उनसे कितनी मिलती-जुलती है।

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अटल बिहारी वाजपेयी ने फ्लोर टेस्ट से ठीक पहले दिया था इस्तीफा 

16 मई 1996 को अटल बिहारी बाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने थे। लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उनकी सरकार चली गई थी। इस दौरान लोकसभा में एक जबरदस्त भाषण देते हुए उन्होंने बहुमत परीक्षण से पहले ही पीएम पद से इस्तीफा दे दिया था। ताकि फ्लोर टेस्ट में फेल होने के बाद उन्हें किसी अपमान का सामना न करना पड़े।

फ्लोर टेस्ट नहीं पास कर पाए अटल बिहारी बाजपेयी

17 अप्रैल 1999 का दिन था, सुबह 11 बजे संसद का सत्र शुरु हो चुका हो था। सभी सांसद अपनी-अपनी जगह पर बैठ चुके थे। कुछ ही देर में भारतीय संसद एक ऐतिहासिक पल का गवाह बनने जा रही थी। सदन में भाजपा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान होना था। लोकसभा की कार्यवाही शुरू होने के कुछ ही देर पहले बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी मतदान में हिस्सा नहीं लेगी। सदन की कार्यवाही शुरू हुई। बसपा सुप्रीमो मायावती खड़ी हुई और उन्होंने बीजेपी सरकार के खिलाफ वोट कर दिया। भारतीय राजनीतिक इतिहास का ये सबसे करीबी और रोमांचक अविश्वास प्रस्ताव होने जा रहा था।

इस पूरे घटनाक्रम की आधारशिला इस अविश्वास प्रस्ताव से 13 महीने पहले रखी जा चुकी थी। 1998 में हुए लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन पूर्ण बहुमत का आंकड़ा नहीं छू सका। कई पार्टियों के बाहरी समर्थन से सरकार बनी और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चुने गए। सरकार गठन के साल भर के अंदर एआईएडीएमके पार्टी की जयललिता ने गठबंधन से असंतोष जाहिर कर दिया। वो तमिलनाडु की डीएमके सरकार को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिराना चाहती थी। लेकिन केंद्र की वाजपेयी सरकार ने उनकी इस मांग पर सहमति नहीं जताई। इसके बाद जयललिता ने एनडीए का साथ छोड़ने का फैसला किया और अविश्वास प्रस्ताव की पृष्ठभूमि तैयार हुई।

सदन में वोटिंग पूरी हो चुकी थी। अब बारी वोटों की गिनती की थी। बाजपेयी सरकार के पक्ष में 269 और विरोध में 270 वोट पड़े। महज एक वोट से 13 महीने पुरानी वाजपेयी सरकार गिर गई।

येद्दयुरप्पा ने बहुमत परीक्षण से पहले दिया इस्तीफा

कर्नाटक विधानसभा में क्या होगा इस पर देश की नजरें टिकी हुई थीं। भाजपा के पास 104 सीटें थी जो बहुमत के आंकड़ें से 8 कम थीं। विधानसभा की कार्यवाही से पहले कयासों का दौर जारी थी। प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति पर विवाद खत्म होने के बाद सदन में सभी विधायकों को शपथ दिलाई गई, इसके बाद दोपहर 3.30बजे दोबारा सदन शुरू हुआ। येद्दयुरप्पा ने भावुक भाषण दिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि जब तक मैं जिंदा हूं, अन्नदाता किसान को पूरी तरह मदद करने को तैयार हूं। येद्दयुरप्पा ने कहा कि हमें किसानों की समस्याओं को दूर करने का मौका नहीं मिला। उन्होंने कहा कि एक तरफ किसान आंसू बहा रहे हैं और दूसरी तरफ चुनाव हो गए।

इस भाषण के बाद उन्होंने इस्तीफे का एलान कर दिया, और इस तरह ढ़ाई दिन में भाजपा की सरकार गिर गई। फिलहाल कर्नाटक की सियासत में आया तूफान कमजोर पड़ गया है लेकिन थम गया है ऐसा नहीं है। अब गेंद फिर राज्यपाल के पाले में है कि वे कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को कब न्यौता देते हैं।  


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