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तरक्‍की की राह पर भारत, ये है हाईवे से एक्सप्रेस वे और सुपरहाईवे की छलांग

सड़क, विकास का ऐसा पहला मानक है जिससे व्यक्तिगत, सामाजिक और देश के विकास की सभी धाराएं जुड़ती हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 18 Jul 2018 12:39 PM (IST)Updated: Wed, 18 Jul 2018 11:00 PM (IST)
तरक्‍की की राह पर भारत, ये है हाईवे से एक्सप्रेस वे और सुपरहाईवे की छलांग
तरक्‍की की राह पर भारत, ये है हाईवे से एक्सप्रेस वे और सुपरहाईवे की छलांग

(संजय सिंह)। सड़क, विकास का ऐसा पहला मानक है जिससे व्यक्तिगत, सामाजिक और देश के विकास की सभी धाराएं जुड़ती हैं। यह शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, व्यवसाय जैसे पहलू को छूते हुए जिंदगी की गुणवत्ता में बदलाव की शुरुआत भी करती है और उसे अंजाम तक पहुंचाती भी है। यही कारण है कि जब सड़क और परिवहन की बात होती है तो जाने-अनजाने उसकी सफलता-असफलता संबंधित सरकार के प्रदर्शन, उसकी क्षमता और सोच से जुड़ती है। इस पैमाने पर पिछले चार साल सही मायने में सरकार के लिए छलांग से कम नहीं है। हाईवे से एक्सप्रेस वे और सुपरहाईवे की छलांग। इस छलांग के लिए जमीन तभी तैयार हो गई थी जब सड़क परिवहन मंत्रालय के लिए नितिन गडकरी को चुना गया था।

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क्रियान्‍वयन पर विवाद
देश में सड़क निर्माण कभी फैसलों में देरी तो कभी क्रियान्वयन की कमी, कभी भूमि अधिग्रहण तो कभी एजेंसियों के बीच विवाद से ग्रसित रहा है। दर्जनों परियोजनाओं पर तो वर्षों से कोई काम नहीं हुआ था। भूमि अधिग्रहण, वन मंजूरी और यूटिलिटी शिफ्टिंग जैसे झमेलों में उलझी इन परियोजनाओं को बैंकों ने भी कर्ज देना बंद कर दिया था। इसी तरह कुछ मामलों में सड़क निर्माता और एनएचएआइ के बीच विवाद और मुकदमों के कारण काम रुके थे। ऐसे में चार साल पहले मंत्रालय का जिम्मा लेते ही गडकरी ने यह जता दिया कि सरकार चाहे तो काम हो सकता है। उन्होंने रोज 18 किमी सड़क निर्माण का वादा किया। अभी रोजाना 27 किलोमीटर सड़कों का निर्माण हो रहा है। चार साल में 10 से बढ़कर 27 किमी रोजाना निर्माण में वृद्धि अपने आप में पूरी कहानी बयां करती है। अब उन्होंने रोज 42 किलोमीटर सड़कें बनाने का नया लक्ष्य अफसरों के सामने रख दिया है। सड़क को रामबाण की तरह इस्तेमाल करते हुए सरकार ने एक नई सोच भी दिखाई है। अब एक्सप्रेसवे निर्माण के लिए उन रास्तों को चुना जा रहा है जो पिछड़े इलाके माने जाते हैं। सड़क जाने से जहां उन क्षेत्रों का स्वत: विकास शुरू होगा वहीं भूमि अधिग्रहण और कीमत की समस्या भी खत्म होगी।

