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Analysis: चुनाव नतीजोंं में दिखी भारतीय राजनीति के साथ-साथ लोकाचार में भी बदलाव की झलक

चुनाव नतीजों को देखकर लगता है कि महिलाएं अब अपने घर-परिवार या समाज के पुरुष सदस्यों की मर्जी या फरमान की अनदेखी कर अपना मत जाहिर करने में सक्षम हो चुकी हैं।

By Manish PandeyEdited By: Published: Sat, 25 May 2019 11:39 AM (IST)Updated: Sat, 25 May 2019 11:39 AM (IST)
Analysis: चुनाव नतीजोंं में दिखी भारतीय राजनीति के साथ-साथ लोकाचार में भी बदलाव की झलक
Analysis: चुनाव नतीजोंं में दिखी भारतीय राजनीति के साथ-साथ लोकाचार में भी बदलाव की झलक

[ विजय संघवी ]। आम चुनाव के नतीजे भारतीय राजनीति के साथ-साथ लोकाचार में भी बदलाव की ओर इशारा करते हैं। इन नतीजों को देखकर लगता है कि महिलाएं अब अपने घर-परिवार या समाज के पुरुष सदस्यों की मर्जी या फरमान की अनदेखी कर अपना मत जाहिर करने में सक्षम हो चुकी हैं। ऐसी ज्यादातर महिलाओं ने इन चुनावों में निश्चित ही नरेंद्र मोदी के पक्ष में मतदान किया। देश की महिलाओं ने मुख्यत: दो वजहों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दूसरा कार्यकाल देने के पक्ष में मुहर लगाई। एक, उज्ज्वला योजना, जिसकी वजह से ग्रामीण इलाकों में करोड़ों महिलाओं को अपनी रसोई में धुएं की घुटन से मुक्ति मिली। दूसरा, हर घर में शौचालय बनने से उन्हें शौच के लिए बाहर जाने की शर्मिंदगी और दिक्कत से छुटकारा मिला।

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हम जानते हैं कि गांवों में प्राचीन समय से खुले में शौच के लिए जाने की प्रथा रही है। इससे महिलाएं भी अछूती नहीं थीं। लेकिन वे दिन की उजाले में हाथ में पानी का डिब्बा या बोतल लेकर शौच के लिए जाने से हिचकती थीं। वे या तो सुबह तड़के इसके लिए निकलतीं या फिर शाम ढलने का इंतजार करतीं। उस वक्त भी उन्हें बड़े-बुजुर्गों का लिहाज तो रखना ही पड़ता, साथ ही आवारा लड़कों का भी भय रहता, जो उनका पीछा करते या उनके साथ कोई और खुराफात करते रहते। उन्हें दिन के समय अपने गांव के बड़े-बूढ़ों के सामने यूं पानी का डिब्बा हाथ में लेकर चलने में शर्म भी आती। इस वजह से उन्हें कई बार अपनी शौच-निवृत्ति क्रिया को जरूरी होने पर भी टालना पड़ता। इसके उन्हें शारीरिक दुष्परिणाम भी झेलने पड़ते। इसके बारे में सबसे पहले 1970 के दशक में पीलू मोदी ने तत्कालीन गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह से चर्चा कर गांवों में शौचालय बनाने का सुझाव दिया था, लेकिन तब इसे अमल में नहीं लाया गया। वर्ष 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने पर ही इसके बारे में गंभीरतापूर्वक काम शुरू हुआ।

प्रधानमंत्री मोदी ने यह कहते हुए देश को स्वच्छ बनाने का बीड़ा उठाया कि यही हमारी ओर से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। यहां तक कि उन्होंने बतौर प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से अपने पहले संबोधन में कहा भी था कि वह समझते हैं कि घरों में शौचालय न होने की वजह से हमारी माताओं-बहनों को कितनी तकलीफ से गुजरना पड़ता है। इसके बाद इस दिशा में जबर्दस्त अभियान चलाया गया और आज हम जानते हैं कि गांव में घर-घर शौचालय बनने से महिलाओं को कितनी राहत मिली है।

देश की लाखों गरीब महिलाओं को जीवन आसान करने की दिशा में मोदी सरकार से दूसरी बड़ी सौगात मुफ्त गैस कनेक्शन के रूप में मिली। अब तक उन्हें अपने परिवार के लिए लकड़ी के चूल्हे पर धुएं की घुटन के बीच खाना पकाना पड़ता था, जिससे उनकी सेहत भी प्रभावित होती। किंतु मोदी सरकार की उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त गैस कनेक्शन मिलने से उनका जीवन आसान हुआ।

मुस्लिम महिलाओं ने भी अपने परिवार के पुरुष सदस्यों की मर्जी के खिलाफ जाते हुए स्वतंत्र रूप से मतदान किया, जैसा कि कई मुस्लिम बहुल इलाकों में भाजपा को मिली बढ़त से जाहिर है। मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक प्रथा की वजह से अपनी शादीशुदा जिंदगी को लेकर हमेशा अनिश्चितता से घिरी रहती थीं। मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं की इस परेशानी को समझा और इस बारे में स्पष्ट रुख अपनाया। कुछ मुस्लिम महिलाओं की याचिका पर जब सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समाज में एक साथ तीन तलाक की प्रथा को अवैध घोषित किया तो मोदी सरकार इस बाबत संसद में एक विधेयक भी लेकर आई। जब यह विधेयक राज्यसभा में अटक गया, तो मोदी सरकार ने इस पर अध्यादेश लाने से भी गुरेज नहीं किया। इससे निश्चित ही मुस्लिम महिलाओं के मन में मोदी सरकार की बेहतर छवि बनी। मोदी ने गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा के लिए भी अभियान चलाया था। इससे मुस्लिम महिलाओं को यह संदेश गया कि वे भी स्वतंत्र सोच रखने वाली एक इंसान हैं और उनकी भूमिका सिर्फ चूल्हा-चौका संभालने और बच्चे पैदा करने तक सीमित नहीं है। आज 96 फीसद बच्चे स्कूल जा रहे हैं, जो दर्शाता है कि बड़ी संख्या में मुस्लिम लड़कियां भी शिक्षा को अपना रही हैं। यह एक बड़ा सामाजिक सुधार है। मोदी ने यह दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ा कि उन्हें हर देशवासी की फिक्र है, चाहे उसकी धार्मिक प्राथमिकताएं कुछ भी हों। यह ऐसा नजरिया है, जो पुरानी भाजपा में नजर नहीं आता था। नतीजों ने यह भी दर्शाया कि जातिवाद, वर्गवाद और क्षेत्रवाद पर आधारित राजनीति का दौर बीत चुका है। उन्होंने उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे प्रदेशों में 1990 से चली आ रही जातिवादी सियासत के प्रभुत्व को खत्म कर दिया।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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