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एक्सक्लूसिव: नक्सल मामलों के परीक्षण को नई कमेटी गठित करेगी बघेल सरकार

नक्सलवादी होने के आरोप में कारागार में बंद आदिवासियों के मामलों पर पुनर्विचार के लिए छत्तीसगढ़ की सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार नई समिति (कमेटी) गठित करेगी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 14 Jan 2019 12:57 PM (IST)Updated: Mon, 14 Jan 2019 12:57 PM (IST)
एक्सक्लूसिव: नक्सल मामलों के परीक्षण को नई कमेटी गठित करेगी बघेल सरकार
एक्सक्लूसिव: नक्सल मामलों के परीक्षण को नई कमेटी गठित करेगी बघेल सरकार

रायपुर, नईदुनिया ब्यूरो। नक्सलवादी होने के आरोप में कारागार में बंद आदिवासियों के मामलों पर पुनर्विचार के लिए छत्तीसगढ़ की सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार नई समिति (कमेटी) गठित करेगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली इस समिति में सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) समेत पांच या अधिक विशेषज्ञ रखे जाएंगे। जल्द ही समिति का खाका तैयार हो जाएगा। उसके बाद समिति नक्सल मामलों पर पुनर्विचार के लिए बिंदु तय कर मामलों पर सुनवाई करेगी।

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भाजपा सरकार में नक्सल मामलों पर पुनर्विचार के लिए निर्मला बुच कमेटी बनाई गई थी। 21 अप्रैल 2012 को सुकमा जिले के मांझीपारा गांव से कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन का माओवादियों ने अपहरण का लिया था। बातचीत के लिए माओवादियों ने डॉक्टर ब्रह्मदेव शर्मा व प्रोफेसर हरगोपाल को मध्यस्थ बनाया था, जबकि राज्य सरकार ने मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्य सचिव एसके मिश्रा को अधिकृत किया था।

माओवादियों और सरकार के मध्यस्थों के बीच लिखित समझौते के बाद तीन मई 2012 को माओवादियों ने कलेक्टर को रिहा किया था। समझौते के अनुसार, तत्काल राज्य सरकार ने निर्मला बुच की अध्यक्षता में छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक की उच्चाधिकार प्राप्त समिति बनाई थी। माओवादियों ने एक सूची दी थी, जिसमें जेलों में बंद आदिवासियों के नाम थे, उनके मामलों पर प्राथमिकता के साथ समिति को पुनर्विचार करना था। सितंबर 2014 तक बुच कमेटी ने आठ बैठकें करके 650 से अधिक मामलों पर विचार किया था। 350 से अधिक मामलों में जमानत का विरोध नहीं करने की सिफारिश की थी। सरकार ने समिति की रिपोर्ट के साथ हलफनामा दिया था, उसके बाद भी आदिवासियों को जमानत नहीं मिल पाई थी।

मुद्दा उठाती रही है कांग्रेस

छत्तीसगढ़ में जब कांग्रेस पार्टी विपक्ष में थी, तब वह यह मुद्दा प्रमुखता के साथ उठाती रही कि नक्सल प्रभावित अंचलों में आदिवासियों को झूठे मामलों में फंसाकर जेल भेजा जा रहा है। ग्रामीणों को फर्जी तरीके से नक्सली बताकर उनकी हत्या की जा रही है।

बुच समिति और भाजपा सरकार पर उठे थे सवाल

बुच कमेटी के कामकाज पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाया था, उस पर निर्मला बुच ने कहा था कि उनकी समिति केवल सिफारिश कर सकती है। जमानत दे या न दे, यह अदालत पर निर्भर करता है। इस पर कानूनविदें का कहना था कि भाजपा सरकार राज्यपाल से हस्तक्षेप के लिए कह सकती थी। अपने समझौते का हवाला देते हुए जमानत के लिए वह सुप्रीम कोर्ट भी जा सकती थी।

बस्तर रेंज की जेलों में बंद हैं करीब डेढ़ हजार आदिवासी

नक्सल मामलों में बंद आदिवासियों की रिहाई के लिए काम कर रही जगदलपुर लीगल एड ग्रुप की शालिनी गेरा ने बताया कि बस्तर की जेलों में नक्सल मामलों में करीब डेढ़ हजार आदिवासी बंद हैं। दंतेवाड़ा में नक्सल मामले के करीब पांच सौ कैदी हैं। सुकमा और बीजापुर में भी अधिकांश आदिवासी नक्सल मामले में ही बंद हैं। जगदलपुर में करीब छह सौ आदिवासी नक्सल मामले में बंद हैं। कांकेर में भी 50 से ज्यादा ऐसे मामले हैं। 


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