Ayodhya Case: रामलला के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- हम नहीं शामिल हैं मध्यस्थता में
मामले की सुनवाई कर रही पीठ के अध्यक्ष मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत होने वाले हैं इसलिए मामले में फैसला उसके पहले ही आ जाएगा।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में रामलला की ओर से एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में साफ किया गया कि वह चल रही मध्यस्थता में भाग नहीं ले रहे हैं। रामलला की ओर से वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने सोमवार को मामले की सुनवाई कर रही पीठ से कहा कि मध्यस्थता के बारे में काफी खबरें आ रही हैं, लेकिन वह बताना चाहते हैं कि वह इसमें भाग नहीं ले रहे हैं। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कोर्ट पहले ही कह चुका है कि वह सुनवाई जारी रखेगा और 18 अक्टूबर तक कोर्ट अपनी सुनवाई पूरी कर लेगा इसमें कोई चीज आड़े नहीं आएगी।
मध्यस्थता कमेटी
मालूम हो कि अभी हाल ही में दो पक्षों ने मध्यस्थता कमेटी के समक्ष अर्जी देकर फिर से मध्यस्थता शुरू करने की अपील की थी और मध्यस्थता कमेटी ने उस पर कोर्ट से आदेश मांगा था। कोर्ट ने कहा था कि पक्षकार चाहे तो मध्यस्थता जारी रख सकते हैं और अगर मध्यस्थता में समझौता हुआ तो उसे कोर्ट के सामने पेश किया जाएगा। हालांकि कोर्ट ने तभी साफ कर दिया था कि सुनवाई काफी आगे बढ़ चुकी है ऐसे में सुनवाई नहीं रुकेगी।
जल्द सुनवाई पूरी करने में जुटा कोर्ट
जैसे जैसे तय 18 अक्टूबर की तिथि नजदीक आ रही है कोर्ट सुनवाई जल्दी पूरी करने में जुट गया है। सोमवार को भी कोर्ट ने पक्षकारों से कहा कि वह 18 अक्टूबर तक बहस पूरी कर ले और अगर इसके लिए जरूरी हुआ तो कोर्ट शनिवार को भी सुनवाई कर लेगा। वैसे भी कोर्ट रोजाना एक घंटे ज्यादा सुनवाई करता है।
मुस्लिम पक्ष की ओर से दलीलों का जवाब पूरा
सोमवार को मुस्लिम पक्ष की ओर से हिन्दू पक्ष की दलीलों का जवाब पूरा हो गया अब हिन्दू पक्ष गुरुवार तक प्रतिउत्तर देने का काम पूरा कर लेगा। इसके बाद शुक्रवार को राजीव धवन सुन्नी वक्फ बोर्ड की अपील पर बहस शुरू करेंगे।
सीजेआई 17 नवंबर को सेवानिवृत होंगे
मामले की सुनवाई कर रही पीठ के अध्यक्ष मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत होने वाले हैं इसलिए मामले में फैसला उसके पहले ही आ जाएगा।
नियम के मुताबिक अगर सुनवाई करने वाली पीठ का कोई न्यायाधीश सेवानिवृत हो जाता है या किसी कारणवश पीठ में शामिल नहीं रहता तो नई पीठ गठित होती है जिसमें उसकी जगह दूसरे न्यायाधीश को शामिल किया जाता है। इस स्थिति में मामले की दोबारा शुरुआत से सुनवाई होती है क्योंकि नया जज केस को बिना सुने फैसला नहीं दे सकता। हालांकि इस मामले में ऐसी कोई स्थिति आती नहीं दिख रही।