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लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस में गठबंधन खत्म करने से लेकर सूबों में बदलाव के सुर तेज

कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर आज के हालत में केवल राहुल गांधी ही आक्रामक नेतृत्व के जरिए दे सकते हैं और पराक्रमी सत्ता के खिलाफ खड़ा होने का साहस किसी दूसरे नेता में नहीं है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 05 Jun 2019 09:36 PM (IST)Updated: Wed, 05 Jun 2019 09:36 PM (IST)
लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस में गठबंधन खत्म करने से लेकर सूबों में बदलाव के सुर तेज
लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस में गठबंधन खत्म करने से लेकर सूबों में बदलाव के सुर तेज

संजय मिश्र, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में हार के बाद कई सूबों में प्रदेश कांग्रेस में व्यापक बदलाव की मांग जोर पकड़ने लगी है। मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे सूबों में प्रदेश कांग्रेस का चेहरा बदलने को लेकर अंदरूनी सुगबुगाहट शुरू हो गई है। वहीं बिहार में प्रदेश नेतृत्व की शैली पर सवाल उठाने के साथ ही सूबे में राजद से गठबंधन खत्म करने की मांग भी उठने लगी है। जबकि महाराष्ट्र में कुछ वरिष्ठ नेताओं के साथ विधायकों के पार्टी छोड़ने की खबरों ने कांग्रेस की सियासी चुनौती चौतरफा बढ़ा दी है।

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लोकसभा चुनाव में पार्टी की शिकस्त के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इस्तीफे की पेशकश पर जारी असमंजस की स्थिति के बीच प्रदेश संगठनों में बदलाव को लेकर पार्टी नेता हाईकमान से जल्द निर्णायक फैसले की उम्मीद कर रहे हैं। इसीलिए तमाम राज्यों की कांग्रेस इकाईयों ने कार्यसमिति के राहुल गांधी के इस्तीफे की पेशकश खारिज करने के प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुए प्रस्ताव पारित किए हैं।

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट से जोधपुर सीट पर हार की जिम्मेदारी लेने की बात कहकर साफ इशारा कर दिया है कि सूबे के संगठन में सबकुछ ठीक नहीं है। सूबे के मंत्री और पार्टी विधायकों के बीच भी यह खेमेबाजी स्पष्ट तौर पर नजर आ रही है।

मध्यप्रदेश में भी केवल अपने बेटे की एक सीट निकलवा पाए मुख्यमंत्री कमलनाथ पर ज्योरिादित्य सिंधिया के समर्थक नेता प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने का दबाव बना रहे हैं। इतना ही नहीं पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहा है।

बिहार में भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मदन मोहन के 'चुप्प नेतृत्व' को लेकर हाईकमान का दरवाजा खटखटाया जाने लगा है। सूबे के कई नेताओं ने राज्य के प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल के अलावा संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल से साफ कहा है कि मदन मोहन झा सूबे में पार्टी को प्रभावशाली और जुझारू नेतृत्व नहीं दे पा रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस की ऐसी स्थिति हो गई है कि राजनीतिक कार्यक्रम भी राजद में संचालित होने लगा है। इसीलिए बिहार में सबल नेतृत्व ही नहीं राजद से गठबंधन खत्म करने की हाईकमान से वकालत भी की जा रही है।

बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा ने इस बारे में दैनिक जागरण से कहा कि आज के हालत में जनता के बीच अपने स्तर पर ही पार्टी अपनी जमीन वापस पा सकती है। इसके लिए गठबंधन की बेडि़यों को तोड़कर कांग्रेस को जनता का विश्वास खुद आगे बढ़कर हासिल करना होगा।

अनिल शर्मा के अनुसार कोई भी पार्टी अपनी प्राकृतिक भूमिका जब भूल जाती है तब जनाधार पर असर पड़ता ही है। बिहार में राजद के साथ गठबंधन की वजह से आज कांग्रेस इस हालत में पहुंची है। ऐसे में अब जरूरी है कि सूबे में आक्रामक तेवर के नेतृत्व के सहारे अपने परंपरागत आधार की ओर लौटें। शर्मा ने कहा कि कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर आज के हालत में केवल राहुल गांधी ही आक्रामक नेतृत्व के जरिए दे सकते हैं और पराक्रमी सत्ता के खिलाफ खड़ा होने का साहस किसी दूसरे नेता में नहीं है।

बिहार कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता किशोर कुमार झा ने भी कहा कि गठबंधन के कारण ही सूबे में पार्टी हाशिए पर चली गई है। ऐसे में हाईकमान को कांग्रेस के अकेले चलने का निर्णय लेना होगा क्योंकि बीते दो दशक में गठबंधन का फायदा केवल राजद को हुआ है, जबकि कांग्रेस के खाते में केवल घाटा ही आया है।

लोकसभा चुनाव में 11 की जगह नौ सीटों पर कांग्रेस को लेकर प्रदेश नेतृत्व को घेरते हुए झा ने कहा कि सूबे में हमारे कमजोर नेतृत्व का राजद ने फायदा उठाया। उनका साफ कहना था कि चुनाव के दरम्यान खुले तौर पर सवर्ण विरोध की बात करने वाली राजद के साथ गठबंधन जारी रखना हित में नहीं है क्योंकि कांग्रेस की विचारधारा समाज के सभी वर्गो को साथ लेकर चलने की है।

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