जम्मू-कश्मीर में बड़े औद्योगिक घराने करेंगे निवेश, बढ़ेंगी आर्थिक गतिविधियां
अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर के लोगों को उद्यमिता से जोड़ने और दोनों नए केंद्र शासित राज्यों को विकास की मुख्यधारा में लाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर के लोगों को उद्यमिता से जोड़ने और दोनों नए केंद्र शासित राज्यों को विकास की मुख्यधारा में लाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। दो दिन पहले मुंबई में फाइनेंशियल इन्क्लूजन विषय पर हुए दो दिवसीय समिट में कई वक्ताओं ने माना कि बैंकों, वित्तीय संस्थाओं और निजी क्षेत्र की कंपनियों को अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के आर्थिक उन्नयन के लिए अपने सीएसआर फंड का उपयोग करना चाहिए।
'वे टू पीपुल, प्लैनेट एंड प्रॉसपेरिटी' विषय पर आयोजित इस दो दिवसीय समिट में केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास आठवले ने एक शेर सुनाकर अपनी विशेष शैली में शुरुआत की। उन्होंने कहा, 'अब कश्मीर में नहीं चलेंगे पत्थर, क्योंकि हट गया है तीन सौ सत्तर।' लेकिन इसके तुरंत बाद उन्होंने पूरी गंभीरता के साथ कहा कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर के विकास में सीएसआर की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है।
आठवले की इसी बात को आगे बढ़ाते हुए भाजपा के आर्थिक मामलों के प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने कहा कि फाइनेंशियल इन्क्लूजन का मतलब ही वित्तीय बाजार में सभी को समान अवसर प्रदान करना है। इसके लिए आर्थिक लोकतंत्र बहुत जरूरी है। उनके अनुसार, केंद्र सरकार की करीब 106 योजनाएं चल रही हैं। न सिर्फ इसकी जानकारी सभी को दी जानी चाहिए, बल्कि इनका लाभ भी जम्मू-कश्मीर के लोगों को मिलना चाहिए।
समिट में आए आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ गोपाल वी. कुमार के अनुसार, अभी तक जे एंड के बैंक एवं ओएनजीसी जैसी संस्थाएं ही जम्मू-कश्मीर में अपना सीएसआर फंड खर्च करती रही हैं। अन्य कंपनियां किसी न किसी कारण वहां जाने से कतराती रही हैं। लेकिन बदले हालात में अन्य कंपनियों और वित्तीय संस्थाओं को भी आगे आकर देश के उस भाग में अपनी गतिविधियां बढ़ानी चाहिए ताकि वहां के लोगों को आर्थिक मुख्यधारा में लाया जा सके।
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