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कर्ज माफी बना जीत का फार्मूला, लोस चुनाव में इस दांव को लेकर भाजपा दुविधा में

जिस तरह किसान कर्ज माफी अब तक चुनाव में जीत का गारंटी बनता रहा है उसके बाद नजरें इस पर है कि क्या लोकसभा चुनाव में भाजपा का रुख भी बदलेगा?

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 16 Dec 2018 09:13 PM (IST)Updated: Mon, 17 Dec 2018 07:10 AM (IST)
कर्ज माफी बना जीत का फार्मूला, लोस चुनाव में इस दांव को लेकर भाजपा दुविधा में
कर्ज माफी बना जीत का फार्मूला, लोस चुनाव में इस दांव को लेकर भाजपा दुविधा में

नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। जिस तरह किसान कर्ज माफी अब तक चुनाव में जीत का गारंटी बनता रहा है उसके बाद नजरें इस पर है कि क्या लोकसभा चुनाव में भाजपा का रुख भी बदलेगा? अगर ऐसा है तो उसे अगले चार-पांच हफ्तों के भीतर ही फैसला करना होगा क्योंकि 1 फरवरी, 2019 को अंतरिम बजट पेश होगा और उस बजट में या के बाद सरकार के पास बड़ा फैसला करने का मौका नहीं होगा।

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यूपीए-एक ने 2008 में ऐसा ही दांव खेला था। नतीजा यह हुआ कि कमरतोड़ महंगाई व भारी आर्थिक अनिश्चितता के बावजूद वर्ष 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस ज्यादा मजबूती से सत्ता में लौटी। कांग्रेस का जो रुख है उसमें फिर से ऐसी राजनीतिक घोषणा हो तो आश्चर्य नहीं। खुद भाजपा ने उत्तर प्रदेश में इसे आजमाया और लाभ भी मिला। अब तो यह हर राज्य में राजनीतिक दलों के लिए सबसे अहम घोषणा हो गया है।

पर बड़ा सवाल यह है कि क्या कठिन होते दिख रहे चुनावी मुकाबले में भाजपा का रुख बदलेगा? दरअसल नीतिगत तौर पर पार्टी इसके खिलाफ रही है। क्योंकि यह सरकार के 'गुड गवर्नेस' की नीति के खिलाफ जाती है। सरकारी बैंकों की बेहद खस्ता हालत को देखते हुए वित्त मंत्रालय भी इसे समर्थन नहीं देता।

असलियत में हाल ही में जब विधान सभा चुनावों मे कृषि कर्ज माफी एक बड़ा मुद्दा बना तो देश के कुछ बड़े बैंकों ने वित्त मंत्रालय के समक्ष इस मुद्दे को उठाया। सरकारी बैंकों का मानना है कि सिर्फ मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में एक लाख करोड़ रुपये के कृषि कर्ज को माफ करना होगा। इससे कर्ज वसूली का तंत्र पूरी तरह से अस्थिर हो जाता है।

अभी से मध्य प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों से यह सूचनाएं आ रही है कि कृषि कर्ज की वसूली बेहद सुस्त हो गई है। कई क्षेत्रों में किसानों ने कर्ज की किस्त चुकानी बंद कर दी है। बैंकों ने यह भी बताया है कि जिन राज्यों में पहले किसानों के कर्ज माफ किये गये हैं वहां भी बैंकों से पूरा हिसाब किताब नहीं हो पाया है।

दूसरी तरफ रिजर्व बैंक कई दफे कृषि कर्ज माफी स्कीमों को एक 'बैड इकोनोमी' का दर्जा दे चुका है। बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक चुनावों की वजह से 2.7 लाख करोड़ रुपये के कृषि कर्ज माफ किये जा सकते हैं। यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.5 फीसद होगा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस वर्ष जो कर्ज माफी होगी उसका असर अगले वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान तब दिखेगा जब किसान कर्जा लौटना कम कर देंगे।

पिछले साढ़े वर्षो में भाजपा सरकार ने सुधारवादी सरकार की छवि बनाई है और कड़े फैसले लिए हैं। लेकिन चुनाव में राजनीतिक पैंतरे होते हैं और जीत जीत होती है। ऐसे में गुड गर्वनेंस और विनिंग पालीटिक्स की दुविधा भाजपा को सता सकती है।


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