नई कार्यसंस्कृति
सड़क मंत्रालय में नई कार्यसंस्कृति दिखाई दे रही है। गडकरी ने सड़क मंत्रालय, वन मंत्रालय, एनएचएआइ, पीडब्ल्यूडी और बैंकों तथा सड़क निर्माताओं के साथ मैराथन बैठकें कर तीन सौ से ज्यादा परियोजनाओं पर फिर से कार्य शुरू करने के लिए राजी किया। साथ ही प्रधानमंत्री से मुलाकात कर तथा अन्य मंत्रियों व मुख्यमंत्रियों से बात कर नीतियों में जरूरी फेरबदल भी कराये। इतना ही नहीं, पूर्वोत्तर, उत्तराखंड जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क निर्माण को गति देने के लिए उन्होंने सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) से अलग एनआइडीसीएल का गठन किया।
तुरंत निर्णय के लिए सड़क मंत्रालय के अधिकारों में बढ़ोतरी करवाई और एक हजार करोड़ रुपये तक की परियोजनाओं की मंजूरी का अधिकार मंत्री के हाथ में आ गया। पिछले वर्ष जब ‘भारतमाला’ का पहला चरण मंजूर हुआ तो इन अधिकारों में और बढ़ोतरी कर दी गई। सोने पर सुहागा तब हुआ जब अंतरमंत्रालयी गुत्थियां सुलझाने के लिए बनाए गए मंत्रिसमूह का अध्यक्ष भी गडकरी को बना दिया गया। इससे बड़ी परियोजनाएं भी जल्द स्वीकृत होने लगीं।

कामकाज का तरीका
अध्यक्ष और अधिकारों में फेरबदल कर गडकरी ने एनएचएआइ को भी कामकाज का तरीका बदलने को विवश किया। इससे एनएचएआइ ने बीओटी परियोजनाओं में सड़क निर्माताओं को कार्यशील पूंजी के साथ नुकसान की भरपाई के लिए एकमुश्त सहायता देने जैसे कदम उठाए। इसके अलावा उन्हें देर से प्रीमियम भुगतान करने तथा दो वर्ष बाद 100 फीसद इक्विटी विनिवेश करने का रास्ता भी दिया गया। सही मायने में पिछले चार साल मे मंत्रालय को पेशेवर चेहरा दिया गया और यह स्पष्ट हुआ कि सड़कों के निर्माण के लिए कभी पैसों की कमी नहीं होती। टोल-ऑपरेट-ट्रांसफर (टीओटी) स्कीम से जवाब मिल गया है। इस स्कीम के तहत पूरी हो चुकी सड़क परियोजनाओं पर टोल वसूली के ठेके देश-विदेश की नामी कंपनियों को देने की नई परंपरा शुरू हुई है। इसके तहत एनएचएआइ ने पहले ही दौर में 680 किमी लंबाई की नौ परियोजनाओं के टोल ठेके देकर लगभग दस हजार करोड़ रुपये की रकम जुटा ली है। स्कीम के अगले दो चरणों में जब 1200 किमी लंबाई की 18 परियोजनाओं के टोल ठेके दिए जाएंगे तो इससे दूनी से ज्यादा राशि जुटने की  संभावना है।

छोटे उपाय बड़े कारगर
अनेक छोटे उपायों ने भी सड़क निर्माण में तेजी लाने का काम किया है। उदाहरण के लिए इनाम-प्रो पोर्टल के जरिए सड़क निर्माण सामग्री की एकमुश्त खरीद से कंपनियों के कार्टल पर अंकुश तथा बिडर इंफार्मेशन मैनेजमेंट सिस्टम (बिम्स) पोर्टल के माध्यम से कांट्रैक्टर्स की पात्रता जांच के ऑनलाइन इंतजाम करना। इसके अलावा एनएचएआइ द्वारा लंदन स्टॉक एक्सचेंज में मसाला बांड जारी करने, नेशनल हाईवे इन्वेस्टमेंट प्रमोशन सेल का गठन करने तथा नई तकनीकों के मार्फत विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) बनाने की प्रक्रिया में तेजी लाने से भी सड़क निर्माण क्षेत्र का परिदृश्य काफी बदल गया है। देश में हाईवे से आगे निकलकर सुपरहाईवे और एक्सप्रेसवे के दौर में पहुंच गया है। ईस्टर्न पेरीफेर एक्सप्रेसवे के साथ दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे के पहले चरण का उद्घाटन हो चुका है। जबकि दिल्ली-अमृतसर-जम्मू समेत चार एक्सप्रेसवे और कई अन्य एक्सप्रेसवे की डीपीआर तैयार हो रही है। इस बीच गडकरी ने दिल्ली और मुंबई के बीच सुपरहाईवे के निर्माण की महत्वाकांक्षी परियोजना का एलान भी कर दिया है।

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