Move to Jagran APP

येदियुरप्पा का उत्तराधिकारी ढूंढना भाजपा के लिए चुनौती, जानिए कब किया जा सकता है इस्तीफे का एलान

कर्नाटक की राजनीति में भाजपा कांग्रेस और जदएस का चुनावी जातिगत आधार लगभग बंटा हुआ है। 1989 में कांग्रेस की ओर से वीरेंद्र पाटिल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद से ही लिंगायत का रुख भाजपा की ओर हो गया।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Sun, 18 Jul 2021 08:48 PM (IST)Updated: Sun, 18 Jul 2021 09:08 PM (IST)
येदियुरप्पा का उत्तराधिकारी ढूंढना भाजपा के लिए चुनौती, जानिए कब किया जा सकता है इस्तीफे का एलान
पार्टी की रणनीति के अलावा येदियुरप्पा की पसंद का भी रखा जाएगा ध्यान

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अब जबकि यह तय हो चुका है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा पद छोड़ेंगे तो भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है नया चेहरा ढूंढना। एक ऐसा चेहरा जो भाजपा की बदल रही रणनीति पर भी खरा उतरे और येदियुरप्पा को भी रास आए। ऐसा चेहरा जो भाजपा के सबसे प्रभावी समर्थक वर्ग लिंगायत को थाम कर रख सके और वोक्कालिगा, अनुसूचित जाति, ब्राह्मण सबको आकर्षित कर सके। यूं तो दौड़ में कई नाम हैं, लेकिन माना जा रहा है कि कोई ऐसा नाम भी उभर सकता है, जो नेतृत्व परिवर्तन के बाद नैरेटिव बदलने में सक्षम हो। संभावना है कि ऐसे नाम पर कोई सहमति बनने के बाद ही येदियुरप्पा के इस्तीफे की घोषणा होगी।

loksabha election banner

कर्नाटक की राजनीति में भाजपा, कांग्रेस और जदएस का चुनावी जातिगत आधार लगभग बंटा हुआ है। 1989 में कांग्रेस की ओर से वीरेंद्र पाटिल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद से ही लिंगायत का रुख भाजपा की ओर हो गया। कांग्रेस उसके बाद से कभी भी सबसे प्रभावी समुदाय लिंगायत का विश्वास नहीं जीत पाई। वोक्कालिगा समुदाय के नेता भले ही हर दल में हों, लेकिन जदएस और देवेगौड़ा परिवार ही उसके नेता माने जाते हैं। कांग्रेस ने अनुसूचित जाति, पिछड़ों के बीच खुद के लिए रास्ता तैयार किया। बताया जाता है कि इस्तीफे की परोक्ष पेशकश के साथ ही येदियुरप्पा ने नए मुख्यमंत्री के चुनाव में दखल की भी शर्त रखी है।

पार्टी के अंदर ब्राह्मण नेतृत्व की भी उठ रही बातें

रोचक तथ्य यह है कि 2011 में पद से हटने के बाद येदियुरप्पा ने वोक्कालिगा सदानंद गौड़ा को अपनी पसंद बनाया था। वह दौर था जब येदियुरप्पा पार्टी में संभवत: कोई प्रतिस्पर्धी लिंगायत लीडर नहीं चाहते थे। आज के दौर में वह चाहेंगे कि कमान लिंगायत के हाथ में ही रहे। जाहिर तौर पर इसी में उनके पुत्र की भी राजनीतिक भलाई होगी। दूसरी तरफ हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड में लीक से हटकर चलने वाली भाजपा की सोच विस्तार पर केंद्रित है। ऐसा विस्तार जिसमें पार्टी किसी एक समुदाय से न बंधी हो। यही कारण है कि पार्टी के अंदर ब्राह्मण नेतृत्व की बातें भी उठ रही हैं। लेकिन एक डर भी है कि कहीं वीरेंद्र पाटिल वाली स्थिति न बन जाए। जाहिर है कि नेतृत्व चुनाव जटिल है।

दूसरी तरफ येदियुरप्पा ने अपने मुख्यमंत्री काल के दो साल पूरे होने पर 26 जुलाई को विधायक दल की बैठक जरूर बुलाई है, लेकिन इसे लेकर असमंजस है कि वह उसी दिन इस्तीफे की घोषणा भी करेंगे। वैसे भी उन्हें केंद्रीय नेतृत्व की ओर से कोई डेडलाइन नहीं दिया गया है। प्रधानमंत्री को उन्होंने यह जरूर भरोसा दिलाया है कि वह जब कहेंगे तत्काल घोषणा की जाएगी। लेकिन येदियुरप्पा तिथि, काल पर भरोसा रखने वाले व्यक्ति भी हैं और इस्तीफा देते वक्त भी वह इसका ध्यान रखेंगे क्योंकि यहीं से उनके पुत्र के भविष्य का तार जुड़ा होगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.