जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। गुजरात चुनाव के पहले चरण का मतदान गुरूवार को संपन्न हो गया। लेकिन पार्टी नेताओं को अब तक कांग्रेस की चुनाव प्रचार की साइलेंट रणनीति समझ नहीं आ रही है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के आक्रामक धुआंधार प्रचार और आम आदमी के हाइटेक प्रचार के बीच कांग्रेस की साइलेंट रणनीति ने उसके चुनाव अभियान को कमजोर किया है। कांग्रेस के इस कमजोर चुनाव अभियान के चलते ही भाजपा जहां गुजरात में अब तक की सबसे बड़ी जीत के दावे ठोक रही।
वहीं, जमीनी हकीकत चाहे कुछ और हो मगर अपने प्रचार अभियान की ताकत के सहारे आम आदमी पार्टी बढ़-चढ़कर गुजरात में भाजपा के मुख्य प्रतिद्वंदी के तौर पर उभरने का दावा करने से गुरेज नहीं कर रही। कांग्रेस की इस चुनावी रणनीति को लेकर पार्टी के सियासी गलियारों में हैरानी इसलिए भी जाहिर की जा रही है कि गुजरात में पार्टी ने पिछला विधानसभा चुनाव जबरदस्त तरीके से लड़ा और लगभग फोटो फिनिश मुकाबले में भाजपा बमुश्किल अपनी सत्ता बचा पायी थी। इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस इस चुनाव में पूरा जोर लगाएगी और उसके लिए संभावनाओं की गुंजाइश भी ज्यादा मानी जा रही थी।
खासकर यह देखते हुए कि गुजरात की भाजपा सरकार के खिलाफ लोगों के एक वर्ग में नाराजगी भी सामने आती रही है और इसे देखते हुए ही चुनाव से कुछ महीने पहले भाजपा ने मुख्यमंत्री समेत सूबे की पूरी सरकार के चेहरे ही बदल दिए थे। लेकिन चुनाव के ऐलान के बाद कांग्रेस के प्रचार अभियान में इन चुनावी संभावनाओं को अपने लिए अवसर बनाने की तत्परता नजर नहीं आयी। जब इसको लेकर सरगर्मी शुरू हुई तो पार्टी रणनीतिकारों की ओर से इसे साइलेंट प्रचार रणनीति का हिस्सा बताया गया। पर जब गुजरात चुनाव का अभियान अपने आखिरी मुकाम पर है तब यह रणनीति साफ तौर पर कांग्रेस के चुनाव अभियान को लचर और कमजोर साबित होने की ओर बढ़ती दिख रही है।
कांग्रेस के प्रचार अभियान में तेवरों की कमी की सबसे बड़ी वजह जाहिर तौर पर पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की गुजरात चुनाव से रही दूरी है। मौजूदा चुनाव अभियान के दौरान राहुल गांधी ने केवल एक दिन भारत जोड़ो यात्रा के ब्रेक में जाकर दो रैलियां की है। आखिरी चरण के प्रचार में दो दिन बाकी हैं और अभी राहुल के दूसरे दौर का कोई कार्यक्रम सामने नहीं आया है।
कन्याकुमारी से भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने से ठीक एक दिन पहले राहुल ने गुजरात के एक चुनावी कार्यक्रम में हिस्सा लिया था और तब चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ था। भारत जोड़ो यात्रा के चलते राहुल जहां चुनावी अभियान से लगभग दूर रहे हैं वहीं गुजरात चुनाव के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ पर्यवेक्षक बनाए गए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पार्टी की अंदरूनी वाद-विवाद से लेकर सचिन पायलट के साथ सीधे जंग में उलझे रहे। विधायकों के विद्रोह के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी से हटने के बाद गहलोत बीच-बीच में गुजरात के चुनावी दौरे करते रहे मगर उन्हें पूरी ऊर्जा राजस्थान में अपनी कुर्सी सुरक्षित रखने के लिए ही लगानी पड़ी है।
जबकि दिलचस्प यह है कि 2017 के गुजरात चुनाव में राहुल और गहलोत की जोड़ी ने ही चुनावी रणनीति का संचालन किया था और बीते ढाई दशकों के दौरान पहली बार कांग्रेस मामूली अंतर से सत्ता में आने से चूक गई थी। अशोक गहलोत तब गुजरात के प्रभारी कांग्रेस महासचिव थे लेकिन इस चुनाव में राहुल और गहलोत दोनों की भागीदारी सांकेतिक ही रही है। कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने चुनाव के आखिरी दिनों में अपने आक्रामक हमलों के जरिए पार्टी के चुनाव अभियान को तेवर देने की कोशिशें जरूर की है मगर इसे निर्णायक मोड़ देने के लिए उनके पास वक्त नहीं बचा क्योंकि तीन दिसंबर को गुजरात में प्रचार का शोर थम जाएगा।