Move to Jagran APP

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पांच आरोपियों की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार पांचों वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी पर फैसला सुरक्षित रखा है।

By Manish NegiEdited By: Published: Wed, 19 Sep 2018 09:29 AM (IST)Updated: Thu, 20 Sep 2018 10:37 PM (IST)
भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पांच आरोपियों की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित
भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पांच आरोपियों की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पांच आरोपियों की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली इतिहासकार रोमीला थापर व अन्य चार की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बहस सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट में दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर आरोप लगाए। याचिकाकर्ता ने निर्दोषों को साजिशन फंसाने का आरोप लगाया तो महाराष्ट्र सरकार ने कहा उसके पास पर्याप्त सबूत हैं, बाहरी व्यक्ति की याचिका पर आपराधिक मामले की जांच में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिलहाल पांचों आरोपी अपने घरों मे नजरबंद हैं।

loksabha election banner

पुणे पुलिस ने गत 28 अगस्त को देश के विभिन्न हिस्सों में छापे मार कर पांच लोगों को नक्सलियों से संबंधों और हिंसा फैलाने के आरोपों में गिरफ्तार किया था। जिसके खिलाफ रोमीला थापर व चार अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर रखी है। सुनवाई के बीच में ही कुछ आरोपियों की ओर से भी हस्तक्षेप अर्जी दाखिल की गई थी। मामले पर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ सुनवाई कर रही है।

दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर लगाए आरोप

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने बहस करते हुए कहा कि सरकार से असहमति रखने के कारण साजिशन इन लोगों को झूठा फंसाया गया है। उनके खिलाफ कोई भी सबूत नहीं है। पुलिस जानबूझकर सबूत गढ़ रही है। सिंघवी के अलावा वरिष्ठ वकील राजीव धवन, अश्वनी कुमार आदि ने भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की दुहाई देते हुए कोर्ट से मामले पर विचार करने को कहा।

दूसरी तरफ महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश एएसजी तुषार मेहता ने आरोपियों के हिंसा फैलाने की साजिश में शामिल होने की दलील देते हुए कोर्ट को जांच एजेंसी द्वारा एकत्र दिये गए सबूतों को दिखाया। उन्होंने इस बारे में आरोपियों के विभिन्न पत्रों आदि का भी हवाला दिया। मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास अपने बचाव का कानूनी विकल्प उपलब्ध है। कोर्ट को आपराधिक मामले की जांच में किसी तीसरे पक्ष की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर दखल नहीं देना चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उन दस्तावेजों को दिखाओ जिन्हें वे सबसे अहम मानते हैं। जब मेहता ने जनवरी से लेकर अभी तक की जांच में प्राप्त सबूतों का ब्योरा देना शुरू किया तो कोर्ट ने कहा कि 28 अगस्त को जो गिरफ्तारियां हुई हैं, उनके बारे मे बताओ।

मेहता ने कहा कि वे एक एक करके सारी चीजें कोर्ट के सामने रखना चाहते हैं ताकि कोर्ट स्वयं ये जान सके कि जांच एजेंसी ने किसी दुराग्रह से काम नहीं किया है। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट पूरे मामले को पैनी निगाह से परखेगा। उन्होंने कहा कि संस्थाओँ को यहां तक कि कोर्ट को इतना मजबूत होना चाहिए कि वह विरोध सहन कर सकें। केवल अनुमान के आधार पर स्वतंत्रता का गला नहीं घोटा जा सकता।

उधर, गिरफ्तारी का विरोध करने वालों की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे कि हम कानून से ऊपर हैं हम तटस्थ जांच की मांग कर रहे हैं। भारत जैसे देश में विचारधारा रखना अपराध नहीं हो सकता। विरोधियों की ओर से यह भी कहा गया कि गिरफ्तारियां बिना किसी सबूत के दुराग्रह से हुई हैं।

कोर्ट ने सभी पक्षों की बहस सुनकर फैसला सुरक्षित रखते हुए महाराष्ट्र सरकार से सोमवार तक केस डायरी जमा कराने और अन्य सभी पक्षों को सोमवार तक लिखित दलीलें दाखिल करने का निर्देश दिया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.