सुप्रीम कोर्ट ने कहा-अवमानना है फैसलों को राजनीतिक रंग देना
विद्वान न्यायाधीशों ने कहा कि जब भी किसी राजनीतिक मसले पर किसी भी पक्ष में फैसला आता है, विवेकहीन व्यक्तियों या वकीलों द्वारा उसे राजनीतिक रंग दे दिया जाता है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने फैसलों को राजनीतिक रूप देने को सीधे-सीधे कोर्ट की अवमानना बताया है। सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा कि आजकल वकीलों द्वारा मीडिया में जजों की आलोचना करना बहुत ही आम हो गया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का यह भी मानना था कि कोर्ट के पास अवमानना का अधिकार है जो 'ब्रह्मास्त्र' के समान है, जिसका इस्तेमाल बहुत ही संयम के साथ किया जाना चाहिए।
मीडिया ट्रायल से नहीं किए जा सकते हैं फैसले
जस्टिस अरुण मिश्र और जस्टिस विनीत सरन की पीठ ने यह भी कहा कि मामलों का निपटारा मीडिया ट्रायल द्वारा नहीं किया जा सकता। शिकायतों से निपटने के लिए बार और बेंच के पास अपना तंत्र है, किसी भी तरह के बाहरी हस्तक्षेप से उसे प्रभावित नहीं होने दिया जा सकता। पीठ ने 28 जनवरी को मद्रास हाई कोर्ट के कुछ खास नियमों में संशोधन को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां की। इनमें एक वकील को प्रैक्टिस करने से रोकना भी शामिल था।
पीठ ने कहा कि जिन जजों पर निशाना साधा जाता है, उनसे यह उम्मीद नहीं होती है कि वह मीडिया के सामने जाकर अपना पक्ष रखेंगे। इसी तरह वकीलों से भी यह उम्मीद नहीं होती कि वह 'पैसे के भूखे' हैं। उन्हें निष्पक्ष न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित करने का काम नहीं करना चाहिए।
न्यायिक व्यवस्था पर समय-समय पर हुए हमलों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि न्यायिक सेवा के लिए बहुत कुर्बानी देनी पड़ती है, जो सैन्य सेवा की कुर्बानियों से किसी भी तरह कम नहीं है।
विद्वान न्यायाधीशों ने कहा कि जब भी किसी राजनीतिक मसले पर किसी भी पक्ष में फैसला आता है, विवेकहीन व्यक्तियों या वकीलों द्वारा उसे राजनीतिक रंग दे दिया जाता है। फैसलों को राजनीतिक रंग देने से आम लोगों के मन में न्याय व्यवस्था के प्रति भरोसा कम होता है। किसी जज के खिलाफ उचित शिकायत के लिए एक व्यवस्था बनी हुई है। वहां शिकायत की जानी चाहिए। राजनीतिक रंग और गलत आरोपों के जरिए न्यायपालिका की छवि को खराब करने की किसी को भी इजाजत नहीं दी जा सकती है।
पीठ ने कहा कि न्यायिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नहीं है। लेकिन इसके लिए वकील धरना प्रदर्शन या हड़ताल नहीं कर सकते। जब तक लोकतंत्र पर खतरा न हो, पूरी न्यायिक व्यवस्था ही दांव पर न लगी हो, वकील ऐसा करने से बचना चाहिए।