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जेटली ने फेसबुक पर दिया राहुल के ट्वीट का जवाब, कहा- लोन माफी नहीं है 'राइट ऑफ'

जेटली का कहना है कि राइट-ऑफ का मतलब यह नहीं है कि बैंकों ने कर्ज माफ कर दिया हो। जेटली ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के कार्यकाल में एनपीए को छुपाकर रखने का आरोप भी लगाया है।

By Vikas JangraEdited By: Published: Mon, 01 Oct 2018 08:56 PM (IST)Updated: Tue, 02 Oct 2018 08:00 AM (IST)
जेटली ने फेसबुक पर दिया राहुल के ट्वीट का जवाब, कहा- लोन माफी नहीं है 'राइट ऑफ'
जेटली ने फेसबुक पर दिया राहुल के ट्वीट का जवाब, कहा- लोन माफी नहीं है 'राइट ऑफ'

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सरकारी बैंकों के कर्ज 'राइट-ऑफ' करने के कदम का बचाव किया है। जेटली का कहना है कि 'राइट-ऑफ' का मतलब यह नहीं है कि बैंकों ने कर्ज माफ कर दिया हो। जेटली ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के कार्यकाल में एनपीए को छुपाकर रखने का आरोप भी लगाया है। उन्होंने कहा कि एनपीए की राशि में कमी आ रही है और चालू वित्त वर्ष में सरकारी बैंक 36,551 करोड़ रुपये की रिकवरी कर चुकी हैं।

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जेटली ने फेसबुक पर लिखे एक पोस्ट में यह बात की। जेटली का यह बयान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के जवाब में आया है। राहुल ने ट्वीट कर दावा किया था कि सरकारी बैंकों ने आम लोगों के पैसे से 3.16 लाख करोड़ रुपये की राशि राइट-ऑफ कर दी है। जेटली ने कहा कि रिजर्व बैंक के दिशा निर्देशों के अनुसार बैंक तकनीकी 'राइट-आफ' का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि ऐसा करने से कोई भी कर्ज माफ नहीं हो जाता। बैंक कर्ज की वसूली जारी रखते हैं। दिवालियेपन पर नए कानून आइबीसी के तहत अधिकांश दिवालिया कंपनियों के डिफॉल्टर मैनेजमेंट को हटा दिया गया है।

जेटली ने कहा कि सरकारी बैंक एनपीए की वसूली के लिए लगातार कोशिशें कर रही हैं। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सरकारी बैंक भारी भरकम 36,551 करोड़ रुपये की वसूली भी कर चुकी हैं। पिछले वित्त वर्ष में बैंकों ने 74,562 करोड़ रुपये की रिकवरी की थी। चालू वित्त वर्ष में बैंकों ने 1,81,034 करोड़ रुपये की वसूली का लक्ष्य रखा है। फंसे कर्ज की राशि सर्वोच्च स्तर पर पहुंच चुकी है और चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में पिछले वित्त वर्ष की जनवरी-मार्च तिमाही की तुलना में इसमें 21,000 करोड़ रुपये की कमी भी आयी है।

जेटली ने बैंकों के फंसे कर्ज की समस्या का ठीकरा पूर्ववर्ती यूपीए सरकार पर फोड़ते हुए कहा कि मोदी सरकार जब 2014 में सत्ता में आयी थी उस समय उसे बैकिंग क्षेत्र में फंसे कर्ज की समस्या उसे विरासत में मिली थी। एनपीए की राशि मेंे वृद्धि की बड़ी वजह यह थी कि 2008 से 2014 के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने तेजी से कर्ज दिया। मार्च 2008 में कुल बकाया कर्ज 18 लाख करोड़ रुपये था जो मार्च 2014 में बढ़कर 52 लाख करोड़ रुपये हो गया।

जेटली ने कहा कि यूपीए सरकार ने एनपीए को छुपा कर रखा था। मोदी सरकार ने एनपीए की वास्तविक राशि का पारदर्शी ढंग से पता लगाने का प्रयास किया और पाया कि मार्च 2018 में एनपीए की राशि 8.96 लाख करोड़ रुपये थी जबकि मार्च 2014 में इसे 2.26 लाख करोड़ रुपये ही माना गया था।

जेटली ने कहा कि आरबीआइ के दिशानिर्देश और नीति के अनुसार फंसे कर्ज की जिस राशि के लिए बैंकों ने प्रॉविजनिंग कर दी है, उसे संबंधित बैंक द्वारा चार साल की अवधि के बाद बैंक के बैलेंस शीट से 'राइट-ऑफ' कर हटा दिया हाता है।

जेटली ने कहा कि 'राइट-ऑफ' एक सतत प्रक्रिया है और बैंक लगातार इसका इस्तेमाल करते हैं। बैंक अपने बेलेंस शीट को साफ रखने के लिए 'राइट-ऑफ' करते हैं। पूंजी का सदुपयोग करने और कर लाभ लेने के लिए 'राइट-ऑफ' किया जाता है। हालांकि जिन लोन अकाउंट का कर्ज 'राइट-ऑफ' किया गया है, इसके बाद भी कर्ज चुकाने की उनकी जिम्मेदारी होती है। बैंक सरफेसी कानून और डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल यानी डीआरटी के माध्यम से कर्ज की वसूली करते हैं।


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